- जेल में डॉक्टर ही नहीं तो मरीज तो मरेंगे
उज्जैन। भैरवगढ़ जेल में पदस्थ पूर्व डॉक्टर का एक साल पहले निलंबन हुआ था। इसके बाद जिला अस्पताल से एक अन्य डॉक्टर को वहाँ ड्यूटी पर भेजा गया था। लेकिन वे भी कुछ दिन बाद यहां से चले गए थे। तब से लेकर अब तक जेल में कोई स्थान डॉक्टर कैदियों के इलाज के लिए नहीं आया है।
करीब एक साल पहले केंद्रीय जेल भैरवगढ़ का निरीक्षण करने कलेक्टर आशीष सिंह पहुँचे थे। उन्होंने जेल की व्यवस्थाओं का जायजा लिया था और उस दौरान उन्हें जानकारी मिली थी कि जेल में पदस्थ डॉ. डेविड नीलम कार्य में लापरवाही करते हैं। कलेक्टर के दौरे के दौरान भी वह ड्यूटी से नदारद थे। इस पर डॉ. नीलम को कलेक्टर ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था। इसी के साथ जिला अस्पताल के डॉ. अनिल कंडारे की वहाँ ड्यूटी लगा दी गई थी। डॉ. कंडारे को भैरवगढ़ जेल में निलंबित किए जा चुके डॉ. डेविड नीलम के स्थान पर कैदियों का उपचार करना था। लेकिन तत्कालिन जेल अधीक्षिका अलका सोनकर ने बताया था कि ज्वाइन करने के बाद डॉक्टर पिछले साल 26 सितंबर तक ड्यूटी पर आए, उसी दिन उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य में गड़बड़ी के चलते उन्हें होम कोरोन्टाइन रहना होगा। इस कारण वे कुछ दिन ड्यूटी पर नहीं आएँगे। कोरोन्टाइन की अवधि बीत जाने के बाद भी जब डॉ. कंडारे ड्यूटी पर वापस नहीं आए तो उन्होंने जेल में अन्य किसी डॉक्टर की ड्यूटी निर्धारित करने के लिए तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. महावीर खंडेलवाल को पत्र भी लिखा था। उसके बाद डॉ. खण्डेलवाल ने फिलहाल जिला अस्पताल में डॉक्टरों की आवश्यकता बताते हुए पुलिस विभाग में पदस्थ डॉक्टर को जेल में कैदियों के उपचार के लिए भेजने का कहा था। इसके बावजूद अभी तक जेल में कोई स्थायी चिकित्सक की नियुक्ति नहीं हो पाई है। नवागत जेल अधीक्षक उषाराज का कहना है कि आवश्यकता पडऩे पर कैदियों के उपचार के लिए अन्य डॉक्टरों को इमरजेंसी में बुलाया जाता है। जिला अस्पताल से अभी डॉ. विनित अग्रवाल प्रत्येक गुरूवार को यहां मानसिक रोग के शिकार कैदियों का उपचार करने हर हफ्ते जा रहे हैं।
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