ब्‍लॉगर

अदालतों की सुरक्षा राम भरोसे कब तक ?

– डॉ. रमेश ठाकुर

राजधानी की जिला अदालतों में लगातार घटती खून वारदातों ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। एक ही किस्म की घटनाएं बार-बार क्यों घट रही हैं। क्यों उन्हें नहीं रोका जा रहा। घटना भी ऐसी एकदम पुलिस के नाक के नीचे हो रही हैं। फिलहाल दिल्ली के रोहिणी कोर्ट की घटना ने सुरक्षा में हुई भयंकर चूक को एक्सपोज किया। स्थानीय पुलिस व स्पेशल सेल के दर्जनों कर्मियों की मौजूदगी में दो गैंगस्टरों के बीच तड़ातड़ गोलियां चलती रहीं। पुलिसकर्मी अपने बचाव का मोर्चा नहीं संभालते तो जानमाल का भारी नुकसान हो सकता था।

बहरहाल, दिखावे और कहने के लिए तो दिल्ली के जिला अदालतों की सुरक्षा चाकचौबंद रहती है। पर, इसके पूर्व 24 दिसंबर 2015 में कड़कड़डूका कोर्ट में जज के सामने गैंगस्टर छेनू पहलवान और नासिर गिरोह के तीन नाबालिग बदमाशों द्वारा फायरिंग करना। वहीं, 15 नवंबर 2017 में रोहिणी कोर्ट परिसर में एक विचाराधीन कैदी विनोद के सिर में गोली मारकर बदमाशों द्वारा हत्या कर देना बताता है कि राजधानी में जिला अदालतों की सुरक्षा कैसी है। बहरहाल, उन घटनाओं की पुनरावृत्ति पिछले सप्ताह एक बार फिर हो गई जिसमें तीन बदमाश ढेर हुए। लगातार होती गैंगवार की घटनाओं को देखते हुए बीते शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हुई, याचिका में संबंधित अधिकारियों व अथॉरिटी को दिल्ली की अदालतों में सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित करने के निर्देश देने की अपील की गयी। सुरक्षा सुनिश्चित होनी भी चाहिए, क्योंकि दिल्ली में गैंगस्टरों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है।

मारा गया जितेंद्र गोगी नाम का अपराधी दिल्ली का टॉप-10 गैंगस्टर था। इसी के गुट से वर्षों पहले अलग हुआ टिल्लू गुट के सदस्यों ने उसे मारा। पहले दोनों गुटों का मुख्य धंधा सुपारी लेकर मर्डर करने का था। हालांकि अभी भी दोनों गुटों के सदस्य सक्रिय हैं। गोगी भी जेल में था और टिल्लू अभी भी है। दोनों जेल में रहकर अपना गिरोह चला रहे थे। गोगी के मरने के बाद गिरोह की कमान उसके दूसरे साथी ने संभाली है। सूत्र यही बताते हैं कि दोनों को पुलिस ने ही पाला पोसा था। उनके हर मूवमेंट की खबर कुछ पुलिसकर्मियों को होती थी। जेलों में उनकी अच्छी खातिरदारी की जाती रही है। अभी हाल ही गैंगस्टरों के साथ कुछ पुलिसकर्मियों की जेल में पार्टी करने की तस्वीरें भी वायरल हुई थी जिसमें कई नपे हैं।

सवाल उठता है जब अपराधियों की पनाहगार खुद पुलिस होगी तो उन्हें कोर्ट में क्या कहीं भी फायरिंग करने से डर लगेगा। घटना के बाद वकीलों ने पुलिस को कटघरे में खड़ा किया है। उनका तर्क है बिना पुलिस के सहयोग से कोई अपराधी कोर्ट रूप में जाकर इस तरह की हिमाकत नहीं कर सकता। आपस में भिड़ाना और गोलीबारी करवाने के पीछे पुलिस का ही हाथ होता है। इस संबंध में वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल पुलिस कमिश्नर से भी मिला और उनको अपराधियों-गैंगस्टरों की मिलीभीगत से अवगत कराया। रोहिणी कोर्ट शूटआउट की जांच क्राइम ब्रांच को दी गई। वह निष्पक्ष जांच करेगी, इसकी उम्मीद वकीलों को नहीं है। उनकी मांग है ऐसे मामलों की जांच किसी रिटायर्ड जज की निगरानी में कराई जाए।

बहरहाल, घटना से उठे शोर को थामने के लिए रोहिणी कोर्ट की सुरक्षा-व्यवस्था बढ़ाई है। रोहिणी कोर्ट के अंदर-बाहर बड़ी संख्या दिल्ली पुलिस के जवानों और पैरामिलिट्री फोर्स को तैनात किया है। सभी आगंतुक की कड़ाई से जांच हुआ करेगी। पर, सवाल वही है, ये कब तक होगा ? हमने इससे पहले कड़कड़डूमा कोर्ट की घटना के बाद भी देखा था, मेटल डिटेक्टर से लेकर पुलिस कर्मियों की भारी संख्या में तैनाती, सिविल डिफेंस को गेट के बाहर सुरक्षा के लिए लगाया था। आने-जाने वालों के लिए पास अनिवार्य किए गए थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी कम हो गए, आज स्थिति ऐसी है कोई भी कोर्ट रूम तक आसानी से दाखिल हो सकता है। सुरक्षा का ये तामझाम तभी तक रहता है जब तक मीडिया और आमजन में चर्चाएं रहती हैं। चर्चा खत्म होते ही, कामचलाऊ व्यवस्था फिर से लागू हो जाती है जिसका अपराधी फायदा उठाते हैं। सोचने वाली बात है अपराधी घटना को घटित करने के बाद अगले दिन तो आएगा नहीं, दूसरी घटना के लिए वह लंबा गैप लेगा। इसलिए सुरक्षा-व्यवस्था हमेशा के लिए यथावत होनी चाहिए।

रोहिणी कोर्ट में अपराधियों ने बाकायदा दो दिनों तक सुरक्षा इंतजाम का जायजा लिया, तसल्ली होने के बाद घटना को अंजाम दिया। गैंगस्टर गोगी पर फायरिंग करने वाले दोनों शूटरों ने वकीलों की ड्रेस में बिना जांच पड़ताल किए कोर्ट में पहुंचे और बेखौफ होकर जज के सामने दर्जनों पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में पंद्रह मिनट तक गोलीबारी करने के बाद पुलिस की गोली का शिकार हुए। उनका ये बेखौफ अंदाज साफ बताता है कि उनके पीछे किनकी शह थी ? हर पहलुओं की जांच करने की जरूरत है। दोषी चाहें फिर पुलिसकर्मी हों या और कोई, किसी को बख्शा नहीं जाना चाहिए। दिल्ली की जिला अदालतों की सुरक्षा का जिम्मा केंद्र सरकार के पास है। दोबारा से सुरक्षा रिफॉर्म करने की दरकार है। अदालतों की सुरक्षा स्पेशल फोर्स को दी जानी चाहिए, लोकल पुलिस को तत्काल प्रभाव से हटा देना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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