ब्‍लॉगर

राष्ट्रीय एकता के संगीत सूत्र

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारत रत्न लता मंगेशकर स्वर साम्राज्ञी के रूप में प्रतिष्ठित थी। यह बात अलग है कि वह अपने को संगीत की साधिका मानती थीं। समर्पित भाव से की गई साधना ने उन्हें संगीत जगत के विलक्षण मुकाम पर पहुंचाया। यह माना जा रहा था उनकी स्मृति में शुरू किया गया सम्मान संगीत क्षेत्र की किसी विभूति को दिया जाएगा। लेकिन लता दीनानाथ मंगेशकर सम्मान सर्वप्रथम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रदान किया गया। मतलब पहला लता दीनानाथ सम्मान समाज सेवा के लिए दिया गया।

इस पर विचार करने के लिए एक पीढ़ी पीछे लौटना होगा। इस सम्मान में लता के साथ दीनानाथ का भी नाम जुड़ा है। पुरस्कार का यह नामकरण अपने में बहुत कुछ कहने वाला है। इसमें पुत्री लता और पिता दीनानाथ का नाम शामिल है। दीनानाथ मंगेशकर महान संगीतज्ञ थे। इसके साथ ही समाज व राष्ट्रीय कार्यों में भी उनकी रुचि रहती थी। महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर और सुधीर फड़के उनके पारिवारिक मित्र थे। सुधीर फड़के समाज सेवक के साथ ही संगीतकार भी थे।

गीतरामायण, रामायण के प्रसंगों पर आधारित छप्पन मराठी गीतों का संग्रह है। यह आकाशवाणी पुणे से प्रसारित होने वाला बहुत लोकप्रिय कार्यक्रम था। इसके लेखक प्रसिद्ध साहित्यकार गजानन दिगंबर माडगूलकर थे। जबकि सुधीर फड़के ने इसे संगीतबद्ध किया था।

लता मंगेशकर को बचपन से ही संगीत के साथ राष्ट्र सेवा का माहौल मिला। लता मंगेशकर ने गोवा के स्वतंत्रता अभियान व चीन और पाकिस्तान के आक्रमण के समय सेनानियों के उत्साहवर्धन का उल्लेखनीय कार्य किया। वीर सावरकर के प्रति उनका बहुत सम्मान भाव था। दीनानाथ मंगेशकर की बलवंत संगीत मंडली के लिए वीर सावरक ने संन्यस्त खड्ग नामक नाटक लिखा था। भारत के स्वतन्त्र होने के सात वर्ष बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने गोवा की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई। इसमें बाबा साहब पुरंदरे, सुधीर फड़के, श्रीकृष्ण भिड़े आदि शामिल थे। इस अभियान में धन संग्रह हेतु लता ने निःशुल्क कार्यक्रम किये थे। चीन व पाकिस्तान युद्ध के समय भी उन्होंने ऐसे कार्यक्रम किये थे।

पुरस्कार प्राप्त करने के बाद नरेन्द्र मोदी ने लता व दीनानाथ मंगेशकर के साथ वीर सावरकर और सुधीर फड़के का भी स्मरण किया। ब्रिटिश वायसराय के समक्ष शिमला में दीनानाथ मंगेशकर ने वीर सावरकर के देशभक्ति गीत को संगीत के साथ प्रस्तुत किया था। इसमें अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी गई थी।

नरेंद्र मोदी ने वर्तमान कार्यों का भी उल्लेख किया। कहा कि देश एक भारत श्रेष्ठ भारत के आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। लताजी एक भारत, श्रेष्ठ भारत की मधुर प्रस्तुति की तरह थीं। उन्होंने देश की तीस से ज्यादा भाषाओं में हजारों गीत गाये। आज आजादी के अमृत महोत्सव में देश अपने अतीत को याद कर रहा है। देश भविष्य के लिए नए संकल्प ले रहा है। भारत दुनिया के सबसे बड़े स्टार्टअप इको सिस्टम में से एक है। आत्मनिर्भर भारत अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा है। सबका साथ, सबका विकास सबका विश्वास और सबका प्रयास चरितार्थ हो रहा है। भारत दुनिया को योग और आयुर्वेद से लेकर पर्यावरण रक्षा जैसे विषयों पर दिशा दे रहा है।

