मुंबई। भारत की सबसे बड़ी हॉस्पिटैलिटी कंपनी इंडियन होटल्स कंपनी (IHCL) ने भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण व उन्नति में मदद देने के लिए यूनेस्को के साथ सहभागिता करने की घोषणा की है। यह पहल महामारी के बाद की दुनिया में यात्रा के परिदृश्य में बदलाव लाने की व्यापक मुहिम का एक हिस्सा है।
IHCL और यूनेस्को मिलकर IHCL के विभिन्न होटलों में यात्रियों के लिए अनुभवजन्य टूर की पेशकश करेंगे ताकी वे देश की जीवंत विरासत का अनुभव कर सकें। पहले चरण में शामिल होगा स्थानीय समुदायों का दौरा जो किसी कला का अभ्यास करते हों जैसे की बंगाल की पटचित्र कला जो वहां की पारंपरिक स्क्रॉल पेन्टिंग तकनीक है, वाराणसी के दशाश्वमेध घाट में गंगा आरती, कालबेलिया नृत्य, नीले बर्तन बनाने कला, बगरु हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग और मोलेला की टेराकोटा कला। पर्यटक राजस्थान में बिश्नोई गांव के विशिष्ट आदिवासी जीवन तथा कर्नाटक में मैसूर का दशहरा व जनपदलोक का अनुभव ले सकेंगे।
इस मौके पर आईएचसीएल के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट एवं ग्लोबल हैड-मानव संसाधन गौरव पोखरियाल ने कहा, “एक सदी से आईएचसीएल भारतीय विरासत को आगे बढ़ाने का काम करती आ रही है और ऐसे मंच मुहैया करा रही है जो स्थानीय कला एवं संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन कर रहे हैं। हॉस्पिटैलिटी उद्योग में यह इस किस्म की सबसे पहली सहभागिता है और यूनेस्को के साथ यह साझेदारी करते हुए हम बहुत प्रसन्न हैं, हम मिलकर भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करेंगे। अपनी कारोबारी शक्ति, वैल्यू चेन व पार्टनर नेटवर्क का लाभ लेकर आईएचसीएल के होटल एक समग्र योजना पर काम करेंगे तथा देश की जीवंत संस्कृति को सुरक्षित करते हुए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाएंगे।”
यूनेस्को दक्षिण एशिया के निदेशक व प्रतिनिधि ऐरिक फाल्ट ने कहा, “आईएचसीएल के साथ हम भारतीयों और विदेशियों को भारत की जीवंत विरासत की विविधता के दर्शन कराना चाहते हैं। इसका उद्देश्य यह है की जब वे आईएचसीएल के किसी होटल में जाएं तो उन्हें संस्कृति के कम से कम एक पहलू को जानने का मौका मिले जिसे उन्होंने संभवतः पहले कभी न देखा हो। होटल में नृत्य दल को लाने के बजाय हम आगंतुकों को कलाकारों के समुदाय में ले जाकर उन्हें उस कला से परिचित कराएंगे। वे उनका गौरव देखेंगे, वे उनकी विशिष्टता देखेंगे, वे अमूर्त भारत की अतुलनीय विविधता के दर्शन करेंगे।”
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा हेतु 2003 यूनेस्को सम्मेलन को 178 देशों ने अपनाया है, जिसमें सांस्कृतिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के महत्व पर ज़ोर दिया गया है। अमूर्त सांस्कृतिक विरासत किसी देश की जीवंत विरासत का प्रतिनिधित्व करती है तथा यह उन अभ्यासों, प्रतिनिधित्वों, अभिव्यक्तियों, ज्ञान व कौशल, उपकरणों, वस्तुओं, कलाकृतियों व सांस्कृतिक दायरों से मिलकर बनता है जिन्हें कोई समुदाय, समूह या कुछ मामलों में व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत के तौर पर मान्यता देते हैं।
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