हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी के व्रत का सभी एकादशी(Ekadashi) में विशेष महत्व है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष यह तिथि 20 जून को शाम 4:21 बजे से शुरू होगी तथा इसका समापन 21 जून को दोपहर 01:31 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत 21 जून को रखा जाएगा। महाभारत (Mahabharata) काल में पांडव पुत्र भीम ने भी इस एकादशी पर व्रत किया था। इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी (Bhimseni Ekadashi) भी कहते हैं। इस एकादशी पर पूरे दिन पानी नहीं पिया जाता।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस तिथि पर निर्जल रहकर व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो खुद निर्जल रहकर ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करने से उसे जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि (happiness and prosperity) बनी रहती है।
आपको बता दें कि एक साल में 24 एकादशियां होती हैं। हर महीने दो एकादशी। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब 24 एकादशियों में दो एकादशी और भी जुड़ जाती हैं। इस तरह कुल 26 एकादशी हो जाती हैं। इन सभी में निर्जला एकादशी का खास महत्व है। केवल इस दिन व्रत करके सभी एकादशी का फल मिल जाता है।
निर्जला एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, अपने जीवन में मनुष्य को निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस व्रत को निर्जला के आलावा पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत का पालन महाभारत काल में भीमसेन ने किया था और उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई थी। ऐसी मान्यता है कि एकादशी व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति तो होती है। इसके साथ ही लोगों की सभी मनोकामनाएं(wishes) भी पूर्ण होती हैं। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है।
नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
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