-लाल सिंह आर्य
-14 अप्रैल: अवतरण दिवस पर विशेष लेख
श्रद्वेय डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर एक प्रखर राष्ट्रवादी एवं समतामूलक राष्ट्र के नायक के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। भारत भूमि पर जिन नायकों के पराक्रम के बारे में पढ़ते-सुनते आए हैं, उनमें एक डॉ. भीमराव आंबेडकर प्रमुख नायकों में हैं। हमारा भारतीय समाज उन्हें अपनत्व के साथ बाबा साहेब पुकारता है। बाबा साहेब समतामूलक समाज के पक्षधर थे। वह मानते थे कि एक व्यवस्था के भीतर समतावादी न्याय सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को कायम करने की जरूरत होती है। वर्तमान भारत डॉ. भीमराव आंबेडकर के सपनों को सच करता एक राष्ट्र है जहां दलितों और शोषितों को उनका अधिकार मिल रहा है और महिलाओं के हक में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार कार्य कर रही है। कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर एक देश, एक झंडा के बाबा साहब का देखा गया सपना सच हो चुका है। मुस्लिम बहनों के हक में तीन तलाक कानून खत्म कर उन्हें समान रूप से जीने का अधिकार मोदी सरकार ने दिया है। बाबा साहेब के सबका का साथ, सबका विकास का प्रकल्प पूरा हो रहा है।
डॉ. अम्बेडकर के राष्ट्रीय एकता का आधार, महिलाओं को बराबरी का अधिकार, एक देश-एक संविधान-एक कानून, एक शिक्षा-एक देश, एक देश-एक राशनकार्ड, आत्मनिर्भर भारत, नोटबंदी, गरीबों के बैंकों में खाता खोलने, गाँव-गाँव तक सडक़, पीने का पानी, बिजली, हर गरीब को पक्का घर, शौचालय, गैस सिलेंडर-चूल्हा, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के माध्यम से सेवा के संकल्प को पूरा करने की सफल कोशिशें की जा रही हैं।
आज नए भारत का जो स्वरूप हम देखते हैं, उसकी नींव में बाबा साहेब अम्बेडकर की सोच एवं परिश्रम है। सामाजिक समरसता के मसीहा डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया है। डॉ. अम्बेडकर की जीवन यात्रा हर युग में पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करता रहेगा। इस महामना का जन्म मध्यप्रदेश की धरा महू इंदौर में हुआ था जो मध्यप्रदेश को गौरवांवित करता है।
वे देश के पहले कानून मंत्री भी थे। 1951 में महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधेयक पारित नहीं होने से नाराज डॉ. अम्बेडकर ने कानून मंत्री का पद त्याग दिया। डॉ. अम्बेडकर ने निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरुष के लिए समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, निर्वाचन आयुक्त और सामाजिक आर्थिक, शैक्षिक एवं विदेश नीति का निर्माण किया। डॉ. अम्बेडकर ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की सहभागिता सुनिश्वित की।
डॉ. आंबेडकर सबसे वंचित लोगों के सामाजिक उत्थान को प्राथमिकता देना चाहते थे। उनका मानना था कि जाति व्यवस्था, साम्प्रदायिकता, पितृसत्ता और श्रमिकों का औद्योगिक शोषण असमानता पैदा करते हैं और सामाजिक न्याय के मार्ग में बाधा पैदा करते हैं। असमानता के इन स्रोतों के रूढ़ हो जाने और निरंतर बने रहने के चलते डा. आंबेडकर सुझाव देते हैं कि असमानता के शिकार लोगों को सशक्त बनाने के लिए राज्य को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। आंबेडकरवादी न्याय की आधारशिला स्वतंत्रता, समानता और बंधुता है।
उल्लेखनीय है कि एक अधिवक्ता और अर्थशास्त्री के रूप में समाज में अपना स्थान हासिल करने के लिए डॉ. आंबेडकर को बहुत ही कठिन प्रयास करना पड़ा था। इसका कारण यह था कि जिस समाज में उन्होंने जन्म लिया था, उसमें सामाजिक असमानता मौजूद थी। इस चीज ने उन्हें इस बात का गहरा अहसास कराया कि राजनीतिक और आर्थिक न्याय पाखण्ड ही बना रहेगा, यदि उसके पहले सामाजिक न्याय प्राप्त न कर लिया जाए। वे अन्य सभी प्रकार के क्रांतिकारी बदलावों से पहले एक बुनियादी बदलाव लाने वाली सामाजिक क्रांति चाहते थे। अन्य प्रकार के क्रांतिकारी बदलावों में राजनीतिक और आर्थिक बदलाव भी शामिल हैं।
डॉ. आंबेडकर आरक्षण को सामाजिक सशक्तिकरण का एक उपाय बताते हैं। उन्होंने आरक्षण के मसौदे तैयार किए थे, जिसका उद्देश्य वंचित लोगों के सामाजिक और आर्थिक हालात में सुधार करना था। आंबेडकर समाज में बुनियादी परिवर्तन के प्राथमिक कदम के रूप में एक सामाजिक क्रांति की कल्पना करते थे। न्याय हासिल करने के लिए क्रांति की अवधारणा के बारे में डॉ. आंबेडकर का एक भिन्न परिप्रेक्ष्य था। डॉ. आंबेडकर की क्रांति की कल्पना बगावत से मुक्त थी। उसमें खून-खराबे के लिए कोई जगह नहीं थी। वे राजनीतिक क्रांति के लिए सामाजिक क्रान्ति पसंद करते थे। वे लोकतंत्र में विश्वास करते थे।
