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अब सिर्फ गंगा ही नहीं इस नदी मे भी बढ़ रहा डॉल्फिन का कुनबा

नई दिल्‍ली ।  डॉल्फिनों (सोंस) का कुनबा (dolphin’s family) गंगा के साथ-साथ चंबल नदी में बढ़ता जा रहा है। 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में घड़ियालों के साथ डॉल्फिन के भी संरक्षण का काम शुरू किया गया था। तब यहां डॉल्फिन के महज पांच जोड़े छोड़े गए थे। दिसंबर में चंबल सेंक्चुअरी की टीम ने डॉल्फिनों की गणना की तो नतीजे काफी बेहतर मिले। सेंक्चुअरी के क्षेत्राधिकारी के अनुसार चंबल में 150 वयस्क डॉल्फिन अठखेलियां करती दिखी हैं।

सेंक्चुअरी के क्षेत्राधिकारी हरिकिशोर शुक्ला ने बताया कि समुद्री लहरों के बीच अठखेलियां करने वाली डॉल्फिनों को चंबल का साफ पानी रास आ गया है। मुफीद बहाव और पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा अच्छी मिलने से उनकी संख्या में इजाफा होता गया। क्योंकि पानी में प्रदूषण बढ़ते ही डॉल्फिन वह क्षेत्र छोड़ देतीं हैं। चंबल में ऐसा नहीं हुआ। क्षेत्राधिकारी के अनुसार ऐसी ही उनकी संख्या बढ़ती गई तो जल्द ही गंगा से ज्यादा यहां डॉल्फिन पाईं जाने लगेंगी।



2009 को घोषित हुई थी राष्ट्रीय जलीय जीव
केंद्र सरकार ने पांच अक्तूबर 2009 को गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। गंगा में पाई जाने वाली गंगा डॉल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है, जिसकी सूंघने की शक्ति बड़ी तीव्र होती है। भारत में इनकी जनसंख्या 2000 से भी कम है। डॉल्फिन उत्तर प्रदेश में नरोरा और बिहार के पटना साहिब के क्षेत्र में पाई जाती हैं। दोनों जगह इनका संरक्षण केंद्र बनाया गया है। डॉल्फिन भारत में 10 करोड़ सालों से मौजूद हैं। 1972 में डॉल्फिन को भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून के दायरे में लाया गया, जिनका शिकार करना अपराध है। इसके बाद 1996 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजरवेशन ऑफ नेचर ने इन्हें विलुप्त प्राय जलीय जीव घोषित किया। भारत में डॉल्फिनों की संख्या बढ़ाने के लिए मिशन क्लीन गंगा चलाया जा रहा है। (संवाद)

डॉल्फिन को मछली न समझें
डॉल्फिन को हम मछली समझने की भूल करते हैं लेकिन यह एक स्तनधारी प्राणी है। व्हेल और डॉल्फिन एक ही कैटेगरी में आती हैं। डॉल्फिन को अकेले रहना पसंद नहीं है। वह 10 से 12 के समूह में रहती हैं। डॉल्फिन आवाज और सीटियों के माध्यम से एक दूसरे से बात करती हैं। डॉल्फिन को सांस लेने के लिए हर 15 मिनट में सतह पर आना होता है। मादा डॉल्फिन नर से बड़ी होती हैं। इनकी औसतन आयु 28 साल होती है। केंद्र सरकार ने इन्हें नॉन ह्यूमन पर्सन या गैर मानवीय जीव की श्रेणी में रखा है। यानी ऐसा जीव को इंसान न होते हुए भी इंसानों की तरह जीना जानता है और वैसे ही जीने का हक रखता है।



इंसानों की तरह होतीं हैं खुश
डॉल्फिन एक बार में एक ही बच्चा देती हैं। प्रसव के कुछ दिन पहले से गर्भवती डॉल्फिन की देखभाल के लिए पांच से छह मादा डॉल्फिन उसके पास रहती हैं। बच्चे के जन्म तक यह डॉल्फिन गर्भवती के पास ही रहती हैं। बच्चे के जन्म के समय डॉल्फिनों का समूह मानव की तरह प्रसन्न होकर उत्सव मनाता है। इस दौरान सांस लेने के लिए एक साथ सतह पर आता है।

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