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ओडिशा के मटिल्‍डा कुल्‍लू ने फोर्ब्‍स लिस्‍ट में बनाई जगह, जानिए पूरी कहानी

नई दिल्‍ली (New Delhi)। ओडिशा की 45 वर्षीया मतिल्दा कुल्लू (Matilda Kullu), जानी-मानी मैगज़ीन फोर्ब्स की सबसे ताकतवर भारतीय महिलाओं की लिस्ट में शामिल नामों से एक हैं। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या काम किया इन्होंने, जिससे वह इतनी मशहूर हो गईं?

दरअसल, मटिल्डा कुल्लू आशा वर्कर हैं। रोज सुबह वह 5 बजे उठ जाती हैं। परिवार के लिए दोपहर का भोजन बनाने और मवेशियों को खिलाने के बाद लगभग 7.30 बजे साइकिल पर घर से निकल पड़ती हैं।

ओडिशा से ताल्‍लुक रखने वाली मटिल्‍डा कुल्‍लू ने 2021 की फोर्ब्‍स लिस्‍ट में जगह बनाई थी। उनका नाम ऐमजन हेड अपर्णा पुरोहित और बैंकर अरुंधति भट्टाचार्य के साथ लिस्‍ट में था। यह पहली बार था कि कोई आशा वर्कर सूची में शामिल हुई थी। मटिल्डा कुल्‍लू न तो बिजनेस लीडर हैं और न ही बहुत पढ़ी-लिखी। उन्‍हें 5,000 रुपये वेतन मिलता है। उनका अच्‍छा काम ही उनकी पहचान बन गया।

2006 में बनी थीं आशा वर्कर
2006 में मटिल्डा कुल्‍लू को ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में बड़ागांव तहसील के गर्गदबहाल गांव के लिए आशा कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त किया गया था। जब उन्‍होंने आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया तो मुख्य उद्देश्‍य परिवार का समर्थन करने के लिए कुछ पैसे कमाना था। उनके पति जो कमाई घर लाते थे वह कभी भी चार लोगों के परिवार के लिए काफी नहीं होती थी।

खासकर इसलिए, क्योंकि वह अपने बच्चों को अच्छी तरह से लिखाना-पढ़ाना चाहती थीं। 2006 तक वह घर चलाने के लिए छोटी-मोटी नौकरियां और कुछ सिलाई का काम करती थीं। लेकिन वह नाकाफी होता था। आज करीब 1000 लोगों की देखभाल का जिम्‍मा उन पर हैं। इनमें से ज्‍यादातर खारिया जनजाति से हैं। मटिल्‍डा उनके सभी स्वास्थ्य रिकॉर्ड और परेशानियों को जानती हैं।



गांव में अंधविश्‍वास को दूर करना था बड़ी चुनौती
मटिल्डा जिस गांव से आती हैं, वहां स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच न के बराबर थी। बीमार पड़ने पर कोई भी ग्रामीण डॉक्टर या अस्पताल के पास नहीं जाता था। वे या तो स्थानीय जड़ी-बूटियों और काढ़े से इसका इलाज करते थे या अनुष्ठान करते थे। इसमें झाड़-फूंक और जादू-टोना शामिल था। उनका मानना था कि इससे उन्हें उनकी बीमारी से छुटकारा मिल जाएगा।

मटिल्डा का पहला काम इस मानसिकता को बदलना था। चूंकि गांव में गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल जाने की जरूरत नहीं दिखती थी। इसलिए प्रसव के दौरान जटिलताओं के कई मामले सामने आते थे। उन्हें चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने के बारे में समझाना एक कठिन काम था। धीरे-धीरे लेकिन लगातार मटिल्डा ने अकेले ही यह बदलाव लाया। शुरुआत में उनका काम गर्भवती महिलाओं की जांच करना और उन्हें हर संभव सहायता प्रदान करना था। एक गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए उन्‍हें प्रति मरीज 600 रुपये दिए जाते थे।

गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी में की बड़ी मदद
मटिल्डा को ग्रामीणों को अस्पतालों में अपना हेल्‍थ चेक-अप कराने के बारे में समझाने में बहुत लंबा समय लगा। वह घर-घर जाकर इसके बारे में बतातीं। खासकर उन घरों में जहां गर्भवती महिलाएं थीं। यहां तक कि गर्भवती होने के दौरान जो बुनियादी पूरक आहार लेना होता है, वह भी महिलाओं के लिए लेना मुश्किल होता था। अस्पताल में कुछ सफल डिलीवरी से महिलाएं कॉन्फिडेंट महसूस करने लगीं। अब तक मटिल्‍डा 200 से अधिक डिलीवरी में सहायता कर चुकी हैं। अपनी वर्षों की सेवा के बाद मटिल्डा एहसास करती हैं कि सिर्फ एक चीज जो बहुत अधिक नहीं बदली है वह है वेतन। उन्‍हें हर महीने औसतन 5,000 रुपये मिलते हैं।

कभी नहीं सोचा था फोर्ब्‍स लिस्‍ट में मिलेगी जगह
फोर्ब्स इंडिया वुमेन-पावर 2021 की सूची में शामिल होने वाली पहली आशा कार्यकर्ता का तमगा होना मटिल्‍डा को उत्‍साहित करता है। उन्‍होंने कभी नहीं सोचा था कि उनके छोटे से गांव के बाहर कोई उन्‍हें जानता होगा। उन्‍हें दूसरों ने यह एहसास कराया कि यह कितना बड़ा सम्मान है। लोगों ने बताया कि उन्‍हें अरुंधति भट्टाचार्य, अपर्णा पुरोहित और आईपीएस अधिकारी रेमा राजश्वरी जैसे बहुत प्रसिद्ध और सम्मानित मह‍िलाओंं के साथ दिखाया गया था।

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