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कृषि कानूनों पर बैकफुट पर मोदी तो पंजाब में फ्रंटफुट पर आई भाजपा, सबसे पुराने साथी से नहीं होगा गठबंधन

जालंधर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व के दिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच फिर से गठबंधन होने की चर्चा तेज है लेकिन भाजपा के कई दिग्गजों ने इस गठबंधन को दोबारा करने से साफ इनकार करना शुरू कर दिया है।

भाजपा के दिग्गज नेताओं ने अपनी बात हाईकमान तक पहुंचा दी है कि शिअद की पीठ पर भाजपा ने हमेशा हाथ रखा है लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने कभी भाजपा को पंजाब में मजबूत नहीं होने दिया। भाजपा नेता इस बात से भी आहत हैं कि पीएम मोदी सार्वजनिक मंच पर प्रकाश सिंह बादल के पांव छूते थे लेकिन बादल परिवार और अकाली दल के नेताओं ने पीएम मोदी के खिलाफ तीखी बयानबाजी कर सारी मर्यादा तार-तार कर दी है।

भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद अकाली दल ने विधानसभा चुनाव से पहले मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से गठबंधन करने में देरी नहीं की। हालांकि सभी सर्वे एवं अनुमान यह बता रहे हैं कि अकाली दल की स्थिति ठीक नहीं है। खासकर नशा और बेअदबी को लेकर शिरोमणि अकाली दल बैकफुट पर है।


अकाली दल के प्रति लोगों के गुस्से के कारण को भी अकाली नेता अच्छे से समझते हैं। यही कारण है कि तीन दिन पहले अमृतसर में एक कार्यक्रम में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने संगत को संबोधित करते हुए कहा था कि मेरे से गलतियां हुईं हैं लेकिन उसकी सजा उनकी पार्टी को न दी जाए।

सुखबीर को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पंजाब के लोगों में वो उत्साह नहीं है जो प्रकाश सिंह बादल के समय में होता था। इसी वजह से अकाली दल 95 साल की उम्र में प्रकाश सिंह बादल को विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। इस बात का इशारा खुद सुखबीर बादल ने किया है। अगर अकाली दल प्रकाश सिंह बादल को आगे करता है तो भाजपा से पुराने संबंधों के आधार पर अकाली-भाजपा का फिर गठबंधन होने की प्रबल संभावना है।

शिअद के रणनीतिकार नेताओं को उम्मीद है कि अगर प्रकाश सिंह बादल आगे हाथ बढ़ाते हैं तो भाजपा हाईकमान गठबंधन कर सकता है। भाजपा और अकाली दल के बीच सबसे पुराना 1996 से लेकर 2020 तक गठबंधन रहा।

हमने अकाली दल का कब साथ नहीं दिया, 2007 में तो सरकार भी नहीं बनती थी
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह ने अमर उजाला से बातचीत में दर्द साझा किया और कहा कि भाजपा ने अकाली दल का कब सम्मान नहीं किया। पीएम मोदी तो बड़े बादल साहब के पैर छूते थे। उनका आशीर्वाद लेते थे लेकिन पार्टी में सिरसा जैसे नेताओं ने तो तीखी बयानबाजी की और यहां तक कहा कि पीएम मोदी एक बार नहीं 100 बार मुर्दाबाद हैं। अकाली दल ने सारी मर्यादा लांघ ली हैं, अब गठबंधन कैसा।

2007 में जब भाजपा-शिअद की सरकार बनी थी तो भाजपा के बलबूते पर बनी थी। हमने डिप्टी सीएम की डिमांड रखी थी लेकिन अकाली दल ने एक बार भी विचार नहीं किया। हमने मौके का फायदा नहीं उठाया बल्कि पुराने गठबंधन को तरजीह दी। यह बात साफ है कि भाजपा अकाली दल के साथ हाथ नहीं मिलाएगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह राष्ट्रवादी नेता हैं और उनके साथ बातचीत होगी। बाकी चुनाव के बाद क्या समीकरण बनते हैं, वह कहा नहीं जा सकता लेकिन चुनाव से पहले अकाली दल के साथ गठबंधन का सवाल ही नहीं है।


अकाली दल के लिए भाजपा इसलिए जरूरी
अकाली दल के लिए शहरी व हिंदू वोट जरूरी है, क्योंकि चुनाव इस बात का गवाह है कि शहरी मतदाताओं के बल पर ही पंजाब में सरकार बनती आई है। अकाली दल ग्रामीण व भाजपा शहरी वोट लेकर गठबंधन में सरकार बनाते आए हैं। पंजाब में 1997 में पहली बार अकाली दल-भाजपा की सरकार बनी थी तो गठबंधन को 94 सीटें मिली थी। इसमें भाजपा की 18 सीटें थीं।

भाजपा ने शहरी वोट लिए और अकाली दल ने ग्रामीण। 2002 में कैप्टन सरकार बनी तो शहरी वोट कांग्रेस की तरफ खिसक गया। 2007 में अकाली दल 48 और भाजपा 19 सीटों पर जीती। शहरों में गठबंधन का परचम लहराया। 2012 में भी शहरी वर्ग ने शिअद-भाजपा को वोट दिया और गठबंधन सरकार दोबारा बनी। 2017 में शहरी क्षेत्र गठबंधन से खिसक गया और भाजपा सिर्फ तीन सीट पर आ गई। नतीजा, गठबंधन हार गया।

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