नई दिल्ली (New Delhi) । उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसले (important decisions) में कहा कि अवैध या अवैध ठहराने योग्य शादी से जन्मे बच्चे कानूनी तौर पर वैध होते हैं। इसलिए वे (बच्चे) हिंदू उत्तराधिकार कानून (hindu succession law) के तहत माता-पिता की संपत्तियों में हिस्सा पाने के हकदार भी हैं।
शीर्ष न्यायालय ने कहा, अमान्य/अमान्य करने योग्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने मृत माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार हैं, जो उन्हें हिंदू सहदायिक संपत्ति के काल्पनिक विभाजन पर आवंटित किया गया होगा। हालांकि, न्यायालय ने यह साफ किया कि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के अलावा किसी अन्य सहदायिक की संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार नहीं हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह फैसला दिया।
क्या है मामला?
पीठ ने 2011 में दाखिल कई याचिकाओं पर फैसला दिया है, जिसमें यह कानूनी सवाल उठाया गया था कि क्या बिना विवाह के जन्मे बच्चे हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं या नहीं। शीर्ष न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने 31 मार्च, 2011 को इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजा था।
क्या निष्कर्ष निकला?
शीर्ष न्यायालय ने फैसले में कहा, हमने निष्कर्ष तैयार कर लिया है, पहला-अमान्य विवाह से पैदा बच्चे को सांविधिक वैधता प्रदान की जाती है और दूसरा-हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) की धारा 16(2) के संदर्भ में अमान्य करने योग्य विवाह के निरस्त किए जाने से पहले पैदा हुआ बच्चा वैध होता है। इसी तरह बेटियों को समान अधिकार दिए गए हैं। अदालत ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-6 जो सहदायिक संपत्ति में हित से संबंधित है, एक कानूनी कल्पना करती है कि सहदायिक संपत्ति को ऐसे माना जाएगा जैसे कि विभाजन हुआ हो।
न्यायालय ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधानों को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एचएमए की धारा 16(1) और (2) के तहत एक बच्चे का अपने माता-पिता की संपत्ति में अधिकार है।
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