डेस्क: देश भर में भगवान गणेश का उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. 10 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में अंतिम दिन भगवान गणेश की प्रतिमा को धूमधाम के साथ विदाई दी जाती है और विसर्जन किया जाता है. इस दिन कुछ लोग नए कपड़े पहनते है, रंगों के साथ खेलते हैं और गणपति बप्पा मोरिया की गूंज से स्थानीय घाट भर जाते हैं, लेकिन कश्मीरी पंडित समाज भगवान गणेश की प्रतिमा को विसर्जित नहीं करता है. इसके पीछे क्या कारण है और गणेश उत्सव को लेकर कश्मीरी पंडित समाज की क्या मान्यता है. इसे लेकर कश्मीरी पंडितों से खास बातचीत की गई.
पूजा धर ने बताया कि भगवान गणेश जी को इसलिए कश्मीरी पंडित समाज विसर्जित नहीं करता है क्योंकि जब गणेश उत्सव चल रहा होता है. तब कश्मीरी पंडितों की कुल देवी का दिन चलता है. यानी की माता का दिन चलता है. ऐसे में भगवान गणेश की पूजा करने के बाद माता की पूजा की जाती है. पूजा के बाद गणेश जी को स्थान पर रख दिया जाता है और 10 दिन बाद भी उन्हें विसर्जित नहीं किया जाता है.
कश्मीरी प्रसाद को ‘रोठ ‘ कहा जाता है…
पूजा की जगह एक कलश में फूल डालकर उसका ही विसर्जन करते हैं. इन दिनों को कश्मीरी में ‘पन ‘ कहा जाता है और कश्मीरी प्रसाद को ‘रोठ ‘ कहा जाता है, जो गणेश उत्सव के दिनों में चढ़ाया जाता है. पहले इस प्रसाद को माता के वहां पर रखते हैं और फिर भक्तों को और पड़ोसियों को बांटा जाता है.
घर में ही करते हैं पूजा
कश्मीरी पंडित आर्यन धर बताते हैं कि मेरे सभी दोस्त अलग तरीके से, धूमधाम से गणेश भगवान को विसर्जित करते हैं, लेकिन हम लोग ऐसा नहीं करते हैं, बल्कि गणेश जी को घर में ही रखकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन दोस्तों के साथ मैं जरूर नाचते- गाते हुए बप्पा को विदाई देता हूं.
