नई दिल्ली। हत्या के आरोपी से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने अहम व्यवस्था दी है, अदालत ने कहा है कि अगर कोई आरोपी अपराध के वक्त नाबालिग था, तो वह सजा मिलने के बाद भी उम्र (Age) के आधार पर रिहाई मांग सकता है। देश की किसी भी अदालत में, किसी भी वक्त, मुकदमा बंद हो जाने के बाद भी, शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था देते हुए उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में हुई एक हत्या के आरोपी को रिहा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और अभय एस. ओका (Supreme Court Justices AM Khanwilkar and Abhay S. Oka) ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वैसे तो आरोपी का मामला किशोर न्याय बोर्ड के पास भेजा जाना चाहिए, ताकि वह उसके मामले में फैसला सुना सके। लेकिन चूंकि इस मामले में आरोपी पहले ही 17 साल जेल में बिता चुका है, इसलिए उसे रिहा करने का आदेश दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने इस फैसले से पहले महाराजगंज के किशोर न्याय बोर्ड से संबंधित आरोपी की उम्र की पुष्टि भी कराई। बोर्ड ने जांच के बाद इसी मार्च के महीने अपना आदेश पारित किया।
एक गलती के कारण 3 साल की जगह 17 साल काटनी पड़ी जेल
इस मामले का आरोपी तिहरे हत्याकांड में अन्य आरोपियों के साथ दोषी ठहराया गया था, उसे मई 2006 में सत्र अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय से और अगस्त 2009 में सुप्रीम कोर्ट से भी दोषियों की अपील खारिज हो गई, इस दौरान बचाव पक्ष के वकील का इस तथ्य की तरफ ध्यान ही नहीं गया कि हत्याकांड के वक्त आरोपी नाबालिग था। अगर यह तथ्य सामने आ जाता तो आरोपी का मामला किशोर न्याय बोर्ड में चलता। उसे अधिकतम 3 साल तक किशोर अपराधियों के लिए नियत सुधार गृह में रखे जाने की सजा मिलती और रिहा कर दिया जाता, लेकिन उसे 17 साल जेल में बिताने पड़ गए।
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