न्यूयॉर्क (New York)। ऊंची ब्याज दरों (high interest rates) और विदेश (abroad) में भारतीय उत्पादों की कमजोर मांग (Weak demand for Indian products) के कारण 2023 में भारत (India) का निवेश एवं निर्यात (investment and export) प्रभावित हो सकता है। इसके बावजूद भारत मजबूत बना रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा, चुनौतियों के बाद भी दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सबसे बड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था 2023 में 5.8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी।
संयुक्त राष्ट्र ने जनवरी में भी आर्थिक वृद्धि दर 5.8 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग के प्रमुख हामिद राशिद ने भारत को दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए ‘ब्राइट स्पॉट’ करार देते हुए कहा, जनवरी में जताए गए हमारे अनुमान बदले नहीं है। हम भारत में कई सकारात्मक चीजें होती देख रहे हैं।
महंगाई पर लगाम बड़ी वजह
राशिद के अनुसार, भारत ने महंगाई दर तब 5.5% के करीब रखी है, जब दक्षिण एशिया में औसतन 11 फीसदी पर है। यह संकेत है कि भारत अब भी वित्तीय विस्तार और उदार मौद्रिक नीति की काफी संभावना रखता है। यह भी अंतत: घरेलू मांग को बढ़ाने वाले साबित होंगे।
आरबीआई को भी सराहा
दक्षिण एशिया के सभी प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने महंगाई और विनिमय दर को नियंत्रित करने के लिए 2023 की शुरुआत में भी ब्याज दरें बढ़ाना जारी रखा। आरबीआई ने मई, 2022 से 2.5% बढ़ाने के बाद अप्रैल, 2023 तक दरों को 6.5% पर बनाए रखा।
चुनौती अब भी
हामिद राशिद ने कहा, बाहरी वित्तीय हालात और बिगड़ते हैं, तो भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
दुनियाभर में सुधार की उम्मीदें अभी फीकीं
रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि पूरी दुनिया में मजबूत आर्थिक सुधार की उम्मीदें अभी बहुत फीकी हैं। जिद्दी महंगाई, बढ़ती ब्याज दरें और अनिश्चितताओं भरा समय इसमें बाधा बने हुए हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था लंबे समय तक चलने वाले उस दौर में है, जहां वृद्धि दर धीमी ही बनी रहेगी। इस पर कोविड-19 के प्रभाव बने हुए हैं, जलवायु परिवर्तन से नुकसान बढ़ रहा है और छोटे आर्थिक स्तर पर व्यवस्थागत चुनौतियां भी कायम हैं।
प्रमुख देशों के लिए अनुमान
-वैश्विक अर्थव्यवस्था 2023 में 2.3% की दर से बढ़ेगी। 2024 में वृद्धि दर 2.5% रहेगी।
-अमेरिका में घरेलू खर्च बढ़ने से 2023 में वृद्धि दर 1.1% रहेगी।
चुनौतियां : विकासशील देशों में फंड की कमी : विकासशील देशों में फंड की कमी है। सतत विकास को देखते हुए पूरे विश्व को मदद के लिए आगे आना होगा।
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