आचंलिक

सूचना अधिकार कानून को बचाने के लिए आंदोलन करने का निर्णय

  • राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार में डेटा प्रोटेक्शन बिल के खिलाफ बनी रणनीतियाँ

नागदा। भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित दी डिजीटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022 (डीपीडीपी) से सूचना अधिकार कानून को कमजोर होने से बचाने के लिए रविवार को आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार सेमिनार में रणनीतियाँ बनाई गई। कार्यक्रम में देशभर के सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। मप्र से पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं नागदा से आरटीआई कार्यकर्ता कैलाश सनोलिया ने कार्यक्रम में विचार रखे। कार्यक्रम में भाग लेने के बाद एक प्रेस बयान में श्री सनोलिया ने बताया केंद्र सरकार डेटा प्रोटेक्शन बिल को संसद में पेश करने जा रही है। इस बिल के विधेयक की धारा 29 (2) एवं 30 (2) में सूचना अधिकार की एक धारा 8 (1) (जे) में संशोधन का प्रस्ताव है। यदि यह बिल स्वीकृत होता है, तो लोकहित से जुड़ी जानकारियाँ भी निजता के नाम पर प्रतिबंधित हो जाएगी जिससे सूचना अधिकार कानून की बुनियाद भ्रष्टाचार, पारदर्शिता एवं जवाबदेही की मूल अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी, और यह कानून कमजोर हो जाएगा। अभी तक यह प्रावधान है कि लोकहित से जुड़ी जानकारियाँ भी प्रकट की जाए, भले वे निजता की श्रेणी में आती है। लेकिन इस बिल के पास हो जाने से ऐसा नहीं होगा और लगभग 95 प्रतिशत जानकारियां इस बिल से प्रभावित हो जाएगी। यह वेबिनार रीवा के जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी के संयोजन में हुआ। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गाँधी एवं छतीसगढ़ के सूचना अधिकार कार्यकर्ता देवेद्र खंडेलवाल ने इस बिल के पास हो जाने से सूचना अधिकार कानून पर पडऩे वाले दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला। सनोलिया के मुताबिक इस वेबिनार में सरकार की इस नीति के खिलाफ एक जन आंदोलन खड़ा करने का निर्णय लिया गया। जनता को अब आगाह किया जाएगा जिस कानून के तहत जो अधिकार एक संासद एवं विधायक को प्रश्न के माध्यम से जानकारियाँ पूछने का अधिकार मिला है, उसी प्रकार का अधिकार आरटीआई अधिनियम 2005 के तहत जनता को मिला है उस कानून में संशोधन कर जनता के अधिकारों को कुचला जाने का प्रयास किया जा रहा है। समाचार पत्रों के माध्यम से आरटीआई कार्यकर्ता इस संशोघन बिल के दुष्परिणों का प्रचार करें।


पूर्व सूचना आयुक्तों ने जताई चिंता
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गाँधी ने कहा इस बिल के पास हो जाने से आरटीआई कानून में भ्रष्टाचार उजागर नहीं हो सकेगा। जवाबदेही एवं पारदर्शिता भी प्रभावित होगी। कारण कि सरकारी कार्यालय में हर जानकारी किसी अधिकारी से जुड़ी होती है और अधिकारी इस संशोधन बिल की आड़ में निजी जानकारी बताकर सूचना अधिकार में प्रकट नहीं करेंंगे। मप्र के पूर्व सूचना आयुक्त एवं वरिष्ठ पत्रकार आत्मदीप ने आम लोगों एवं विशेषकर मीडिया से आव्हान किया वे सूचना अधिकार कानून को बचाने के लिए अपनी जिम्मेदारी को निभाए।

मीडिया पर भी संकट
कार्यक्रम में इस बात पर भी चिंता जताई गई कि अभी तक मीडिया के लोग सरकारी कार्यालय से किसी अधिकारी एवं बाबू के माध्यम से मिली जानकारी के आधार पर किसी विषय पर समाचार का प्रसारण करते हैं, लेकिन इस बिल के स्वीकृत हो जाने से डेटा प्रोटेक्शन के नाम पर यह खबर निजता के दायरे में आ जाएगी और फ्रीडम और प्रेस पर भी प्रश्न चिन्ह खडें़ हो जाएंगे।

हस्ताक्षर अभियान
छतीसगढ़ के आरटीआई एक्टिविस्ट देवेंद्र खंडेलवाल ने बताया प्रस्तावित कानून में व्यक्ति एवं व्यक्तिगत डेटा को परिभाषित किया गया है जिससे ऐसी कोई सूचना या डेटा शेष नहीं रह जाता जो किसी व्यक्ति से संबंधित ना हो। इस कानून के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति, फर्म, संस्था कंपनी एवं हिंदू अविभाजित परिवार सरकार एवं लोक प्राधिकरण भी शामिल है। इस बिल के खिलाफ सोशल मीडिया के माध्यम से हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा रहा है। सैकड़ों कार्यकर्ता आगे आए हैं। उन्होंने बताया संासदों एवं विधायकों को ज्ञापन देने दिए जाने का भी निर्णय लिया गया।

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