इंदौर न्यूज़ (Indore News)

खासगी सम्पत्तियों से मप्र होगा मालामाल

  • प्रदेश के कई शहरों, गांवों और कस्बों से लेकर देशभर में कई जमीनें
  • देशभर में कई मंदिर तो हजारों एकड़ जमीन का स्वामित्व प्रभावशील

इंदौर। देशभर में फैली खासगी सम्पत्ति से मध्यप्रदेश सरकार मालामाल हो सकती है। उद्योग से लेकर अन्य योजनाओं के लिए भूमि के अभाव से जूझती सरकार के लिए जमीनों का खजाना हाथ लगा है। हालांकि ये सम्पत्तियां शासन के ही स्वामित्व की रही हैं, लेकिन अभी तक शासन द्वारा गौर न किए जाने के कारण इनमें से अधिकांश सम्पत्तियों पर निजी लोगों से लेकर भूमाफियाओं का कब्जा हो चुका है, जिसे हासिल करना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि इनमें से कई संपत्तियां दूसरे राज्यों में स्थित होकर मध्यप्रदेश शासन को भूमाफियाओं के साथ ही सरकारों से भी संघर्ष करना पड़ेगा। एक अनुमान के अनुसार देशभर में फैली खासगी भूमियों की तादाद करीब 5 से 7 हजार एकड़ हो सकती है। इनमें मध्यप्रदेश में ही करीब 2 से 3 हजार एकड़ जमीन शामिल है तो उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड से लेकर दक्षिणी प्रांतों में भी ट्रस्ट की 3 से 4 हजार एकड़ जमीन फैली हुई है।

वैसे तो ये सम्पत्तियां मध्यप्रदेश शासन के स्वामित्व की ही थीं, लेकिन विभाजन के वक्त सरकार ने उक्त सम्पत्तियां खासगी ट्रस्ट को देखरेख के लिए सौंप दी थीं। इस ट्रस्ट में महारानी उषाराजे के परिवार के साथ ही राज्य शासन और केन्द्रीय शासन के प्रतिनिधि के तौर पर संभागायुक्त और अन्य अधिकारी शामिल रहते थे। लेकिन शासन के ही प्रमुख सचिव के एक आदेश से ट्रस्ट को सम्पत्तियों के विक्रय के अधिकार मिल गए और ट्रस्टियों के साथ ही अधिकारियों द्वारा सम्पत्तियों का कब्जे के आधार पर जहां विक्रय शुरू किया गया, वहीं अधिकांश मंदिरों के संचालन का अधिकार पुजारियों को सौंप दिया गया। ट्रस्ट की सम्पत्तियों पर भी लोगों ने कब्जे करना शुरू कर दिए। इतनी बेशुमार सम्पत्ति का नियंत्रण वैसे भी ट्रस्ट के लिए संभव नहीं था, क्योंकि ट्रस्ट का कार्यक्षेत्र जहां इंदौर शहर रहा, वहीं सम्पत्तियां पूरे देश में फैली हुई थीं। यदि प्रदेश की बात करें तो ट्रस्ट की सूची के अनुसार मध्यप्रदेश के मनासा में ही करीब 70 हेक्टेयर से अधिक जमीन ट्रस्ट के स्वामित्व की है। वहीं मंदसौर जिले के भानपुरा में ही ट्रस्ट की करीब 100 हेक्टेयर भूमि है। इसके अलावा इंदौर के हातोद, तिल्लौरखुर्द और सांवेर में करीब 50 हेक्टेयर भूमि मौजूद है। वहीं खरगोन जिले के महेश्वर में 100 हेक्टेयर जमीन सूची में सम्मिलित है। इसके अलावा इंदौर के पीपल्दा, केवडिय़ा में भी ट्रस्ट की कई भूमियां हैं।

यहां-यहां हैं मंदिर
खासगी ट्रस्ट की देखरेख में बनारस के वाराणसी, अयोध्या, इलाहाबाद, हरिद्वार, पुष्कर, ओंकारेश्वर, पंढरपुर, गोवर्ण, रामेश्वरम्, वंृदावन, त्र्यम्बकेशवर, अमरकंटक, नासिक, चांदवड़, सबलग्राम, मनासा, भानपुरा, आलमपुर, तराना में जहां सैकड़ों मंदिर, मकान और सम्पत्तियां हैं। इन सभी राज्यों और स्थानों में मौजूद खासगी ट्रस्ट की अनगिनत सम्पत्तियां हैं। वहीं ओंकारेश्वर मेें 12 स्थानों पर मंदिर, मकान और भूमियां हैं, जबकि इंदौर के ही समीपस्थ महेश्वर में 74 मंदिर और मकान हैं। ट्रस्ट की सूची में इन सम्पत्तियों की कीमत मात्र हजार से पांच हजार रुपए वर्णित की गई है। खास बात यह है कि इन सभी मंदिर, मकान और भूमियों को ट्रस्ट ने या तो पुजारियों को लीज पर दे रखा है या फिर इन सम्पत्तियों पर लोगों ने कब्जा कर रखा है।

