उत्तर प्रदेश देश राजनीति

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में कूदा इस्लामिक देशों का मीडिया!

वाराणसी। देश में जारी मंद‍िर-मस्‍ज‍िद व‍िवाद (temple-mosque dispute) रूकने का नाम नहीं ले रहा है। आए दिन इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। इसी बीच ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (temple-mosque dispute) में अब इस्लामिक देशों का मीडिया भी कूद गया है। पाकिस्तान के अखबारों (newspapers of pakistan) में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के मामले को प्रमुखता से जगह दी जा रही है। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने इस मुद्दे को लेकर प्रकाशित अपनी एक खबर में लिखा है कि भारत की निचली अदालतों ने इस तरह के विवादों को बढ़ाने का काम किया है।

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद अखबार ने लिखा है कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए भी लोगों को जिला अदालत के फैसले ने ही उकसाया था।अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाले जस्टिस एस. यू. खान के एक बयान का हवाला देते हुए रिपोर्ट में लिखा गया है, ‘1986 में उत्तर प्रदेश की एक जिला अदालत के एक आदेश का ही परिणाम था जिसने पांच सालों बाद हिंदुत्व कार्यकर्ताओं को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए उकसाया।



दूसरी तरफ भारत में भी इस विवाद में इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में इंट्री हो चुकी है। संगठन ने पत्र जारी कर मुस्लिम समाज के एकजुटता पर जोर देने के साथ ज्ञानवापी मामले में चल रही न्यायिक कार्रवाई का विरोध करने का संदेश भी दिया है।
इस्लामिक संगठन के पत्र को लेकर विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन ने विरोध जता केन्द्रीय गृह मंत्री से संगठन की भूमिका की जांच की मांग की है। बिसेन ने कहा कि संगठन का काम देश विरोधी है और वह कई जगह संदिग्ध पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी इस इस्लामिक संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

बिसेन ने कहा कि हम निर्धारित न्यायिक प्रक्रिया के तहत हर काम कर रहे हैं । हमें न्यायालय के आदेश पर पूरा भरोसा है। बताते चले, इस्लामिक संगठन ने पत्र के जरिये कहा है कि काशी और मथुरा के प्रकरण प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट, 1991 के पूरी तरह खिलाफ हैं। अदालत को काशी और मथुरा में आई याचिकाओं को मंजूर नहीं करना चाहिए था। सांप्रदायिक तत्व अब देश के कई हिस्सों में मस्जिदों को निशाना बना रहे हैं।

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