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Presidential Election: वो 3 कारण जो जादुई आंकड़े के करीब एनडीए की जीत को बनाएंगे आसान?


नई दिल्ली: देश के 16वें राष्ट्रपति के लिए चुनाव आयोग ने 18 जुलाई को मतदान और 21 जुलाई को मतगणना की तारीख तय कर दी है. सत्ताधारी एनडीए हो या कांग्रेस के अलावा विपक्ष की दूसरी पार्टियां, किसी ने भी उम्मीदवार को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में उम्मीदवार कोई भी हो सवाल उठता है कि राष्ट्रपति चुनाव में मुकाबला कैसा होगा. आंकड़ों की बात करें तो NDA राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए जरूरी 5 लाख 40 हजार वोट के करीब दिखता है.

महज कुछ हजार वोट दूर है, जबकि विपक्षी गठबंधन यूपीए जीत के आंकड़े से करीब एक लाख 80 हजार वोट दूर है. एनडीए के पास मौजूदा समय में 5 लाख 32 हजार वोट है और सिर्फ 8 हजार वोटों की जरूरत है. यूपीए के पास 2 लाख 60 हजार के करीब वोट हैं. अन्य में दो पार्टियां ऐसी हैं, जिनमें से किसी एक का भी समर्थन आसानी से एनडीए के उम्मीदवार को आसानी से जीत दिला देगा और ये पार्टियां BJD और YSRCP है. YSRCP के पास 43,450 वोट हैं, जबकि बीजेडी के पास 31,686 वोट हैं.

राष्ट्रपति चुनाव के आंकड़ों के गणित में विपक्ष पर बढ़त के अलावा विपक्ष की पार्टियों के बीच कमजोर राजनीतिक केमेस्ट्री भी एनडीए के पक्ष में दिख रही है. पहला, राष्ट्रपति चुनाव में NDA आंकड़ों के लिहाज से जादुई आंकड़े के करीब है. दूसरा, NDA का मुख्य विपक्षी गठबंधन यूपीए जादुई आंकड़े से करीब 1 लाख 80 हजार वोट दूर है. तीसरा, कांग्रेस समेत विपक्ष पार्टियों के बीच एकजुटता की कमी भी एनडीए के लिए फायदेमंद हैं. TMC, TRS और AAP जैसी मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां गैर-कांग्रेसी फ्रंट पर जोर देती रही हैं. ऐसे में विपक्ष के बीच किसी साझा उम्मीदवार पर सहमति भी विपक्ष की चुनौती और एनडीए के लिए राहत देने वाली है.


संसद में बढ़ी बीजेपी की ताकत, लेकिन राज्यों में घटी!
पिछले यानी 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले संसद के दोनों सदनों में बीजेपी की ताकत और संख्या बल बढ़ा है, लेकिन राज्यों की विधानसभाओं में घटी भी है. मसलन, यूपी में बीजेपी की विधानसभा में ताकत घटी है और तकरीबन ऐसा ही हाल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी का है. हालांकि पश्चिम बंगाल की विधानसभा में बीजेपी ने अपनी ताकत जरूर बढ़ाई है.

इसके अलावा एनडीए के कुछ महत्वपूर्ण घटक दल भी पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार एनडीए के साथ नहीं हैं. जैसेकि शिवसेना और अकाली दल अब साथ में नहीं हैं, जबकि मौजूदा एनडीए का हिस्सा AIADMK तमिलनाडु विधानसभा में कमजोर हुई है. पिछले पांच साल में तमाम बदलावों के बावजूद और एनडीए के कमजोर होने के बावजूद आंकड़ों में NDA का संख्याबल पिछली बार यानी 2017 की तुलना में मजबूत ही दिखता है.

ये और बात है कि पिछली बार भी जादुई आंकड़े से एनडीए थोड़ा कम था और इस बार भी… पिछली बार एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को जादुई आंकड़े से बहुत अधिक मत प्राप्त हुआ और इसबार भी जादुई आंकड़े को बहुत आसानी से हासिल करने की तरफ एनडीए दिखता है.

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