डॉ. अम्बेडकर भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा को लेकर काफी चिंतित थे। उनका मानना था कि स्त्रियों के सम्मानपूर्वक तथा स्वतंत्र जीवन के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। डॉ. अम्बेडकर ने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का व्यापक समर्थन किया। यही कारण है कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहते हुए ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में प्रस्तुत किया और हिन्दू स्त्रियों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस विधेयक में उन्होंने व्यापक प्रावधान रखे। उल्लेखनीय है कि संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने पर उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात कही गई थी। दरअसल स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात व्यावहारिक धरातल पर इन अधिकारों को लागू नहीं किया जा सका है, वहीं आज भी महिलाएँ उत्पीडऩ, लैंगिक भेदभाव हिंसा, समान कार्य के लिए असमान वेतन, दहेज उत्पीडऩ और संपत्ति के अधिकार ना मिलने जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं।
बाबा साहेब सिर्फ अछूतों, महिलाओं के अधिकार के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण के लिए भी प्रयासरत रहे। उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए उल्लेनीय कार्य किये। पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था। इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ। इसके अलावा उनके प्रयासों से मजदूरों के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम तथा मुआवजा आदि से भी सुधार हुए। उल्लेखनीय है कि उन्होंने मजदूरों को राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया।
अम्बेडकर शिक्षा के महत्व से भली-भाँति परिचित थे। दरअसल अछूत समझी जाने वाली जाति में जन्म लेने के चलते उन्हें अपने स्कूली जीवन में अनेक अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा था। उनका विश्वास था कि शिक्षा ही व्यक्ति में यह समझ विकसित करती है कि वह अन्य से अलग नहीं है, उसके भी समान अधिकार हैं। उन्होंने एक ऐसे राज्य के निर्माण की बात रखी, जहाँ सम्पूर्ण समाज शिक्षित हो। वे मानते थे कि शिक्षा ही व्यक्ति को अंधविश्वास, झूठ और आडम्बर से दूर करती है। शिक्षा का उद्देश्य लोगों में नैतिकता व जनकल्याण की भावना विकसित करने का होना चाहिए। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण में भी योगदान दे सके।
उल्लेखनीय है कि डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा संबंधित यह विचार आज शिक्षा प्रणाली के आदर्श रूप माने जाते हैं। उन्हीं के विचारों का प्रभाव है कि आज संविधान में शिक्षा के प्रसार में जातिगत, भौगोलिक व आर्थिक असमानताएँ बाधक न बन सके, इसके लिए मूलअधिकार के अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा के अधिकार का प्रावधान किया गया है, जो उनकी प्रासंगिकता को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रमाणित करती है।
डॉ. अम्बेडकर अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों पर बल देते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति को न सिर्फ अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए, अपितु उसके लिए प्रयत्नशील भी होना चाहिए, लेकिन हमें इस सत्य को नहीं भूलना चाहिए कि इन अधिकारों के साथ-साथ हमारा देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य भी है। अधिकारों को लेकर उनके यह विचार वर्तमान समय में और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। दरअसल वर्तमान विश्व में सरकारें अपने नागरिकों को विकास के समान अवसर प्राप्त करने के लिए कुछ मौलिक अधिकार प्रदान करती हैं, मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों की भी बात की जाती है।
भारत की पावन धरा पर जन्म लेने वाले ऐसे महान राष्ट्रवादी नायक, समाजिक समानता, समाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता के आधारभूत सोच वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर का उनके अवतरण दिवस पर पुण्य स्मरण करते हैं और इस बात का संकल्प लेते हैं कि भावी भारत हमेशा से उनके बताये रास्ते पर चलकर भारत को विश्व गुरु का स्थान दिलाने में प्रयत्नशील रहेगा। श्रद्धेय बाबा साहेब की जंयति पर शत् शत् नमन्।
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