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छह महीने के लॉकडाउन में कबाड़ हो गई दर्जनों सिटी बसें

रांची: वैश्रि्वक महामारी कोविड-19 को लेकर लगभग छह महीने से सबकुछ बंद है। जुलाई और अगस्त में कुछ सेक्टर को रिलीफ देते हुए खोलने का आदेश दिया गया। लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को इस दौरान भी लॉक ही रखा गया। हालांकि, पैसेंजर ऑटो को कुछ शर्तो के साथ चलाने की अनुमति मिली है। लेकिन राजधानी रांची में चलने वाली सिटी बसों को इसकी अनुमति नहीं मिली। अनलॉक 4 में भी सिटी बसों को चलाने की अनुमति नहीं मिली। लगभग छह महीने से शहर में चलने वाली बसें जहां-तहां खड़ी हैं। कुछ बकरी बाजार के स्टोर में तो कुछ नागा बाबा खटाल स्थित एमटीएस सेंटर के पीछे लगी हैं। लॉकडाउन के दौरान बसों की हालत कबाड़ से भी बुरी स्थिति में आ गई है। सिर्फ बाहर से बस का ढांचा रह गया है, बसों के अंदर के सामान या तो चुरा लिए गए या तोड़ दिए गए। इन बसों की वर्तमान स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है।

मेंटेनेंस के अभाव में कबाड़

सिटी बसों का रखरखाव सही ढंग से नहीं होने की वजह से दिनों दिन इसकी हालत और भी खराब होती जा रही है। बसों के अंदर सिटी से लेकर ड्राइवर की स्टीयरिंग तक सभी बर्बाद हो चुके हैं। बसों के अंदर रखी बैट्री से लेकर अन्य सभी जरूरी सामान चोरी हो चुके हैं। इसकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है। इधर, नगर निगम का कहना है कि बकरी बाजार में जो सिटी बसें खड़ी हैं, वो कंडम हो चुकी हैं। लेकिन नागा बाबा खटाल के पास लगने वाली बसें रनिंग कंडिशन में हैं, जबकि बसों को देखने पर इसकी सच्चाई पता चलती है।

12.50 लाख रुपए की एक बस

2017 में तत्कालीन नगर आयुक्त प्रशांत कुमार के कार्यकाल में इन बसों की खरीदारी हुई थी। फ‌र्स्ट फेज में 26 नई बसें 3.25 करोड़ (तीन करोड़ पच्चीस लाख) में खरीदी गई थीं। एक बस की कीमत उस वक्त लगभग 12.50 लाख रुपए थी। इसके बाद 39 बसों की और खरीदारी हुई। नगर निगम एक ओर बस की खरीदारी करता रहा, दूसरी ओर पुरानी बसें कंडम होती चली गईं। निगम ने पुरानी बसों को रिपेयरिंग कर चलवाने का प्रयास कभी नहीं किया।

हाल ही में खरीदारी भी हुई थी

हाल ही में 26 और नई बसों की खरीदारी नगर निगम की ओर से की गई थी। निगम के पास कुल 91 बसें हैं, जिसमें आधे से अधिक कंडम हो चुकी हैं। 51 बसें चलने लायक थीं, लेकिन उसमें भी अधिकतर की हालत खराब हो चुकी है। फिर भी नगर निगम के सिटी मैनेजर का कहना है कि बसों की हालत दुरुस्त है। हाल ही में तेल डाल कर बसों को स्टार्ट करके देखा गया है। लेकिन यह तस्वीर कुछ और ही बता रही है।

बसों में ही छलक रहे जाम

सिटी बसों का परिचालन अब पैसेंजर ढोने के लिए नहीं होता, बल्कि इसका उपयोग शराब के सेवन के लिए किया जा रहा है। शाम के बाद सिटी बसों में ही असामाजिक तत्व आकर शराब पीते हैं। यहां सीट के नीचे रखी शराब की बोतलें इसे साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। जनता के पैसे से खरीदी गई सिटी बसों का ख्याल नगर निगम नहीं रख रहा है। बसों के टायर भी धीरे-धीरे खराब हो रहे हैं। अंदर से बैट्री भी निकाल ली गई। ड्राइवर और पैसेंजर की सीट पर जमी धूल नगर निगम की कार्यशैली पर सवाल उठा रही है। लॉकडाउन के बाद से ही नगर निगम के अधिकारी, पदाधिकारी या कर्मचारी किसी ने भी इन बसों की ओर ध्यान नहीं दिया। लॉकडाउन से पहले नगर निगम की ओर से ही इन सिटी बसों का परिचालन किया जा रहा था। अप्रैल से बस सेवा पूरी तरह से बंद है।

बसों की स्थिति ठीक है। तेल डाल कर चेक किया गया है। नगर निगम क्षेत्र में सिटी बसों के परिचालन के लिए डीसी को पत्र लिखकर आदेश मांगा गया है। कोई जवाब नहीं मिलने के कारण इस पर किसी तरह का निर्णय नहीं हो पा रहा है। हालांकि, 10 से 12 बसें इमरजेंसी सेवा में चलाई जा रही हैं।

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