तीन साल बाद हुई सुनवाई, सभी पक्षों को सुनने के बाद आएगा निर्णय
इंदौर। दीपावली (Diwali) के दूसरे दिन गौतमपुरा (gautampura) में आयोजित होने वाला चर्चित हिंगोट युद्ध (Hingot war) अब कानूनी मोड़ पर पहुंच गया है। यह देखना कि यह परंपरा जारी रहेगी या बंद होगी, अब अदालत (court) तय करेगी। तीन साल के अंतराल के बाद इस मामले में गुरुवार को सुनवाई हुई, जिसमें सभी पक्षों की दलीलें सुनी गईं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वह सभी तथ्यों और तर्कों के आधार पर जल्द ही फैसला सुनाएगी।
हिंगोट युद्ध को लेकर 2017 में हुई एक दर्दनाक घटना के बाद यह मामला अदालत तक पहुंचा। उस वर्ष युद्ध के दौरान एक युवक की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग घायल हो गए थे। इसके बाद समाजसेवी साधुप्रसाद नामदेव ने अधिवक्ता प्रतीक माहेश्वरी के माध्यम से जनहित याचिका दाखिल की। याचिका में इस आयोजन को हिंसक बताते हुए इसे बंद करने की मांग की गई थी।
यह युद्ध नहीं, वर्षों पुरानी परंपरा है…जनप्रतिनिधियों की दलील
याचिका दायर होने के बाद गौतमपुरा के दो पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष विशाल राठी और चैतन्य भावसार ने हस्तक्षेप करते हुए इसे परंपरा बताया। उन्होंने कोर्ट में कहा कि हिंगोट युद्ध कोई युद्ध नहीं, बल्कि सांस्कृतिक परंपरा है, जो वर्षों से निर्विघ्न रूप से चली आ रही है। उनका आग्रह है कि इसे संरक्षित रखते हुए आगे भी जारी रखा जाए।
न परंपरा, न प्रमाण… याचिकाकर्ता का दावा
याचिकाकर्ता साधुप्रसाद नामदेव का कहना है कि इस आयोजन में हर साल कई लोग घायल होते हैं और जान-माल की हानि होती है। उन्होंने दावा किया कि न तो यह किसी धार्मिक ग्रंथ या परंपरा में दर्ज है और न ही इसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं। ऐसे में इसे परंपरा मानकर जारी रखना उचित नहीं है।
तुर्रा और कलंगी भी पहुंचे कोर्ट
कोर्ट ने पिछली सुनवाई में ‘तुर्रा’ और ‘कलंगी’ पक्षों को भी शामिल कर उनकी राय जानने की बात कही थी। पहले कोई सामने नहीं आया, क्योंकि इस आयोजन का कोई औपचारिक आयोजक नहीं होता। बाद में जनसूचना प्रकाशित की गई, जिसके बाद एकपक्षीय निर्णय की आशंका को देखते हुए कलंगी पक्ष से कैलाशचंद्र पाटीदार और तुर्रा पक्ष से कंचनलाल चौधरी अदालत में पेश हुए और अपना पक्ष रखा।
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