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बड़ी देर कर दी मेहरबां जागते-जागते, संभालना मुश्किल है खासगी संपत्तियों को

सारे मंदिर पुजारियों के हवाले तो जमीनों पर बाहुबलियों के कब्जे, देश के कई राज्यों में हैं मंदिर और जमीनें

इंदौर। खासगी संपत्तियों के स्वामित्व का प्रकरण जीतने के बाद राज्य शासन वैसे तो बेहद उत्साहित है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी तत्काल अधिकारियों को संपत्ति का कब्जा लेने और खरीदी-बिक्री के मामलों पर त्वरित कार्रवाई के निर्देश दे दिए, लेकिन हकीकत यह है कि खासगी संपत्तियों में जितनी भी जमीनें हैं उन पर न केवल बाहुबलियों का कब्जा है, बल्कि उन्होंने ट्रस्ट को औने-पौने दाम देकर लीज के दस्तावेज भी बनवा लिए हैं। वहीं जितने भी मंदिर खासगी संपत्तियों के जरिए शासन को हासिल हुए हैं वे सारे पुजारियों के हवाले हैं, जिनके संचालन के एवज में दानपेटियों की रकम से लेकर प्राप्त होने वाली आय तक पुजारियों द्वारा रखी जाती है।

ट्रस्ट द्वारा इन्हीं मंदिरों के परिसर में स्थित खुली भूमि पर बनाए गए दुकान, मकान का किराया हासिल किया जाता है। इन संपत्तियों के कब्जाधारी वहां किराएदार की हैसियत से मौजूद हैं, जिन्हें आसानी से बेदखल करना शासन और जिला प्रशासन के लिए मुश्किल होगा। मंदिर परिसर में कब्जा जमाने वाले ऐसे दुकानदारों की जहां बड़ी तादाद है, वहीं यहां रहने वाले लोग भी पुजारी परिवार से जुड़े हैं। ऐसे में बाहुबलियों से जमीन का कब्जा वापस लेने के लिए शासन-प्रशासन को जहां लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से जूझना पड़ सकता है, वहीं मंदिर परिसर को खाली कराना यदि आसान हुआ भी तो मंदिरों का संचालन बेहद ही मुश्किल होगा। वर्तमान में शासन के मंदिरों की देखरेख संभागायुक्त कार्यालय के अधीन माफी शाखा द्वारा की जाती है और आलम यह है कि माफी शाखा के पास उक्त मंदिरों के संचालन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। गिने-चुने मंदिरों की बात छोड़ दी जाए तो सरकार के अधिकांश मंदिर भी पुजारियों के ही हवाले हैं। इन पुजारियों को माफी शाखा द्वारा वेतन दिए जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है।

अधिकांश जमीनें लीज पर तो मकान किराए पर… जानकारी जुटाने में ही महीनों लग जाएंगे
ट्रस्ट की अधिकांश जमीनें ट्रस्टियों ने लंबी अवधि के लिए लीज पर दे डालीं तो मकान किराए पर दे दिए। आलम यह रहा कि जो जैसा आया वैसा पाया की तर्ज पर ट्रस्ट के सचिव ने बिना किसी प्रस्ताव के मुख्य ट्रस्टी की पॉवर ऑफ अटार्नी का सहारा लेकर ट्रस्ट की संपत्तियों के बारे में स्वयं ही फैसला लेना शुरू कर दिया। वैसे तो इंदौर शहर में ट्रस्ट के 100 से अधिक मंदिर, मकान और जमीनें हैं, लेकिन आज की तारीख में किसी भी मंदिर की जमीन का आधिपत्य ट्रस्ट के पास नहीं है। अधिकांश जमीनें या तो ट्रस्टी ने लोगों को लंबी अवधि के लिए लीज पर दे डालीं और जिन लोगों ने भूमियों को लीज पर हासिल किया उन्होंने उसी लीज को आधार बनाकर दूसरे लोगों को उक्त संपत्तियां बेच डालीं। इसके अलावा जितने भी मंदिर परिसर में मकान या दुकानें थीं उन्हें ट्रस्ट ने किराए पर दे रखा है। कुछ लोगों ने तो बाकायदा खुली जमीन देखकर वहां निर्माण कार्य किया और ट्रस्ट को औना-पौना किराया देकर उस पर अपना कब्जा कर लिया। यदि ट्रस्ट की संपत्तियों के दस्तावेज खंगाले जाएंगे या उन पर कार्रवाई करने की मुहिम शुरू की जाएगी तो संपत्तियों तक पहुंचने में ही प्रशासन को महीनों का वक्त लग जाएगा और कब्जा पाने में बरसों लग जाएंगे।

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