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Dussehra: रावण के पुतले का ही क्यों होता है दहन? अन्य किसी राक्षस का क्यों नहीं

नई दिल्ली। दशहरे (Dussehra) के दिन रावण का पुतला दहन (Ravana’s effigy burning) करने की परंपरा है। हालांकि कई जगह रावण की पूजा (worship of Ravana) भी होती है और दहन नहीं होता है। दशहरा (Dussehra) के दिन भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। दशहरे के दिन ही नवरात्रि की समाप्ति होती है. इसी दिन देवी मां की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। अब सवाल ये उठता है कि रावण के ही ​पुतले का दहन क्यों होता है, जबकि बुराई पर अच्छाई की जीत के कई और उदाहरण भी हैं. कंस वध हो या फिर कोई अन्य शक्तिशाली राक्षस का अंत. तो आइये ज्योतिषाचार्य शैलेंद्र पांडेय से जानते हैं इसके पीछे की मुख्य वजह।

अत्यंत शक्तिशाली था रावण
ज्योतिषाचार्य शैलेंद्र पांडेय ने बताया रावण पर विजय हासिल करना इतना आसान नहीं था. रावण तपस्वी, मूर्धन्य, समस्त अस्त्र-शस्त्रों का पारंगत बलशाली सोने की लंका का सम्राट था. इतना ही नहीं रावण प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता था. यही वजह थी कि राम ने लक्ष्मण को मृत्यु-शैय्या पर पड़े रावण के पास राजधर्म का रहस्य जानने भेजा था।


ज्योतिषाचार्य के अनुसार रावण की कोई मामूली सत्ता नहीं थी. रावण के 10 सिर थे. धर्म कहता है 10 दिशाएं होती हैं, जो रावण 10 दिशाओं पर नियंत्रण कर सकता था, उस पर विजय प्राप्त करना बड़ी बात थी। इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं और इसे विजय पर्व के रूप में मनाते हैं। अहंकार और क्रोध ने रावण का तो सर्वनाश किया ही साथ ही इस आग ने पूरे राक्षस कुल को भी प्राण देकर रावण के बुरे कर्मों की कीमत चुकानी पड़ी। इसीलिए राम ने जब रावण का वध किया, तो इससे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा गया।

राम और रावण की कुंडली देखें तो…
ज्योतिषाचार्य शैलेंद्र पांडेय ने बताया कि 10 दिशाओं पर नियंत्रण रखने वाले रावण पर विजय हासिल करना आसान काम नहीं था. भगवान श्रीराम और रावण दोनों की ही कुंडली बहुत शक्तिशाली थी. दोनों की लग्न में विद्यमान बृहस्पति दोनों को अत्यंत पराक्रमी और शक्तिशाली बनाता था. भगवान राम के लग्न का मालिक चंद्रमा और रावण के लग्न का मालिक सूर्य था. चंद्रमा सौम्य स्वभाव देता है, जबकि सूर्य उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता है. यहां अंतर ये भी था कि भगवान राम का बृहस्पति उच्च का है, जो उन्हें विशिष्ट बनाता है. हालांकि रावण के बृहस्पति ने भी उसे अच्छे परिणाम दिए।

ज्योतिषाचार्य शैलेंद्र पांडेय ने बताया कि रावण की कुंडली की एक और बड़ी मुश्किल ये थी, कि पंचम भाव में धनु राशि में राहु बैठा हुआ है, जिसने मति भ्रष्ट कर दी और इसी वजह से रावण को राक्षस की श्रेणी में रख दिया गया. कुछ यही वजह थीं कि भगवान राम का बृहस्पति भारी रहा और रावण की हार हुई. दोनों की कुंडली बेहद मजबूत और शक्तिशाली थीं. दोनों ही पराक्रमी और बुद्धिमान थे, लेकिन इसके बाद भी अच्छाई ने बुराई को हराकर जीत कायम की. इस दिन संसार को एक नया संदेश मिला कि बुराई या झूठ कितना भी शक्तिशाली ही क्यों न हो, अंत में हार अच्छाई और सत्य की ही होती है. इसी वजह से बुराई रूपी रावण के पुतले के दहन की परंपरा निभाई जाती है।

दशहरे के दिन करें मां दुर्गा और राम का पूजन
मान्यता है कि भगवान राम की पूजा से विजय प्राप्त होती है. भगवान राम को ये वरदान दो जगह से प्राप्त होता है. एक सूर्य से जब महर्षि अगस्त्य उन्हें बताते हैं आदित्य ह्रदय स्त्रोत के बारे में और दूसरा भगवान श्रीराम स्वंय महानवमी की पूजा करते हैं और दशहरे के दिन विजय प्राप्त करते हैं. दशहरे के दिन अस्त्र-शस्त्रों की भी पूजा की जाती है और विजय का पर्व भी मनाया जाता है।

दशहरे के दिन महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा के उस स्वरूप की पूजा होती है, जिसमें मां दुर्गा का शक्ति का सबसे प्रचंड स्वरूप है, जिसमें मां दुर्गा पापों का नाश कर रही हैं. वहीं भगवान राम की पूजा होती है, क्योंकि दशहरा भगवान श्रीराम की विजय का पर्व है. इस दिन आप मां दुर्गा और भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं, तो इससे संपूर्ण बाधाओं का नाश होता है. दशहरे ​के दिन अस्त्र-शस्त्र का पूजन इसलिए किया जाता है कि उससे किसी तरह का नुकसान न हो. किसी गलत व्यक्ति पर नहीं चल जाए. चातुर्मास में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत नहीं करते हैं, लेकिन दशहरे के दिन किसी भी कार्य की शुरुआत करना शुभ है. इस दिन हवन पूजन करके अपने नवग्रहों को शांत करने के लिए उपाय भी कर सकते हैं।

रावण के दहन समय क्या करना चाहिए
इस दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है. माना जाता है कि जो इस आयोजन में शामिल होता है, उसके जीवन में बहुत सारी उपलब्धियां हासिल होती हैं. जब रावण दहन शुरू होने वाला होता है, तो मां दुर्गा और भगवान श्रीराम का स्मरण करें. जब रावण का पुतला जल रहा होता है, तो भगवान श्रीराम का स्मरण करें और फिर पुतला हुआ जलता देखें. जब पुतला दहन हो जाए, तब मां दुर्गा और भगवान राम की आरती करें। इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार परिवार के साथ मिलकर प्रार्थना करें। इससे जीवन में विजय मिलेगी और जीवन में आने वाली हर प्रकार की बाधाएं दूर हो जाएंगी।

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