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अमेरिकी प्रशासन को भारत की दो टूक, रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रहेगी

– जरूरत हुई तो रूस से कच्चे तेल का आयात किया जा सकता है दोगुना

नई दिल्ली। भारत सरकार (Indian government) ने अमेरिकी प्रशासन (US administration) को साफ कर दिया है कि आर्थिक प्रतिबंधों (economic sanctions) के बावजूद भारत रूस से कच्चे तेल का आयात (crude oil imports from russia) जारी रखेगा। भारत सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि देश की जरूरत को देखते हुए और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के कारण अगर आवश्यकता हुई तो भारत रूस से होने वाले तेल के आयात की मात्रा को दोगुना तक करने का विचार कर सकता है।

भारत दौरे पर आई अमेरिकी प्रशासन की सहायक सचिव एलिजाबेथ रोसेनबर्ग ने राजधानी में सरकार के आला अधिकारियों से मुलाकात कर अमेरिकी प्रशासन की मौजूदा नीति के तहत रूस से कच्चे तेल की खरीद को कम करने या पूरी तरह से रोकने का आग्रह किया था। लेकिन बताया जा रहा है कि भारत सरकार की ओर से साफ कर दिया गया कि देश की जरूरतों को देखते हुए फिलहाल रूस से कच्चे तेल के आयात को रोका नहीं जा सकता है।


एलिजाबेथ रोसेनबर्ग को भारत सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि रूस पर प्रतिबंध लगाने वाले पश्चिमी देश भी अपनी जरूरतों के मुताबिक रूस से कच्चे तेल और गैस का सौदा कर रहे हैं साथ ही रूस की शर्तों के मुताबिक रूस को रूबल में ही भुगतान भी कर रहे हैं। ऐसे में भारत पर रूस से सौदा नहीं करने का दबाव बनाना उचित नहीं है। बताया जा रहा है कि अमेरिकी प्रशासन को यह भी साफ कर दिया गया है कि भारत अपनी जरूरत को देखते हुए आने वाले दिनों में रूस से होने वाले कच्चे तेल के आयात को और भी बढ़ा सकता है।

यूक्रेन और रूस के बीच जंग की शुरुआत होने के बाद से ही अमेरिका तथा पश्चिमी देशों ने रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया है। आर्थिक प्रतिबंध के कारण रूस को तो परेशानी का सामना करना ही पड़ रहा है, कच्चे तेल का आयात करने वाले देशों को सामने भी परेशानी खड़ी हो गई है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूस से होने वाले कच्चे तेल की आपूर्ति रुक गई है। अमेरिकी प्रतिबंध के कारण रूस डॉलर में कोई भी सौदा नहीं कर पा रहा है। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूस से होने वाले कच्चे तेल की सप्लाई पूरी तरह से रुक गई है। जिसकी वजह से कच्चा तेल प्रति बैरल 100 डॉलर से ऊपर जाकर कारोबार कर रहा है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में जबरदस्त इजाफा हो जाने के कारण भारत जैसे देश के सामने परेशानी की स्थिति बन गई है। भारत को अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार से खरीदना पड़ता है। ऐसे में तेल की कीमत में हुई बढ़ोतरी से भारत पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से ही भारतीय बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत भी नई ऊंचाई पर पहुंच गई है।

दूसरी ओर आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल नहीं बेच पाने के कारण रूस ने मित्र देशों को कम कीमत पर कच्चा तेल खरीदने का ऑफर दिया है। भारतीय कंपनियां 70 प्रति बैरल के भाव तक रूस से कच्चे तेल का सौदा कर चुकी हैं। रूस ने भारत को आगे भी डिस्काउंट रेट पर कच्चा तेल देने की बात कही है। से में भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में रूस से दो तिहाई कीमत पर रूस से कच्चा तेल मिल रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के पहले तक भारत रूस से काफी कम मात्रा में कच्चे तेल की खरीद करता था। अप्रैल 2021 से लेकर जनवरी 2022 के बीच में भारत ने रूस से सिर्फ 2.13 अरब डॉलर कीमत का कच्चा तेल खरीदा था, जबकि इस अवधि में अमेरिका से 7.94 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा गया। भारत ने इस अवधि में सबसे अधिक 22.14 अरब डॉलर का कच्चा तेल इराक से और 16.40 कच्चा तेल सऊदी अरब से खरीदा था। इसके अलावा यूएई से 9.02 अरब डॉलर का और नाइजीरिया से 6.80 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा गया था।

रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध लगने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में तेजी आने के बाद भारत ने रूस से मिले डिस्काउंट ऑफर का फायदा उठाते हुए अपनी क्रूड परचेज पॉलिसी में परिवर्तन कर दिया है। इस परचेज पॉलिसी के तहत भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद को बढ़ा दिया है, जबकि अफ्रीकी देशों और अमेरिका से होने वाले कच्चे तेल की खरीदारी को कम कर दिया है।

मार्च 2022 तक भारत के क्रूड इंपोर्ट में रूस, अजरबैजान और कजाकिस्तान से आने आने वाले कच्चे तेल की हिस्सेदारी सिर्फ 3 प्रतिशत की थी, जिसे अप्रैल के महीने में भारत ने बढ़ाकर 11 प्रतिशत कर दिया है। वहीं अफ्रीकी देशों से आने वाले कच्चे तेल की हिस्सेदरी 14.5 प्रतिशत से घटकर अप्रैल में 6 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह अमेरिका से आने वाले क्रूड ऑयल की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से घटकर 3 प्रतिशत रह गई है।

दावा तो ये भी किया जा रहा है कि अगर रूस से भारत को कच्चे तेल की खरीद पर आगे भी डिस्काउंट मिलता रहा, तो आने वाले दिनों में भारत रूस से कच्चे तेल के आयात को बढ़ाकर 20 से 28 प्रतिशत तक ले जा सकता है। हालांकि रूस की ओर से मिलने वाला डिस्काउंट बंद होने के बाद भारत के लिए रूस से इतनी बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद पाना संभव नहीं होगा।

जानकारों के मुताबिक सामान्य दिनों में रूस से कच्चे तेल की खरीदारी भारत के लिए एक महंगा सौदा साबित होती है। क्योंकि कच्चे तेल की खरीदारी के साथ ही उसकी लागत में भारतीय बंदरगाह तक लाने की परिवहन लागत भी जुड़ जाती है। रूस से भारत तक कच्चे तेल की शिपिंग में समय भी अधिक लगता है और ढुलाई की कीमत भी अधिक लगती है। ऐसे में रूस से आने वाला कच्चा तेल भारत आते आते काफी महंगा हो जाता है।

यही कारण है कि सामान्य दिनों में भारत काफी मजबूरी होने की स्थिति में ही रूस से कच्चे तेल की खरीद करता है। लेकिन अभी चूंकि रूस भारत को कच्चे तेल की खरीद पर बंपर डिस्काउंट ऑफर कर रहा है, इसलिए भारत इस मौके को अपने पक्ष में अधिक से अधिक भुनाने की कोशिश में लगा हुआ है, ताकि देश के खजाने पर कम से कम भार पड़ सके। (एजेंसी, हि.स.)

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