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हिंदू या मुस्लिम वर्चस्व नहीं बल्कि भारत का वर्चस्व चाहिए : भागवत

-हिंदू-मुस्लिम एकता का आधार मातृभूमि, परंपरा-संस्कृति और समान पूर्वज

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat) ने कहा कि लोकतांत्रिक देश भारत में हिंदुओं या मुसलमानों का वर्चस्व (Domination of Hindus or Muslims in democratic country India) नहीं होगा, यहां सिर्फ भारत और भारतीयों का ही वर्चस्व होगा। एक ऐसा भारत जहां सभी तबकों का अस्तित्व और कल्याण सुनिश्चित रहेगा। सरसंघचालक डॉ. भागवत ने हिंदू-मुस्लिम समन्वय के प्रयास के तौर पर देखे जा रहे कार्यक्रम में स्पष्ट रूप से कहा कि दोनों समुदायों के बीच एकता का आधार मातृभूमि, परंपरा-संस्कृति और समान पूर्वज हैं।

डॉ. भागवत ने डॉ. ख्वाजा इफ्तेखार अहमद की हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में लिखी पुस्तक ‘वैचारिक समन्वय- एक व्यावहारिक पहल’ का विमोचन किया। पुस्तक विभिन्न मत-पंथों के बीच आपसी चर्चाओं के आधार पर लिखी गई है। इस अवसर पर मंच पर डॉ. भागवत के अलावा सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल, अखिल भारतीय कार्यकारणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार, केंद्रीय मंत्री एवं गाजियाबाद के सांसद वीके सिंह और पुस्तक के लेखक डॉ. इफ्तेखार अहमद मौजूद थे।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और उसके सहयोगी संगठन की ओर से आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में डॉ. भागवत ने कहा कि किसी धर्म समुदाय के अस्तित्व को लेकर भय और संदेह खड़ा करने का कोई कारण नहीं है। भारत में जो भी आया उसका अस्तित्व सुरक्षित बना रहा है। उन्होंने कहा कि ‘तथाकथित’ अल्पसंख्यक समुदाय पर उत्पीड़न की जो घटनाएं होती हैं उनका विरोध भी बहुसंख्यक समाज की ओर से ही होता है। इसका कारण यह है कि बहुसंख्यक हिंदू समाज उग्रवाद और उत्पीड़न के खिलाफ है।

संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने का आज का व्याख्यान कुछ वर्ष पूर्व; विज्ञान भवन में दिए गए भाषण की अगली कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है। उस समय उन्होंने कहा था कि हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना तब तक अधूरी है जब तक कि उसमें मुस्लिम समुदाय भागीदार नहीं बनता।

मुसलमानों में संघ को लेकर फैली भ्रांति के लिए संघ प्रमुख ने मुस्लिम समाज के अंदर फैलाए गए डर को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को डर दिखाया गया कि संघ उनके अस्तित्व के लिए खतरा है या फिर संघ उनसे इस्लाम छीन लेगा। यह पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज जब से भारत में आया है। हमारे ज्ञानीजनों ने एकता की बात कही है।

आज के कार्यक्रम को हिंदू और मुसलमानों सहित विभिन्न समुदायों के बीच समझदारी और मिलाप की शुरुआत बताते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि देर से ही सही एक अच्छी पहल हुई है। उन्होंने कहा कि आज संघ एक बड़ी शक्ति बन चुका है, अब उसका किया यह प्रयास सार्थक सिद्ध होगा। संघ का मानना है कि देश में कोई एक भी व्यक्ति अगर पीछे रह जाता है तो राष्ट्र का परमवैभव संभव नहीं है। इसीलिए सबका उत्थान जरूरी है। डॉ. भागवत ने मंच से अपील भी की कि हमें आपसी झगड़े त्यागकर भारत को विश्वगुरु बनाना है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आरंभ के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए डॉ. भागवत ने संघ के प्रथम सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के वचनों को सामने रखा। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार मानते थे कि हिंदू समाज की वर्तमान स्थिति के लिए मुसलमानों और अंग्रेजों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कमी हिंदू समाज में ही है जिसे सुधारने की आवश्यकता है। संघ किसी के विरोध में नहीं बल्कि हिंदू समाज की कमियों को ठीक करने के लिए कार्य कर रहा है। संघ हिंदू समाज को संबल और विश्वास देने के लिए कार्य कर रहा है ताकि वह अपनी ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की सोच को आगे रख सके।

हिंदू समाज और उसके स्वभाव का जिक्र करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि उग्र भाषण करने पर भले ही वाहवाही मिल जाए लेकिन हिंदू समाज इस सोच का समर्थन नहीं करता। वह अन्य मनुष्यों को भी अपने जैसा ही मानता और वैसे ही व्यवहार का पक्षधर है।

दिल्ली के विज्ञान भवन में संघ से जुड़े विषयों पर मत रखने वाले अपने पुराने भाषणों का जिक्र करते हुए डॉ. भागवत ने एक बार फिर मॉब लिंचिंग (उन्मादी भीड़ की हिंसा) का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और हम गो माता को पूजते हैं। लिंचिंग करने वाले असल में आतताई हैं जिनसे कानून के जरिए निपटना चाहिए और इसमें किसी का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

संघ प्रमुख ने कहा कि उनके आज के उद्गार से देश में अलग-अलग प्रतिक्रिया होगी, कुछ लोगों को उनकी बात नागवार गुजरेगी लेकिन संघ प्रमुख के रूप में वह निचले स्तर तक स्वयंसेवकों और लोगों के संपर्क में रहते हैं और उन्हीं की भावनाओं को प्रगट करते हैं। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के बारे में उनके विचार कोई नई बात नहीं हैं। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार, दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव राव गोलवलकर और तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे। गुरुजी की पुस्तक ‘बंच ऑफ थॉट’ में भी इन्हीं विचारों की अभिव्यक्ति होती है।

पुस्तक के लेखक डॉ. ख्वाजा इफ्तेखार ने इस अवसर को एक ऐतिहासिक क्षण बताया और कहा कि यह 95 वर्षों की दूरी को पाटने का यही अवसर है। यह अवसर दोस्ती, सहयोग और आपसी भाईचारा विकसित करने का है। पुस्तक के बारे में उन्होंने कहा कि इसमें देश के राजनीतिक घटनाक्रम का सच्चा अवलोकन किया गया है।

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच; राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार के संरक्षण में मुस्लिमों के बीच काम करने वाला राष्ट्रवादी संगठन है। कार्यक्रम का आयोजन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के एक सहयोगी संगठन के माध्यम से किया गया था।

उल्लेखनीय है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की राष्ट्रीय स्तर की दो दिवसीय बैठक चार जुलाई से गाजियाबाद में शुरू हुई है। बैठक में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के साथ ही संघ के प्रमुख पदाधिकारी भी शामिल हैं। इस बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम के साथ समन्वय से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विशेष तौर पर विचार विमर्श हो रहा है। साथ ही आगे की रणनीति पर भी विचार हो रहा है। डॉ. भागवत इसी बैठक में शामिल होने यहां पहुंचे थे और इसी दौरान पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। (एजेंसी, हि.स.)

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