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​और ज्यादा खतरनाक होंगे चार-पैर वाले सैनिक, आईटीबीपी के कैनाइन दस्ते में शामिल होगी ‘ओसामा हंटर्स’ की नई पीढ़ी

नई दिल्ली । भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के कैनाइन दस्ते के ‘ओसामा हंटर्स’ के 17 पिल्लों के नाम पूर्वी लद्दाख के विवादित प्वाइंट्स गलवान, दौलत, देपसांग, मुखपारी, रेजांगला, सिरिजाप, चिपचैप जैसी जगहों के नाम पर रखे गए हैं। 2011 में इन पिल्लों के माता-पिता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘ओसामा हंटर्स’ के नाम से प्रसिद्ध हुए जब इन्होंने पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन का सुरक्षित ठिकाना खोज निकाला था। इसी के बाद अमेरिकी सेना के ऑपरेशन में लादेन मारा गया। आईटीबीपी के नए कैनाइन दस्ते में इन्हें शामिल करके आतंक और नक्सल विरोधी अभियानों, पैदल सेना की गश्त के लिए प्रशिक्षित करने की योजना बनाई गई है।

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस को अपने कैनाइन दस्ते के लिए 30 सितम्बर और 4 अक्टूबर के बीच 17 नए योद्धा मिले थे। दरअसल मलिनसिन नस्ल की फीमेल ओल्गा ने 9 और ओलेश्या ने 8 पिल्लों को हरियाणा के पंचकूला में भानू में आईटीबीपीके कुलीन राष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र में जन्म दिया था। ओल्गा और ओलेश्या 5 वर्षीय सगी बहनें हैं। यह सभी 17 पिल्ले ‘बेल्जियन मैलिनोइस’ नस्ल के हैं, क्योंकि इनके पिता गाला भी इसी नस्ल के हैं। ​​गाला को हाल ही में हिमाचल प्रदेश में रोहतांग अटल सुरंग का उद्घाटन करते समय ​​प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। इन पिल्लों के माता-पिता का इस्तेमाल अमेरिका ने खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को खत्म करने के लिए ऑपरेशन में किया था। इसी के बाद यह तीनों देश और दुनिया में ‘ओसामा हंटर्स’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

लगभग एक दशक से नक्सल विरोधी अभियानों, आतंकवाद-रोधी कार्यों में केंद्रीय सुरक्षा बलों और पुलिस इकाइयों द्वारा बड़े पैमाने पर ‘बेल्जियन मैलिनोइस’ कुत्तों का इस्तेमाल किया गया है। इसीलिए ​​आईटीबीपी ने सभी 17 पिल्लों को कैनाइन दस्ते में शामिल करके आतंक और नक्सल विरोधी अभियानों, पैदल सेना की गश्त के लिए प्रशिक्षित करने की योजना बनाई है। पैदा हुए इन पिल्लों के माता-पिता अभी भी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में सेवारत हैं। दोनों माताओं ने छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों के लिए तैनात आईटीबीपी इकाइयों के साथ सेवा की है और कई तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों को सूंघकर गश्त पर निकले सैनिकों की जान बचाई है। अधिकारियों का कहना है कि आईटीबीपी इन ​​चार-पैर वाले सैनिकों को प्रशिक्षित करके अन्य सुरक्षा बलों को भी सौंप सकती है, क्योंकि आंतरिक सुरक्षा क्षेत्र में जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं।

आईटीबीपी के उप महानिरीक्षक (पशु चिकित्सा) सुधाकर नटराजन ने कहा कि ये पिल्ले आनुवांशिक रूप से शीर्ष श्रेणी के हैं। ये अपनी माताओं से बेहतर आनुवांशिक ताकत रखते हैं​​।​​​ साथ ही ​यह ​निडर, फुर्तीले और शानदार सूंघने की क्षमता वाले हैं​​, इसलिए यह पीढ़ी अपने माता-पिता से ज्यादा खतरनाक होगी। एक से डेढ़ महीने की उम्र होने के बाद ​​इन पिल्लों के ‘नामकरण’ का आयोजन हरियाणा के भानू (पंचकुला) स्थित नेशनल ट्रेनिंग सेंटर में आयोजित किया गया। चूंकि आईटीबीपी के हजारों जवान चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं, इसलिए इन पिल्लों के नाम पूर्वी लद्दाख के विवादित प्वाइंट्स गलवान, दौलत, देपसांग, मुखपारी, रेजांगला, सिरिजाप, चिपचैप जैसी जगहों पर रखे गए हैं।

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