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नासा और यूरोप के सूर्य मिशन को ‘ग्रहण’ लगा सकता है इसरो का Aditya-L1

नई दिल्‍ली (New Delhi)। चंद्रमा पर सफल लैंडिंग (successful landing on the moon) के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आज सुबह 11.50 बजे श्रीहरिकोटा के दूसरे लॉन्च पैड से सूर्य का अध्ययन करने के लिए अपने आदित्य-एल1 मिशन को लॉन्च करने के लिए तैयार है। 1,480 किलोग्राम के अंतरिक्ष यान को भारत के वर्कहॉर्स पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) द्वारा ले जाया जाएगा और पृथ्वी के चारों ओर 235 किमी x 19,500 किमी की अत्यधिक अण्डाकार कक्षा में स्थापित किया जाएगा। पीएसएलवी आदित्य-एल1 को कक्षा में स्थापित करने में सिर्फ एक घंटे से अधिक समय लेगी। Live: आज सूर्य की यात्रा पर निकलेगा आदित्य L1

नासा और यूरोप का सूर्य मिशन
1995 में, NASA और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने मिलकर सोलर एंड हेलियोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी (SOHO) मिशन लॉन्च किया था। इसे पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के L1 पॉइंट पर रखा गया था। यह मिशन ठीक उसी तरह था जैसा अब इसरो अपने आदित्य-L1 के साथ करने जा रहा है। SOHO अब तक का सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला सूर्य-दर्शन सेटेलाइट है। इस अंतरिक्ष यान ने 11-वर्षीय दो सौर चक्रों का निरीक्षण किया है और इस दौरान इसने हजारों धूमकेतुओं की खोज की है।



हालांकि, कई भारतीय सौर भौतिकविदों का मानना है कि आदित्य-एल1 मिशन और इसके पेलोड NASA-ESA के SOHO की तुलना में कहीं बेहतर हैं। यानी भारत का ये मिशन नासा और यूरोपीय एजेंसी के मिशन को पीछे छोड़ देगा। न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोफेसर रमेश ने बताया, “ग्रहण के दौरान, चंद्रमा बिल्कुल प्रकाशमंडल को ढक लेता है और हम सौर कोरोना को ठीक उसी स्थान से देख पाते हैं जहां से यह शुरू होता है। जब हम इसे कृत्रिम रूप से करने का प्रयास करते हैं, तो हमें एक ऑकल्टिंग डिस्क (occulting disk) लगानी पड़ती है। ऑकल्टिंग डिस्क का साइज बहुत महत्वपूर्ण है, चाहे वह फोटोस्फीयर के समान आकार का हो या बड़ा हो। ऑकल्टिंग डिस्क का आकार फोटोस्फीयर के समान नहीं होने के कारण कुछ समस्याएं रही हैं। इसलिए पहले नासा और ईएसए मिशन कोरोना का ठीक से निरीक्षण नहीं कर पा रहे थे।” प्रोफेसर रमेश की टीम ने आदित्य-एल1 के प्राइमरी पेलोड, विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) को डिजाइन और विकसित किया है।

उन्होंने कहा कि “वे (नासा-ईएसए) हर 15 मिनट में एक इमेज क्लिक करने में सक्षम थे। हम हर मिनट सोलर कोरोना की फोटो क्लिक कर सकेंगे। किसी भी तेज बदलाव को हम बहुत प्रभावी ढंग से पकड़ने में सक्षम होंगे। हम पोलीमीटर नामक एक उपकरण भी भेज रहे हैं, जो चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव की निगरानी करेगा। यह उस समय पूर्व चेतावनी दे सकता है कि कब हिंसक सौर विस्फोट होगा।” इसलिए दुनिया भर के सौर भौतिक विज्ञानी आदित्य-एल1 से आने वाले डेटा को देखने के लिए बहुत उत्साहित हैं।

इस अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु) पर सौर वायु के यथास्थिति अवलोकन के लिए तैयार किया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। कोरोनल मास इजेक्शन का जन्मस्थान वह स्थान है जहां सौर कोरोना शुरू होता है। जहां से कोरोना शुरू होता है, वहां से सौर वातावरण में कोरोना का निरीक्षण करना महत्वपूर्ण है। वह सूर्य की दृश्यमान डिस्क का किनारा है। दोनों सौर मिशनों की तुलना करते हुए, वीईएलसी पेलोड के मुख्य अन्वेषक ने बताया कि बोर्ड पर लगे उपकरण SOHO की तुलना में कहीं बेहतर हैं।

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