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चेतावनी : इस वजह से लोगों में तेजी से बढ़ रहे हैं डेमेंशिया के मामले, भारत में भी गंभीर खतरा

नई दिल्ली। दुनियाभर के लिए वायु प्रदूषण सबसे बड़े खतरों में से एक बना हुआ है। प्रदूषण जनित तमाम बीमारियों के कारण हर साल दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हो जाती है। भारत के संदर्भ में बात करें तो यहां भी कई शहरों में प्रदूषण का खतरा साल-दर साल बढ़ता ही जा रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ता जा रहा प्रदूषण का स्तर फेफड़ों और हृदय सहित शरीर के तमाम अन्य अंगों को भी गंभीर क्षति पहुंचा रहा है। इसे से संबंधित हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि वायु प्रदूषण के सूक्ष्म कण लोगों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहे हैं, सूक्ष्म कणों का बढ़ता हुआ स्तर डेमेंशिया जैसे मनोरोग का कारण बन रहा है।

वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान वायु प्रदूषण और डेमेंशिया के बीच के संबंधों के बारे में पता लगाया है। डेमेंशिया, मानसिक रोगों की एक गंभीर समस्या है जिसमें लोगों में कमजोर याददाश्त, भाषा को समझने, समस्याओं का समाधान कर पाने और सोचने की क्षमता से संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं। यह समस्या व्यक्ति के सामान्य जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर देती हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर लोगों को डेमेंशिया से बचे रहने के लिए शुद्ध वातावरण में रहने की सलाह दी है। आइए आगे की स्लाइडों में अध्ययन की महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं।

डेमेंशिया और वायु प्रदूषण
शोधकर्ताओं ने लंबे समय से किए जा रहे दो अध्ययनों के डेटा के विश्लेषण के आधार पर यह परिणाम निकाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वायु प्रदूषण (पीएम 2.5 या 2.5 माइक्रोमीटर) वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में डेमेंशिया का खतरा अधिक देखा जा रहा है। इन्वायरमेंटल हेल्थ प्रॉस्पेक्टिव नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया कि पहले से ही प्रदूषण के प्रकोप वाले शहरों में  वायु प्रदूषण में 1 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की वृद्धि भी डेमेंशिया के खतरे को 16 फीसदी तक बढ़ा सकती है। 


मस्तिष्क की विकृतियों को जन्म दे रहा है वायु प्रदूषण
साल 1994 से शुरू हुए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 4000 से अधिक लोगों को शामिल किया गया। इनमें से समय के साथ करीब 1000 लोगों में डेमेंशिया का निदान किया गया। इन लोगों की तुलना स्वच्छ हवा वाले स्थानों पर रहने वाले लोगों के साथ की गई। अध्ययन के मुख्य लेखक राहेल शैफर कहते हैं, हम जानते हैं कि डेमेंशिया लंबे समय में विकसित होने वाली समस्या है। मस्तिष्क में इन विकृतियों को विकसित होने में वर्षों, यहां तक कि दशकों लगते सकते हैं इसलिए हमें उस विस्तारित अवधि को कवर करने वाले एक्सपोजर को देखने की जरूरत है। इस अध्ययन के आधार पर हम कह सकते हैं कि वायु-प्रदूषण उन्हीं में से एक है।

वायु प्रदूषण का न्यूरोडीजेनेरेटिव असर सामने आया 
वैज्ञानिकों का कहना है कि आहार, व्यायाम और आनुवंशिकी जैसी स्थितियों को अब तक डेमेंशिया का मुख्य कारक माना जाता रहा है, हालांकि अब इसमें वायु प्रदूषण को भी शामिल किया जाना चाहिए। अध्ययन के परिणाम में ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिससे पता चलता है कि वायु प्रदूषण का न्यूरोडीजेनेरेटिव प्रभाव हो सकता है जो इस तरह की गंभीर मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकता है। कई देशों में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है, अगर समय रहते इसपर नियंत्रित नहीं प्राप्त किया गया तो आने वाले वर्षों में बड़ी आबादी मानसिक रोगों का शिकार हो सकती है।

कैसे कम करें डेमेंशिया का खतरा?
शोधकर्ताओं का कहना है कि सभी लोगों को व्यक्तिगत रूप से वायु प्रदूषण से सुरक्षित रहने के उपायों को प्रयोग में लाते रहना होगा। इसके लिए मास्क पहनना अच्छा विकल्प माना जा सकता है, कोविड ने लोगों में यह आदत तो डाल ही दी है। इसके अलावा सभी सरकारों को विस्तृत रूप से इसपर विचार करने की आवश्यकता है। बढ़ते हुए प्रदूषण का स्तर मानसिक समस्याओं के साथ शरीर में कई अन्य तरह की गंभीर समस्याओं का भी कारण बन सकता है। वायु प्रदूषण को दूर करने के दीर्घकालिक उपायों के बारे में विचार किया जाना चाहिए।

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