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वित्त मंत्रालय कैपिटल गेन पर टैक्स और अवधि बदलने की तैयारी में

नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय टैक्स (finance ministry tax) को लेकर समय समय पर अपनी आर्थिक नीतियों (economic policies) में बदलाव करता रहता है। इस बार भी अपने बजट में भी बदलाव किए गए हैं। अब वित्त मंत्रालय (finance ministry tax) के अधीन आने वाला राजस्व विभाग दीर्घकालिक लाभ पर लगने वाले कर में बड़े बदलाव की तैयारी कर रहा है। राजस्व सचिव तरुण बजाज ने बुधवार को कहा कि सरकार शेयरों, ऋण और अचल संपत्ति पर पूंजीगत लाभ कर की गणना के लिए विभिन्न दरों और होल्डिंग अवधि में बदलाव करने के लिए तैयार है।



बता दें कि आयकर अधिनियम के तहत चल और अचल दोनों तरह की पूंजीगत संपत्तियों की बिक्री से होने वाला लाभ पूंजीगत लाभ कर के दायरे में आता है, हालांकि, अधिनियम के तहत कार, परिधान, फर्नीचर जैसी व्यक्तिगत चल संपत्तियां इस कर के दायरे से बाहर हैं। बजाज ने कहा कि संपत्तियों पर विविध दरों और होल्डिंग की अवधि के लिहाज से पूंजीगत लाभ का कर ढांचा काफी जटिल है। इस पर फिर से गौर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दर, होल्डिंग अवधि के लिहाज से पूंजीगत लाभ ढांचे पर फिर से काम करने की जरूरत है। अगली बार जब भी अवसर मिलेगा, हम इसमें बदलाव करने को तैयार रहेंगे। उन्होंने कहा कि विभाग भारत जैसे अन्य देशों और विकसित दुनिया में दरों का अध्ययन कर चुका है। आमतौर पर 36 महीने से अधिक समय तक रखी जाने वाली संपत्ति को दीर्घकालिक संपत्ति कहा जाता है।
राजस्व सचिव ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में कर और अवधि दोनों काफी पेचीदा हैं। उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट में पूंजीगत लाभ पर कर के लिए 24 महीने की अवधि है। वहीं शेयर्स में यह अवधि 12 महीने है। जबकि कर्ज के लिए यह अवधि 36 महीने हैं। हमें इस पर काम करनी की जरूरत हैं।
बजाज ने कहा कि उद्योग मंडल से भी दुनियाभर में पूंजीगत लाभ कर की प्रचलित दरों का अध्ययन करने के लिए कहा जाएगा। राजस्व सचिव ने कहा कि जब भी इस प्रकार के बदलाव किए जाते हैं तो इससे करदाताओं के एक वर्ग को लाभ होता है और दूसरे वर्ग को नुकसान होता है। यही सबसे कठिन हिस्सा होता है।

अभी सरकार करदाताओं से दो प्रकार का पूंजीगत लाभ कर लेती है। इसको शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (एसटीसीजी) और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (एलटीसीजी) कहा जाता है। सामान्य तौर पर 36 महीने से कम अवधि में बेची जाने वाली संपत्ति पर एसटीसीजी वसूला जाता है, जबकि इससे ज्यादा अवधि के बाद बेची जाने वाली संपत्ति पर एलटीसीजी वसूला जाता है। एसटीसीजी की गणना करदाता पर लागू होने वाले सामान्य आयकर की दर के आधार पर होती है। जबकि किसी कंपनी के इक्विटी शेयर, इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड की यूनिट या कारोबारी ट्रस्ट से होने वाले पूंजीगत लाभ पर 10 से 20 फीसदी की दर से कर की गणना होती है। यह कर सामान्य आयकर से अतिरिक्त होता है। इसको एलटीसीजी भी कहा जाता है। आयकर की देनदारी ना होने के बावजूद एलटीसीजी का भुगतान करना होता है।

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