खरी-खरी ब्‍लॉगर

हम आत्मनिर्भरता की गाड़ी चलाएं… और आप टायर पंक्चर कर बहादुरी दिखाएं…

देश को आत्मनिर्भर बनाएंगे… अपना बनाएंगे… अपना खाएंगे… भूखे मर जाएंगे, पर किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे… नारे तो आपने खूब लगवाए… कसमें आपने खूब खिलवाईं… हम भी जोश-जोश में आपके साथ हो गए… चीन की होली जलाई… विदेशियत को ठोकर लगाई… कसम पूरी करने में हमने तो पूरी जान लगाई… लेकिन आपने यह कैसी नैया डुबाई… आत्मनिर्भरता की बलि चढ़ाई और दुनिया के सामने नजरें झुकाईं… वैक्सीन के लिए कहीं रूस के आगे गिड़गिड़ाए तो कहीं अमेरिका के सामने हाथ फैलाए… सीना चौड़ा कर ग्लोबल टेंडर कराए… यह सबक भी है और समझ भी … यह सीख भी है और सबक भी… जब हकीकत का सामना करना पड़ता है तो आत्मनिर्भरता का बखान खूंटी पर टंग जाता है… हम तो मजबूरी में विदेशियत अपनाते हैं… पहले देश में बनाते हैं, देश का खपाते हैं… कमी पड़े या महंगा मिले तो ही विदेश जाते हंै… फिर भी इतना दिमाग तो लगाते हैं कि जरूरत से पहले जागकर सस्ता सौदा लाकर देश का पैसा बचाते हैं… लेकिन आप तो देश को लापरवाही की मौत मार रहे हैं… देश में सस्ता मिल रहा है, फिर भी विदेशों से महंगी वैक्सीन मंगा रहे हैं… सीरम को डोज की कीमत 500 चुकाएंगे… विदेशों से हजार-दो हजार में लाएंगे… क्योंकि आप समय पर जागे नहीं, देश की जरूरत को जाने नहीं… यह वही रूस की स्पूतनिक है, जिसमें दुनिया में सबसे पहले वैक्सीन बनाई… तब हम उसमें नुक्स निकाल रहे थे, उसे असफल बता रहे थे… उससे निगाहें फिरा रहे थे… आज उसी वैक्सीन के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं… जो कीमत मांगे वो चुका रहे हैं… जब दुनिया वैक्सीन बना रही थी, तब हम घमंड में मरे जा रहे थे… इस भूल में जिए जा रहे थे कि वैक्सीन कोई भी देश बनाए, लेकिन उसका उत्पादन करने के लिए उसे भारत आना ही पड़ेगा… हम अपने देश को सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता मान रहे थे और दुनियाभर के देश अपनी जरूरतें अपने देश में पूरी किए जा रहे थे… जिस सीरम के भरोसे हम छाती चौड़ी किए जा रहे थे, वो भी हमें ताक पर धर रहा था… विदेशों की जरूरतें पूरी कर रहा था… सच तो यह है कि हमारी आत्मनिर्भरता को आपकी लापरवाही निगल गई… सम्मान और स्वाभिमान के साथ हमारी जानें भी सडक़ों पर बिछ गईं…आप देर से जागे, तब तक कई आंखें मौत की नींद सो गईं… विदेशों के आगे हाथ फैलाना देश की मजबूरी बन गई… काश! आप समय पर समझते तो हम दूसरों पर निर्भर नहीं रहते… आत्मनिर्भरता जिद से नहीं जरूरत के बल पर चलती है… यदि देश अपनी जरूरत पूरी कर पाए…सस्ता कर्ज… सस्ती बिजली मिल पाए… नोंचने-खसोटने की सरकारी प्रवृत्ति से मुक्ति पाए और समय रहते जाग पाए तो आत्मनिर्भर बन पाएं…

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