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निष्काम कर्मयोगी थे कुशाभाऊ ठाकरे

– जवाहर प्रजापति

राष्ट्रीय विचार को अपने जीवन का ध्येय बनाने वाले आदर्श राजनेता कुशाभाऊ ठाकरे नैतिकता, आदर्श व सिद्धांतों के प्रकाश स्तंभ थे। सच कहा जाए तो उनका जीवन कथनी और करनी का ऐसा समागम था, जो विरले ही देखने को मिलता है। राष्ट्र को शक्तिशाली और वैभव संपन्न देखने का सपना मन में लेकर कार्य करने वाले श्री ठाकरे का जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा है। जो वर्तमान राजनीति के लिए एक पाथेय है। ऐसा माना जाता है कि उनके जैसा जीवन कई वर्षों की तपस्या के बाद ही मिलता है। इसलिए कुशाभाऊ ठाकरे के जीवन को हम एक संन्यासी की श्रेणी में स्थापित करके देखें तो निसंदेह वे इस श्रेणी में खरे ही उतरते हैं।

कुशाभाऊ ठाकरे का जन्म पावन दिवस श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मध्य प्रदेश स्थित धार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुंदर राव श्रीपति राव ठाकरे और माता का नाम शांता बाई सुंदर राव ठाकरे था। इस दिवस की भारत देश में महत्ता है, हम जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना को ही अपने जीवन का एक मात्र उद्देश्य बनाया। इस दिन जन्म लेने वाले कुशाभाऊ ठाकरे के जीवन में धर्म की अखंड सरिता का प्रवाह दिखाई देता था। कुशाभाऊ ठाकरे का सम्पूर्ण जीवन कर्मयोग की भावना से पूरित था। इनकी शिक्षा धार और ग्वालियर में हुई थी। 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बनने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश के कोने-कोने में निष्ठावान स्वयंसेवकों की सेना खड़ी की।

श्री ठाकरे भाजपा के उन नेताओं में से थे, जिन्होंने साइकिल चलाकर और चने खाकर पार्टी का काम किया। यही कारण है कि पार्टी में उनका व्यापक प्रभाव था। वे कुशल संगठनकर्ता थे। उन्होंने संगठन के भाव को अपने अंत:स्थल में उतारकर जो कार्यशैली अपनाई, वह वास्तव में ही अद्भुत थी। श्री ठाकरे के सानिध्य में कार्य करने वाले आज जो भी कार्यकर्ता हैं, वे सभी समाज के प्रिय बने हुए हैं। कार्यकर्ता भटक न जाए इसलिए वह अनेक बार परिवार भाव की तरह कार्यकर्ताओं की चिंता करते हुए भी देखे गए।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम की शुरुआत उस समय की थी, जब संगठन का विस्तार व्यापक नहीं था। सच तो यह है कि किसी विचारधारा और लक्ष्य के प्रति उनके समान निष्ठा विरले लोगों में देखी जाती है। उन्होंने प्रतिकूल वातावरण में भी अपने आपको अनुकूल बनाकर शांत भाव से कार्य किया। उन्होंने अपने समर्थक नहीं बनाए, बल्कि अपने जैसे कार्यकर्ता बनाने का ही काम किया। ऐसे ही आदर्शों के कारण ही भाजपा संगठन को जहां कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल निरूपित किया जाता है, वहीं सिद्धांतों पर आधारित दल भी कहा जाता है।

कुशाभाऊ ठाकरे निष्काम कर्मयोगी थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की बुनियाद को मजबूत बनाने में उनका योगदान अमूल्य है। वे राजनीतिक जीवन में भी जीवनपर्यंत बेदाग रहे। उनके सार्वजनिक जीवन को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहले वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य में पूर्ण समर्पित भाव से लीन रहे, उसके बाद संगठन के आदेश पर जनसंघ (अब भाजपा) की स्थापना के बाद उनका संबंध राजनैतिक गतिविधियों से हुआ। उनके जीवन की विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने आपको संगठन तक सीमित रखा और संगठन को और मजबूत बनाने के लिए सदैव कार्य करते रहे। यही नहीं उन्होंने संगठन को ही अपना परिवार मानकर कार्य किया।

राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण अटूट था। इंदौर में एक सम्मान समारोह में उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने तय किया है कि शत्रु देश के पास अगर परमाणु बम है, तो हमारा सैनिक भी तमंचे से नहीं लड़ेगा। हमने देश की सेना को आधुनिक और आणविक क्षमता से लैस करना जरूरी समझा। हमें पता था कि ऐसा करने पर हमें कमजोर करने का प्रयास किया जाएगा, आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे। उनको लगता है कि ऐसा करने से भारत डूब जाएगा, पर भारत हमेशा ही अपने पैरों पर खड़ा था, खड़ा है और हमेशा खड़ा रहेगा। देश के विकास में लगे 80 प्रतिशत साधन स्वदेशी हैं। विदेशी मदद तो मात्र 15-20 प्रतिशत है। हम सूखी रोटी खा लेंगे, पर पश्चिमी देशों के सामने हाथ नहीं फैलाएंगे। श्री ठाकरे स्वाभिमान पर समझौता करने वाले व्यक्ति नहीं थे, इसलिए वे राष्ट्र का मजबूत और शक्तिशाली देखना चाहते थे।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे का मानना था कि किसी राजनैतिक संगठन का उद्देश्य समाज के हर वर्ग की सुख-समृद्धि सुनिश्चित करना है। 7 फरवरी 1999 को भोपाल में श्री ठाकरे ने कहा कि भाजपा का लक्ष्य सिर्फ राजनीतिक सफलता पाना नहीं है। पार्टी का मकसद है कि समाज के सभी वर्गों में सुख और समृद्धि आए। आज जोड़-तोड़ और वर्गों में दरार चौड़ी करके राजनीतिक सफलता तो हासिल की जाती है, पर लोगों के दिलों में घर नहीं बनाया जा सकता। भाजपा वे रास्ते कभी नहीं अपनाएगी जो दूसरे दल अपनाते हैं।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे के राजनीतिक जीवन का अध्ययन किया जाए तो यही प्रदर्शित होता है कि वे 1956 में जनसंघ के मध्यप्रदेश सचिव (संगठन) बने। वे 1967 में भारतीय जनसंघ के अखिल भारतीय सचिव बने। आपातकाल के दौरान वे 19 महीने जेल में भी रहे। भाजपा की स्थापना के पश्चात 1980 में भाजपा के अखिल भारतीय सचिव बनाए गए। 1986 से 1991 तक वे अखिल भारतीय महासचिव व मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे। 1998 में वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और इस पद वे 2000 तक रहे। 28 दिसंबर 2003 को उनका देहांत हो गया।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे का मानना था कि हमारी ताकत हमारे कार्यकर्ता हैं। जनता ने हम पर चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। प्रदेश की जनता को वर्तमान भाजपा सरकार से बहुत आशा है। ऐसे समय में भाजपा कार्यकर्ताओं का दायित्व बढ़ गया है। हमें अपना दायित्व समझना होगा और राष्ट्रीय मानसिकता के साथ अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे, यह राष्ट्र की आवश्यकता भी है और समय की मांग भी।

(लेखक, मध्य प्रदेश भाजपा के सह मीडिया प्रभारी हैं।)

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