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गुरु के घर में कैसे मुकाबला करेंगे एकनाथ? शिंदे के गढ़ में उद्धव ठाकरे ने चली ये चाल


नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सियासत में उद्धव ठाकरे का सियासी संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. ठाकरे फैमिली में भी शिंदे ने सेंध लगा ली है और उद्धव ठाकरे के बड़े भाई के बेटे निहार ठाकरे को अपने साथ मिला लिया है. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरु आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को ठाणे जिले की कमान सौंपकर सिर्फ सियासी संदेश देने की कोशिश ही नहीं बल्कि राजनीतिक आधार को मजबूत रखने की कवायद की है ताकि शिंदे के जाने की भरपाई दोबारा हो सके.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे दोबारा से पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं. ऐसे में उद्धव ने शिवसेना के दिवंगत नेता आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को पार्टी की ठाणे जिला इकाई का प्रमुख नियुक्त किया. उद्धव ने यह फैसला उस समय लिया था जब नरेश म्हास्के ने शिंदे के समर्थन में अपना इस्तीफा दे दिया था, जिसके चलते शिवसेना की ठाणे जिला इकाई के अध्यक्ष का पद खाली था. ऐसे में उद्धव ने केदार दिघे को जिले की कमान सौंपकर आनंद दिघे की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने और शिंदे की सियासत को काउंटर करने का दांव चला था.

उद्धव ने आनंद दिघे की करीबी सहयोगी और शिवसेना की महिला इकाई की अगुवाई करने वाली अनीता बिरजे को ठाणे का उपनेता किया था. शिवसेना के सचिव विनायक राउत ने एक बयान में कहा कि प्रदीप शिंदे को शिवसेना की ठाणे नगर इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. ठाणे जिले में उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के जाने से होने वाली कमी को भरपाई करने की कोशिशों के तौर पर देखा जा रहा है.

बता दें कि महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से सटे ठाणे जिले के सबसे प्रभावशाली नेताओं में एकनाथ शिंदे की गिनती होती है, लेकिन सियासत में वह आनंद दिघे की क्षत्रछाया में पढ़े बढ़े और उनकी उंगली पकड़कर अपनी जगह बनाई. ठाणे-कल्याण के इलाके के दिघे ताकतवर शिवसेना नेता माने जाते थे. शिवसेना के शुरुआती नेताओं में से एक थे, जो ठाणे में शिवसेना को मजबूत करने में अहम भूमिका अदा की है. हिंदुत्व और मराठी अस्मिता को लेकर आनंद दिघे आगे बढ़े.


शिवसेना के एक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी सियासी पारी का आगाज किया, जिससे प्रभावित होकर बाल ठाकरे ने उन्हें ठाणे में पार्टी को खड़ी करने का जिम्मा सौंप दिया. शिवसेना ठाणे जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद दिघे कार्यालय में ही रहने लगे. दिघे शिवसेना की स्‍थानीय इकाई पर मजबूत नियंत्रण था. उन्‍होंने इलाके में शिवसेना का परचम बुलंद कर दिया था. साल 2001 के अगस्‍त महीने में कार एक्‍सीडेंट में आनंद दिघे घायल हो गये थे, लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी.

आनंद दिघे के बाद शिवसेना की कमान ठाणे में एकनाथ शिंदे को मिली थी. शिंदे लंबे समय तक खुद इस पद पर रहे और बाद में उन्होंने अपने करीबी नेताओं को संगठन की जिम्मा देते रहे. यही वजह रही कि शिंदे ने बगावत का झंडा उठाया तो ठाणे के शिवसेना जिला अध्यक्ष नरेश म्हास्के भी बागी हो गए और उन्होंने पद छोड़ दिया. ऐसे में शिंदे जब आनंद दिघे की बातें कर रहे हैं और उनके आदर्शों पर चलने का दावा कर रहे हं तो उद्धव ठाकरे ने उसी के जवाब में ठाणे जिले में पार्टी की कमान आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को सौंप दी. उद्धव ने इस तरह दिघे की सियासी विरासत पर शिंदे काबिज होते कि उससे पहले बड़ा दांव चल दिया है.

दरअसल, एकनाथ शिंदे के साथ ठाणे जिले के तमाम बड़े नेता उद्धव खेमा छोड़ चुके हैं, जिसे शिवसेना के एक समय सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाले ठाणे में पार्टी को लेकर सियासी संकट गहरा गए थे. महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में पालघर, ठाणे, रायगढ़, मुंबई, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिले आते हैं. यह शिवेसना का शुरू से ही मजबूत गढ़ माना जाता है और सत्ता का पहला स्वाद ठाणे से ही शिवसेना ने चखा था.

कोंकण के ठाणे इलाके में शिवसेना के मजबूत नेता आनंद दिघे हुआ करते थे तो नारायण राणे भी कभी बाल ठाकरे के राइट हैंड थे, जो सिंधदुर्ग जिले से हैं. शिंदे ने कोंकण में कायम किया जलवा आनंद दिघे के निधन बाद और नारायण राणे के पार्टी छोड़ने के बाद एकनाथ शिंदे शिवसेना और ठाकरे परिवार के करीबी बने. इस तरह उन्होंने ठाणे जिले सहित पूरे कोंकण इलाके में अपना सियासी प्रभाव स्थापित किया.

शिंदे की ताजपोशी के साथ ही ठाणे में उद्धव ठाकरे के लिए सियासी चुनौतियां खड़ी हो गई थी. एकनाथ शिंदे की सियासी कर्मभूमि ठाणे है. ऐसे में उद्धव ने आनंद दिघे के भतीजे को पार्टी की कमान सौंपकर उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के साथ-साथ शिंदे के कमी को दूर करना का सियासी दांव चला है. देखना है कि शह-मात के खेल में कौन भारी पड़ता है?

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