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Skin to Skin Contact वाला फैसला देने वाली जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला नहीं बन पाएंगी स्‍थायी जज

मुंबई। अपने विवादित फैसलों (controversial decisions) के कारण सुर्खियों में रहीं जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला (Justice Pushpa Ganediwala)को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला(Supreme Court’s tough decision) किया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कलेजियम (Collegium) ने जस्टिस गनेडीवाला (Justice Ganediwala) को बॉम्बे हाई कोर्ट(Bombay high court) में स्थायी जज बनाए जाने के लिए नाम की सिफारिश नहीं (will not be able to become a permanent judge) करने का फैसला लिया है। उनका कार्यकाल फरवरी 2022 में समाप्त हो रहा है। ऐसे में डिमोशन होकर उनकी नियुक्ति वापस जिला न्यायाधीश के तौर पर हो जाएगी।



बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) की नागपुर पीठ में अडिशनल जज जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला (Justice Pushpa Ganediwala) का डिमोशन तय हो गया है। अतिरिक्त न्यायाधीश का उनका कार्यकाल फरवरी 2022 में खत्म हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट कलेजियम की तरफ से ना तो उन्हें स्थायी जज बनाने की पुष्टि की गई है। और ना ही अतिरिक्त जज के कार्यकाल को विस्तार देने का निर्णय हुआ है। ऐसे में उनका डिमोशन जिला जज के तौर पर होगा।

चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस यू यू ललित और ए एम खनविलकर के कलेजियम ने जस्टिस पुष्पा के कार्यकाल को विस्तार नहीं देने का फैसला किया है। उन्होंने 12 साल की लड़की के साथ यौन अपराध केस में आरोपी को बरी करते हुए उन्होंने कहा था कि बिना स्किन-टू-स्किन संपर्क में आए ब्रेस्ट को छूना पॉक्सो (Pocso Act) के तहत यौन हमला नहीं माना जाएगा। इस फैसले ने जस्टिस गनेडीवाला को आलोचना के केंद्र में ला दिया था।

विवादित फैसलों की वजह से चर्चा में रहीं जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला का प्रमोशन रोक दिया गया है। CJI एस ए बोबडे की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस पुष्पा को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद वापस ले लिया था। जस्टिस खनविलकर और डी वाई चंद्रचूड़ ने भी पुष्पा को स्थायी किए जाने का विरोध किया था।

हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि किसी हरकत को यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ जरूरी है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सेशन्स कोर्ट के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी।

‘हाथ पकड़ना, जिप खोलना यौन अपराध नहीं’
जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने इससे पहले भी एक विवादित फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि पॉक्सो ऐक्ट के तहत पांच साल की बच्ची के हाथ पकड़ना और ट्राउजर की जिप खोलना यौन अपराध नहीं है। अमरावती की रहने वाली जस्टिस पुष्पा ने 2007 में बतौर जिला जज अपने करियर की शुरुआत की थी।

‘पत्नी से पैसे मांगना उत्पीड़न नहीं’
जस्टिस पुष्पा ने दो दिन पहले फैसला देते हुए कहा कि पत्नी से पैसे मांगने को उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने शादी के 9 साल बाद पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी शख्स को रिहा करने का फैसला दिया। आरोपी पर दहेज की लालच में उत्पीड़न का आरोप था।

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