नरेंद्र मोदी और लता मंगेशकर को अलग-अलग क्षेत्रों में शीर्ष स्तर की प्रतिष्ठा व लोकप्रियता मिली। एक संयोग यह भी है कि दोनों को बचपन में कड़ा संघर्ष करना पड़ा। किंतु इन्होंने हार नहीं मानी। आगे बढ़ने का इनमें जज्बा था। नरेंद्र मोदी बचपन में चाय बेचते थे। लता मंगेशकर को इसी तरह कम उम्र में परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। प्रारंभ में उनके लिए फ़िल्म संगीत में स्थान बनाना आसान नहीं था। तब उनके जीवन संगीत व संघर्ष दोनों एक साथ थे। वह संघर्ष से पीछे नहीं हटी। चलती रही। इसी गति से उनकी स्वर लहरी फिजाओं में गूंजने लगी।

भारतीय फिल्मों में संगीत पक्ष बेजोड़ रहा है। इस ओर सदैव बड़ी शिद्दत से ध्यान दिया जाता है। अनेक फिल्में गीत व संगीत के चलते सुपर हिट होती रही है। इनके गीत लोगों की जुबान पर रहते हैं। इस आधार पर लता मंगेशकर की बराबरी करने वाला कोई नहीं है। उन्होंने जब गायन प्रारंभ किया उस समय सुरैया व नूरजहां का जलवा हुआ करता था। दोनों गायिका होने के साथ सुप्रसिद्ध नायिकाएं भी थी। लता के लिए अपना मुकाम बनाना कठिन था। फिर भी लता शिखर पर सुशोभित हुई।

उनके गीतों में बेशुमार रंग है। कुछ आनंद को बढ़ाते हैं। कुछ उदास मन को सहारा देते हैं। भारतीय फिल्म संगीत ने लंबी यात्रा तय की है। इसमें सर्वाधिक योगदान लता मंगेशकर का रहा है। इस संगीत यात्रा के अनेक पड़ाव हैं। लता मंगेशकर ने अपने को प्रत्येक पड़ाव के लिए उपयुक्त व सामयिक प्रमाणित किया। गीतों की संरचना बोल व संगीत में बदलाव होते रहे। पीढ़ियों के अंतर से पसंद-नापंसद भी बदलती रही। लेकिन प्रत्येक दौर में लता मंगेशकर की प्रासंगिकता कायम रही। उनकी आवाज हमेशा दिल की गहराइयों तक उतरती रही।

लता का जीवन केवल संगीत जगत के लिए ही नहीं, सभी के लिए प्रेरणादायक है। उनके परिवार में संगीत का माहौल था। पिता दीनानाथ मंगेशकर गायक थे। नन्हीं लता उनसे प्रेरणा लेती थी। उनसे सीखने का प्रयास करती थी। लेकिन यह संगत ज्यादा नहीं चल सकी। दीनानाथ मंगेशकर का आकस्मिक निधन हो गया। तब लता मात्र 13 वर्ष की थी। इस अल्पायु में उनके ऊपर अपनी, चार बहनें और एक भाई की जिम्मेदारी आ गई। लता भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। यह उनके विधिवत संगीत शिक्षा ग्रहण करने की अवस्था थी। लेकिन परिवार के भरण पोषण में यह संभव नहीं हो सका।

संगीत के साथ उनके जीवन में संघर्ष भी आ गया था। एक फिल्म के समूह गायन में अवसर मिला था लेकिन संगीतकार ने कहा कि उनकी आवाज बहुत महीन है। यह आवाज फिल्मी गायन के उपयुक्त नहीं है। वह लता की प्रतिभा को समझने में नाकाम थे। जिस आवाज को वह नकार रहे थे, आगे चलकर उसने कई दशकों तक लोगों के दिलों पर राज किया। जाहिर है कि आज उनके नहीं रहने के बाद भी यह स्वर जीवंत बना रहेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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