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जानिए समुद्र का पानी कैसे करेगा इन जानलेवा बीमारियों का इलाज

नई दिल्ली: जमीन पर उगने वाले पेड़-पौधों से हम दवाएं बना चुके. लैब में तैयार होने वाली दवाएं अलग हैं. कई देश पशु-पक्षियों (animals and birds) से भी मेडिसिन तैयार करते रहे, लेकिन अब समुद्र के नीचे उतरकर (down to the sea) भी देखा जा रहा है कि क्या-क्या ऐसी चीजें हैं जो हमारा इलाज कर सकें. पिछले लगभग एक दशक से इसपर बात हो रही थी, लेकिन अब जाकर अंडरवॉटर फार्मेसी (underwater pharmacy) में तेजी आई है. जैसे स्पंज में ऐसे केमिकल होते हैं, जो कैंसर का इलाज कर सकें. या फिर स्टारफिश में पाया जाता प्रोटीन ऑर्थराइटिस और अस्थमा (protein arthritis and asthma) में राहत दे सकता है.

साल 1955 में यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया और नेवल रिसर्च ऑफिस ने पहली बार समुद्र के नीचे बसी दुनिया से हर्ब्स खोजने की शुरुआत की. बाद में अंडरसी मेडिकल सोसायटी बनी, जिसने एक्सपर्ट्स को नीचे भेजकर ये देखना शुरू किया कि वहां किस चीज में क्या खूबी है और वो किस तरह की बीमारी में काम आ सकता है. इतने ही सालों के भीतर साइंटिस्ट्स ने समुद्र के जीवों और वनस्पतियों से कम से कम 20 हजार बायोकेमिकल निकाल लिए. इनमें से ज्यादातर पर लैब में टेस्ट चल रहे हैं. कई फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पास अप्रूवल की प्रक्रिया तक जा चुके.

जरूरी नहीं कि वैज्ञानिक भी समुद्र की गहराई तक जाने में कंफर्टेबल हों तो गोताखोर को तैयार किया जाता है. डाइवर तीन स्तरों पर काम करता है. पहला सतह पर, जहां समुद्र और हवा मिल रहे हों. दूसरा, 30 फीट नीचे. और तीसरा, 60 फीट नीचे. यहां जाकर जो भी चीजें मिलें, उन्हें कलेक्ट करना होता है. गोताखोर के पास स्टेराइल सीरिंज होती हैं जिसमें वो समुद्र का पानी भी जमा करता है. समुद्री चीजें जमा करने के लिए गोताखोर को गहरे पानी में अकेला नहीं छोड़ा जाता, बल्कि पूरी टीम होती है जो काम करती है.


समुद्र या गहरी झील की तली से पानी भी आता है, कीचड़ भी, वनस्पति भी और जीव-जंतु भी. कई बार कुछ चीजें काम की निकलती हैं तो अक्सर बहुत कुछ बेकार भी चला जाता है. कभी-कभी गलती से कुछ ऐसा भी मिल जाता है, जिसके फायदे चौंका जाएं. जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉयस की टीम ने जांच के दौरान तली में बैठे कीचड़ में ऐसे माइक्रोब खोज निकाले, जो टीबी के बैक्टीरिया को मार सकते हैं.

इसी तरह से समुद्र के नीचे स्पंज से कीमोथैरेपी की दवा साइटैरेबिन की खोज हुई. कैंसररोधी एक और दवा ट्राबेक्टिडिन को कैरेबियन सागर के नीचे से खोज निकाला गया. कई संस्थाएं इससे भी एक कदम आगे जाकर एंटीबायोटिक्स पर फोकस कर रही हैं. चूंकि फिलहाल हमारे पास उपलब्ध सारे ही एंटीबायोटिक्स के खिलाफ लोगों में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो गई है तो अब इलाज के लिए नई दवाओं की जरूरत है. इसी को देखते हुए फार्मा-सी नाम की इंटरनेशनल कंपनी कई बैक्टिरियल स्ट्रेन पर जांच कर रही है.

हॉर्सशू क्रैब के खून में ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जो गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण से लड़ सकें. पिछले 5 दशक से ज्यादा वक्त से इसका इस्तेमाल मेडिकल उपकरण और वैक्सीन्स को संक्रमण से बचाने के लिए होता रहा. समुद्री घोंघा में कोनोटॉक्सिन होता है, जो पेनकिलर का काम करता है. इसी तरह से स्टारफिश में 86 प्रतिशत से ज्यादा प्रोटीन मिलता है, जो ऑर्थराइटिस और अस्थमा का इलाज करने में मददगार पाया गया. सी स्पंज में कई ऐसी खूबियां दिखीं, जो मेडिकल साइंस में कमाल कर सकती हैं.

कुल मिलाकर समुद्र हमारे लिए नया मेडिसिन बॉक्स साबित होने जा रहा है, हालांकि इस वजह से समुद्री जीवों पर खतरा मंडराने लगा. कई देश डीप-सी माइनिंग की योजना बना रहे हैं, यानी जमीन से खनन की तरह समुद्र में भी खनन किया जाएगा. इससे हमें भले ही बीमारियों से राहत मिले, लेकिन समुद्री जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में दिख रहा है. यूनाइटेड नेशन्स की एजेंसी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी, जो समुद्र की सेफ्टी पर काम करती है, उसने भी फिलहाल इसपर कोई सख्त नियम नहीं बनाया.

कोरोना की पहली लहर के दौरान हॉर्स शू क्रैब नाम के केकड़े की खूब बात हुई. माना जा रहा था कि इसके खून से एंटी-कोविड दवा बन सकेगी. बता दें कि पहले से ही हॉर्स शू क्रैब के ब्लड का उपयोग ये जांचने के लिए होता रहा कि मेडिकल उपकरण पूरी तरह से बैक्टीरिया-मुक्त हैं या नहीं. इस वजह से हर साल बहुत से केकड़ों की मौत हो रही है. लैब में भी इन्हें तैयार किया जा रहा है, लेकिन समुद्र में डालने से पहले शरीर का 30% खून निकाल लिया जाता है, जिसके बाद अंडर-वॉटर जाकर ये जिंदा नहीं रह पाते.

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