इंदौर शहर में भी हैं अनगिनत सम्पत्तियां
इंदौर के राजबाड़ा स्थित महालक्ष्मी मंदिर से लेकर केसरबाग शिव मंदिर तक जहां ट्रस्ट की सूची में सम्मिलित हैं, वहीं कई मकान और भूमियां भी खासगी ट्रस्ट की सूची में शामिल हैं। इनमें जनरलपुर हाउस के नाम से बाणगंगा में करीब 5 स्थानों पर मौजूद सम्पत्तियां जिनमें मंंदिर, बगीचे और धर्मशाला शामिल हैं, वहीं कृष्णपुरा का श्रीराम मंदिर, लोधीपुरा का राम मंदिर, केसरबाग का पार्वती तुकेश्वर मंदिर, आड़ा बाजार का नारायण मंदिर, हरसिद्धि स्थित माता मंदिर और जूनी इंदौर का गणपति मंदिर जहां सूची में सम्मिलित हैं, वहीं कानूनगो बाखल का महादेव मंदिर, छत्रीबाग, मिस्त्रीखाना, सिरपुर स्थित राम मंदिर एवं माता मंदिर, हातोद का श्रीराम मंदिर एवं बटुकेश्वर महादेव मंदिर, देवगुराडिय़ा का शिव मंदिर, तिल्लौरखुर्द का राम मंदिर, पीपल्दा, केवडिय़ा, कम्पेल, सांवेर, बरलाई, देपालपुर, गौतमपुरा स्थित मंदिर के साथ ही बड़ी तादाद में मंदिर और भूमियां ट्रस्ट के स्वामित्व में सम्मिलित हैं। इन सभी मंदिरों का संचालन पुजारियों द्वारा किया जाता है। कुछ मंदिरों में ही ट्रस्ट द्वारा दानपेटियों को खोला जाता है, जबकि कई मंदिरों में पुजारियों द्वारा केवल वार्षिक लीज का भुगतान किया जाता है।

देशभर में सम्पत्ति और केवल 10 से 15 लोगों का स्टाफ
खासगी सम्पत्ति के संचालन के लिए राज्य शासन की ओर से इंदौर के संभागायुक्त को ट्रस्टी बनाया गया था। इसके साथ ही लोक निर्माण विभाग के अधिकारी और केन्द्र सरकार का एक प्रतिनिधि भी ट्रस्टी के तौर पर शामिल होता था, लेकिन हकीकत यह है कि इनमें से कोई भी ट्रस्ट के संचालन में रुचि नहीं लेता था। ट्रस्ट के संचालन के लिए मात्र 10 से 15 लोगों का स्टाफ होता था। इनमें भी सबसे ज्यादा अधिकार ट्रस्ट के सचिव के पास होते थे, जो न केवल सम्पत्तियों के संचालन के संबंध में निर्णय लेते थे, बल्कि उनके क्रय-विक्रय के भी प्रस्ताव इसी सचिव द्वारा बनाए जाते थे। सचिव के प्रस्ताव पर औपचारिक तौर से मुख्य ट्रस्टी उषाराजे की ओर से उनके पति सतीश मल्होत्रा द्वारा जहां हस्ताक्षर किए जाते थे, वहीं शासन के प्रतिनिधि भी उसे स्वीकृति प्रदान कर देते थे।

एक ही सचिव खासगी ट्रस्ट के साथ ही उषा ट्रस्ट के भी कर्ताधर्ता
महाराजा यशवंतराव होलकर को विभाजन के बाद मिली सम्पत्तियों के लिए महारानी उषाराजे ने एक ट्रस्ट का निर्माण कर सारी सम्पत्तियां उसी ट्रस्ट में समाहित कर दीं, जिसे उषाराजे ट्रस्ट का नाम दिया गया। इस ट्रस्ट के कर्ताधर्ता के रूप में जिस सचिव को नियुक्त किया जाता रहा है, वही सचिव खासगी ट्रस्ट का भी संचालन करते रहे। प्रारंभिक दिनों में इस ट्रस्ट के सचिव की हैसियत से हरिशंकर तिवारी काम करते रहे। उनके निधन के बाद उनके पुत्र कैलाश तिवारी को सचिव बनाया गया। जब से कैलाश तिवारी ट्रस्ट के सचिव बने, तब से ट्रस्ट का बंटाढार हो गया। उन्होंने न केवल खासगी ट्रस्ट को नुकसान पहुंचाया, बल्कि महारानी उषाराजे की निजी सम्पत्ति के लिए बनाए गए उषाराजे ट्रस्ट की सम्पत्तियों को भी औने-पौने दामों पर ठिकाने लगा दिया।

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