जबलपुर न्यूज़ (Jabalpur News)

संकट में शहर के 31 छोटे अस्पतालों के संचालक

  • हजारों लोग कर्मचारी हुए बेरोजगार

जबलपुर। शहर में 2 दर्जन से अधिक छोटे अस्पताल फायर एनओसी के चलते बंद पड़े हैं और अब उनसे बिल्डिंग परमिशन की भी मांग की जा रही है। जमीनी तौर पर हकीकत यह है कि छोटे-छोटे अस्पतालों के पास अस्पताल के नाम से बिल्डिंग परमिशन उपलब्ध नहीं हो सकती क्योंकि वह आवासीय भूमि पर आवासीय नक्शों में बने हुए हैं। मूल रूप से छोटे-छोटे नर्सिंग होम के रूप में इनकी शुरुआत हुई थी जबकि म्युनिसिपल बायलॉज में छोटे नर्सिंग होम में किसी भी प्रकार का प्रावधान नहीं है। केवल प्राइमरी सेंटर के लिए गाइडलाइन को सभी अस्पतालों पर लागू किया जा रहा है। इस आधार पर सभी अस्पतालों को एक श्रेणी में रख कर तमाम नियम कायदों का पालन करवाना कठिन हो रहा हैं। यही वजह है कि जो अस्पताल 1 अगस्त 2022 को हुए न्यू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल अग्निकांड के बाद से बंद पड़े हैं वह आज भी चालू नहीं हो सके और हजारों लोग बेरोजगार बने हुए हैं। अधिकतम छोटे अस्पताल 2012 के पहले आवासीय प्लॉट पर बने हुए हैं उन्हें 2012 के बाद आए बिल्डिंग अधिनियम के नियमों को लागू करते हुए बंद करने की साजिश की जा रही है।



इन नियमों का पालन करवाना चाह रहा प्रशासन
अस्पतालों को म्युनिसिपल बाइलॉज के अस्पताल अनुमति प्राप्त करनी है, जिसके हिसाब से कमर्शियल प्लॉट का डायवर्सन कराना होगा।
इसके अलावा नक्शा अस्पताल के मुंसिपल बायलॉज के हिसाब से पास होना चाहिए। आवासीय नक्शे पर कोई अस्पताल नहीं चलेगा।
छोटे-छोटे अस्पतालओं से जहां केवल 10 से 15 मरीज भर्ती होते है वहां 2 हजार से 3 हजार स्क्वेयर फीट की पार्किंग मांगी जा रही है।
अस्पताल संचालन हेतु प्लॉट का साइज कम से कम 8 हजार स्क्वेयर फीट की पार्किंग मांगी जा रही है।

हर अस्पताल में रैंप होना चाहिए, हर अस्पताल में 1 फायर एग्जिट होना चाहिए
आखिरी नियम के अनुसार टीएनसीपी जबलपुर विकास प्राधिकरण के अनुसार अस्पताल हेतु अनुमति होनी चाहिए। इस तरह के नियमों की पूर्ति छोटे-छोटे 50 बिस्तरों से कम के 34 अस्पतालों को बंद रखकर कराई जाने हेतु पेरशान किया जा रहा है।

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