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मोदी सरकार 2.0: एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो साल राजनीतिक मोर्चे पर रहे नरम- गरम

 

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार (NDA Government) के दूसरे कार्यकाल के दो साल राजनीतिक मोर्चे पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए नरम-गरम रहे हैं। इस दौरान हुए दस विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा (BJP) और एनडीए (NDA) को चार में सफलता हासिल हुई है। हालांकि इसके पूर्व के विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में सत्ता गंवाने के बाद उसने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और कर्नाटक (Karnataka) में जोड़-तोड़ कर फिर से सत्ता हासिल भी की है। हालांकि दक्षिण भारत (South India) अभी भी उसका कमजोर पहलू बना हुआ है।

इन दो वर्षों में ज्यादातर समय तो केंद्र सरकार को कोरोना महामारी से जूझने में बिताने पड़े हैं। ऐसे में सरकारी कामकाज का आकलन तो अपनी जगह है, लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर यह समय भाजपा और एनडीए के लिए संतोषजनक रहा। इस दौरान भाजपा में नेतृत्व में परिवर्तन हुआ, लेकिन इससे उसकी चुनावी रणनीति पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद जेपी नड्डा को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाया गया। हालांकि चुनावी रणनीति में शाह पहले की तरह सक्रिय रहे।


इन दो वर्षों के दौरान हुए दस विधानसभाओं के चुनाव में भाजपा और एनडीए को चार विधानसभाओं असम, बिहार, हरियाणा और पुडुचेरी में ही सफलता मिली है। भाजपा और एनडीए को इस दौरान दिल्ली, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र में हार का सामना करना पड़ा है। इनमें झारखंड और महाराष्ट में उसकी सरकारें थी। हालांकि इस बीच उसने 2018 में हारे दो राज्यों कर्नाटक और मध्यप्रदेश में जोड़-तोड़ से फिर से अपनी सरकार बनाने में सफलता हासिल की है।

भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद दक्षिण भारत में वह अपनी पैठ मजबूत नहीं कर सकी है। केरल में वह उसने अपने दम पर आगे बढ़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन चुनावी नतीजा शून्य ही रहा। तमिलनाडु में गठबंधन के साथ भी वह ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर सकी है। अलबत्ता जोड़-तोड़ और उठापटक की राजनीति वाले केंद्र शासित केंद्र शासित प्रदेश पद्दुचेरी की विधानसभा में जरूर गठबंधन के जरिए सत्ता में पहुंच बनाई है। तेलंगाना में भी उसने कुछ क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की है, लेकिन राज्य की सत्ता तक पहुंच अभी दूर की कौड़ी है। केवल कर्नाटक ही ऐसा राज्य है जहां वह मजबूत है और उसने 2018 की चुनावी हार को साल भर के अंदर ही जोड़-तोड़ कर बदल दिया और एक बार फिर से सत्ता हासिल करने में सफल रही है।

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