ब्‍लॉगर

पुर्तगालियों के चंगुल से गोवा को आजाद कराने वाले नायकों को नमन

– दीपक कुमार त्यागी

पर्यटन के माध्यम से प्रचुर विदेशी धन लाने वाला राज्य गोवा, अपने समुद्री तटों की खूबसूरती के दम पर देश-दुनिया के सैलानियों की बेहद मनपसंद जगह बन चुका है। गोवा अपनी नाइट लाइफ के लिए दुनिया में मशहूर है, जिसके चलते युवा पीढ़ी को गोवा बहुत आकर्षित करता है। ऐसे राज्य गोवा के लिए 19 दिसंबर का दिन बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन गोवा को क्रूर पुर्तगाली शासकों की गुलामी से आजादी मिली थी। आज गोवा की आजादी के संघर्ष की लंबी गाथा को भुला दिया गया है। इसके लिए चंद लोगों को श्रेय देने के अलावा उससे अधिक कुछ नहीं हुआ है, जबकि गोवा की आजादी में असंख्य गुमनाम नायकों का अनमोल योगदान है।आज के दौर में बहुत ही कम लोग जानते हैं कि गोवा के भारत में शामिल होने के पीछे गांधी, नेहरू, लोहिया, वी. के. कृष्ण मेनन एवं भारतीय सैन्य बलों का ही योगदान नहीं है, बल्कि इसके लिए बहुत सारे लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

“पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को डी गामा वर्ष 1498 में भारत आये थे, लेकिन कभी खोज के उद्देश्य से आये पुर्तगालियों ने 12 वर्षों के अंदर ही वर्ष 1510 में गोवा पर अपना कब्जा जमाकर, वहां के निवासियों पर लंबे समय तक अत्याचार करते हुए, गोवा की आजादी के लिए उठने वाली हर आवाज को बार-बार दमनकारी नीतियों से चुप करवाकर, लगभग 450 वर्षों तक बेखौफ होकर राज किया था।”

15 अगस्त 1947 को जब भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी, तो गोवा के निवासियों को लगने लगा था कि अब उनको भी पुर्तगालियों की गुलामी की बेड़ियों व उनकी क्रूर बहशीपन हरकतों से जल्द ही आजादी मिल जायेगी।गोवा के निवासियों को उस वक्त लगने लगा था कि भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद गोवा का भारत में बहुत जल्द ही विलय हो जायेगा। लेकिन अंग्रेजों व पुर्तगालियों की भारत के खिलाफ षड्यंत्र एवं तिकड़मबाजी के चलते गोवा पर भारत की आजादी के बाद भी वर्षों तक पुर्तगालियों का कब्जा बरकरार रहा।

“हालांकि आज गोवा की अपने अलौकिक बेहद अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के दम पर दुनिया में विशेष पहचान बन गयी है। लेकिन गोवा भारत की आजादी के बाद भी तकरीबन 14 वर्षों तक क्रूर पुर्तगाली शासकों का अत्याचार सहन करते हुए उनका गुलाम बना रहा। बाद में भारतीय सेना के जांबाजों के द्वारा चलाये गये एक सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन विजय’ के माध्यम से 19 दिसंबर 1961 को पुर्तगाली शासकों से गोवा को आजादी दिलाने का कार्य तत्कालीन भारत सरकार ने किया था।”

इतिहासकारों के बलबूते आज दुनिया जानती है कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलने के बाद भी गोवा की तत्कालीन पुर्तगाली सरकार किसी भी हाल में अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को भारत सरकार को सौंपने के लिए तैयार नहीं थी। गोवा के पुर्तगाली शासकों ने भारत में विलय के लिए उस वक्त भारत सरकार से स्पष्ट रूप से मना कर दिया था। इस संदर्भ में पुर्तगालियों का तर्क था कि जब उन्होंने गोवा पर कब्जा किया था, तो उस वक्त भारत गणराज्य अस्तित्व में ही नहीं था। इसके विपरीत, गोवा से भारत का नाता सदियों पुराना रहा है, यहां पर मौर्य वंश का शासन रहा है। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन आया था, जिनको विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम के द्वारा खदेड़ दिया गया था, फिर अगले सौ वर्षों तक विजयनगर के शासकों ने गोवा पर शासन किया था। वर्ष 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान के द्वारा फिर से गोवा को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के यूसुफ आदिल शाह का गोवा पर कब्जा हुआ था, जिसने गोवा (गोअ-वेल्हा) को अपने राज्य की दूसरी राजधानी बनाया था।

