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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से आएगा UGC में बड़ा बदलाव

नई दिल्‍ली । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (New National Education Policy -2020) के कार्यान्वयन से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ढांचागत एवं गुणात्मक (Structural and qualitative), दोनों ही प्रकार का रूपांतरकारी परिवर्तन होगा। इसमें कई संस्थाएं शामिल होंगी, उनका रूप बदलेगा, फिर इस सम्मिलन से कुछ नया बनेगा। इस प्रक्रिया में एक अहम परिवर्तन यह होने जा रहा है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का वर्तमान स्वरूप बदल जाएगा। यह उच्च शिक्षा आयोग (Commission of higher education) में शामिल हो जाएगा। ऐसे में यह जरूरी है कि उच्च शिक्षा में यूजीसी की ऐतिहासिक भूमिका के साथ उच्च शिक्षा व्यवस्था का जो नया ढांचा खड़ा होने जा रहा है, उसकी संभावनाओं एवं चुनौतियों पर भी विचार किया जाए।

प्रस्तावित भारतीय उच्च शिक्षा सेवा आयोग चार आयामों में बंटा होगा। पहला, विनियमन से संबंधित होगा, दूसरा ‘प्रत्यायन एवं मान्यता’, तीसरा ‘अनुदान का पक्ष’ और चौथा, शिक्षा में संयोजन एवं गुणात्मक (Combination and multiplication) विकास। यदि यूजीसी का इतिहास देखें, तो भारतीय जनतांत्रिक इतिहास की अनेक विभूतियों के योगदान को यह अपने में अंकित किए हुए है। जवाहर लाल नेहरू, एस. राधाकृष्णन, मौलाना अबुल कलाम आजाद, शांतिस्वरूप भटनागर, डी.एस. कोठारी, डॉ. मनमोहन सिंह, प्रो. यशपाल जैसे व्यक्तित्वों ने इसका नेतृत्व किया है। फिलहाल प्रो. डी. पी. सिंह इसके अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 1948 में प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. एस राधाकृष्णन के नेतृत्व में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया गया था। उसी की रिपोर्ट के आधार पर 1952 में विश्वविद्यालयों को आर्थिक अनुदान देने हेतु यूजीसी के गठन की प्रक्रिया को गति दी गई। इसका गठन 1956 में किया गया। 1952-1956 तक आते-आते इसकी भूमिका का विस्तार हुआ। गठन के वक्त न केवल आर्थिक अनुदान वरन् उच्च शिक्षा के संयोजन, व्यवस्थापन एवं उसकी गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी से भी इससे जोड़ दिया गया। 1956-2021 तक के लंबे कालखंड में अनेक कल्पनाशील एवं नवाचारी अध्यक्षों के नेतृत्व में यूजीसी ने उच्च शिक्षा के विकास में अपना स्वर्णिम योगदान दिया। यह ठीक है कि इंग्लैंड (England) के विश्वविद्यालयीय शिक्षा ढांचे से प्रभावित होकर इसकी संकल्पना की गई थी। किंतु धीरे-धीरे अनेक विद्वतजनों के सक्षम नेतृत्व में इसने राष्ट्रीय उच्च शिक्षा के निर्माण में महत्वपूर्ण यात्रा तय की।

यह जानना रोचक है कि अब जब यूजीसी के स्वर्णिम इतिहास की सांध्य बेला आ रही है, यह आयोग अनवरत कल्पनाशील ढंग से आज भी कार्य कर रहा है। अभी यह अपने अध्यक्ष प्रोफेसर डी. पी. सिंह के नेतृत्व में भारतीय उच्च शिक्षा में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 (New National Education Policy – 2020) के तहत नए बदलावों को लाने के अभियान का नेतृत्व भी कर रहा है। शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के रूपान्तरकारी संयोजन में यूजीसी भारतीय शिक्षा जगत की अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर उच्च शिक्षा को बदलने में लगा हुआ है। कोरोना के प्रभाव पर केंद्रित शोध को उसने बढ़ाया ही है, साथ ही शिक्षा संस्थानों के आस-पास के समाजों, ग्रामीण क्षेत्रों एवं जनजातीय समूहों के विकास के लिए उसने शिक्षा संस्थानों को जागरूक बनाया है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लागू होने पर संभव है कि यूजीसी की यह भूमिका नए ढांचे में और भी आगे बढ़ पाएगी। भारतीय शिक्षा जगत में होने वाले ये ढांचागत परिवर्तन प्रधानमंत्री के ‘मिनिमम गवर्नेन्स’ के सिद्धांत को शायद अपने-अपने ढंग से निरूपित कर पाएंगे। शैक्षिक प्रशासन में संभव है कि एक नए प्रकार की सहजता सृजित हो। प्रशासन को सहज एवं सरल बनाने से बहुत संभव है भारतीय शिक्षा जगत में शोध, शिक्षण एवं नवाचार के लिए अनेक संभावनाएं खुलेंगी। किंतु यह जरूरी है कि कोई भी परिवर्तन एक नैरन्तर्य के बीच ही संभव हो। प्रयासों का सातत्य किसी भी परिवर्तन को प्रभावी एवं सकारात्मक बनाता है। ऐसे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समकालीन नवाचारी कार्यों की सततता भविष्य में भी विकसित होगी, ऐसा विश्वास है।

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