“इतिहासकारों के अनुसार मार्च 1510 में अलफांसो-द-अल्बुकर्क के नेतृत्व में पुर्तगालियों के द्वारा गोवा पर आक्रमण किया गया था, उन्होंने अपने स्थानीय सहयोगी तिमैया की मदद से बीजापुर सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को पराजित करके गोवा में पुर्तगाली राज शुरू किया, जो कि अगले 450 वर्षों तक चला।”

हालांकि भारत की आजादी के आंदोलन के समय ही गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन भी शुरू हो गया था, लेकिन जब गोवा के राष्ट्रवादियों ने मिलकर वर्ष 1928 में मुंबई में ‘गोवा कांग्रेस समिति’ का गठन करके, इसका अध्यक्ष डॉ. टी. बी. कुन्हा को बनाया, तो गोवा की आजादी के सदियों पुराने आंदोलन को एक नयी दिशा मिली। डॉ. टी. बी. कुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। हालांकि दो दशकों तक गोवा की आजादी का यह आंदोलन तेज गति नहीं पकड़ पाया। लेकिन वर्ष 1946 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और देश के दिग्गज समाजवादी नेता डॉ.राम मनोहर लोहिया के गोवा पहुंचने से आजादी के आंदोलन को तेजी मिली, उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में एक सभा करके पुर्तगालियों को सीधे चेतावनी दे डाली थी। क्रूर पुर्तगालियों ने आजादी के इस आंदोलन का दमन करते हुए, लोहिया को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाद में भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जबरदस्त विरोध के चलते पुर्तगालियों को लोहिया को रिहा करना पड़ा था।

भारत की आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षामंत्री वी. के. कृष्ण मेनन के बार-बार आग्रह के बावजूद पुर्तगाली शासक गोवा दमन-दीव को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। अंत में भारत के पास सत्याग्रह या सैन्य ताकत के इस्तेमाल के विकल्प ही रह गये थे। वर्ष 1954 के मध्य में गोवा के राष्ट्रवादियों ने दादर और नगर हवेली की बस्तियों पर कब्जा करके वहां पर भारत समर्थक प्रशासन की स्थापना करके गोवा की आजादी की जंग को तेज करने का कार्य कर दिया था। वर्ष 1961 के नवंबर माह में गोवा के पुर्तगाली सैनिकों ने भारतीय मछुआरों पर गोलियां चलाई, जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई। इस एक घटना ने गोवा की आजादी की जंग में आग में घी डालने का कार्य किया और अंतिम परिणामस्वरूप अगले माह ही भारत में गोवा का विलय करके दुनिया का भूगोल बदलकर पुर्तगाली शासन का अंत कर दिया था।

भारत सरकार ने वर्ष 1961 में पुर्तगालियों के चंगुल से जब गोवा को आजाद कराने की ठानी, तो गोवा की आजादी की जंग का सारा किस्सा ही बदल गया। भारत के प्रधानमंत्री नेहरू एवं रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने आपातकालीन बैठक कर, 17 दिसंबर को यह फैसला लिया गया कि गोवा को आजाद कराने के लिए भारत वहां तुरंत सैन्य कार्यवाही करेगा, वह भारतीय सैनिकों को ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत भेज कर गोवा को आजाद करायेगा। इस सैन्य अभियान के दौरान भारतीय सेना के सामने पुर्तगालियों ने 36 घंटे के भीतर ही समर्पण करके घुटने टेक दिए और गोवा को छोड़ने का फैसला कर लिया। इस निर्णय के अंतर्गत ही 19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये। इस तरह से 450 वर्षों के लंबे समय के बाद गोवा पुर्तगालियों के चंगुल से आजाद होकर भारत का एक अभिन्न अंग बन गया। आज अफसोस की बात यह है कि हम गोवा की आजादी का उत्सव मनाते समय गोवा स्वतंत्रता संग्राम के 450 वर्षों तक चले लंबे संघर्ष के दौरान हुए शहीदों एवं आंदोलन में क्रूर पुर्तगालियों की जेलों में बंद होने वाले सभी गुमनाम नायकों को ना जाने क्यों याद करना भूल जाते हैं। उनकी पहचान करके उन्हें भी याद करना सरकार का धर्म है।

(लेखक पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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