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राजस्थान उपचुनाव : कहीं थर्ड फ्रंट का संकेत तो नहीं दे रहा मेवाड़!

-कौशल मूंदड़ा

राजस्थान के दो विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों ने राजस्थान की राजनीति को नए संकेत दे दिए हैं। राजस्थान में वैसे भी मेवाड़ यानी दक्षिणी राजस्थान राज्य की राजनीति को प्रभावित करता ही है, और इस बार भी दोनों उपचुनाव मेवाड़ में ही आने वाले वल्लभनगर और धरियावद में हुए हैं। भले ही दोनों सीटों पर कांग्रेस विजयी और भाजपा की हार हुई है, लेकिन इन दोनों के बीच के अंतर में जो नई इबारत लिखी गई है, उसने राजस्थान में थर्ड फ्रंट की उपस्थिति के संकेत दे ही दिए हैं। जनता ने इस चुनाव में राष्ट्रीय दलों से अलग क्षेत्रीय दलों पर भी भरोसा जताया है।

दोनों विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान पर एक नजर डालें तो कुल मतदान में से कांग्रेस की झोली में 37.51 प्रतिशत और भाजपा की झोली में 18.80 प्रतिशत वोट रहे, जबकि 41.84 प्रतिशत वोट निर्दलीय व जनता सेना, आरएलपी, बीटीपी जैसे अन्य क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवार ले गए। माकपा के खाते में महज 0.37 प्रतिशत वोट आए। उससे ज्यादा तो 1.28 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को पसंद किया।

इस चुनाव में पहला फैक्टर यह माना जाए कि राजस्थान में जिसकी सरकार है, उसी का विधायक हो तो विकास होगा, तब यह फैक्टर राजसमंद में हुए उपचुनाव में फिट क्यों नहीं बैठा, जबकि बयानवीरों के बयानों के तीर वहां भी कम नहीं थे। उम्मीदवारों के चयन को जरूर यहां फैक्टर माना जा सकता है, लेकिन यह फैक्टर वल्लभनगर में कांग्रेस को भी प्रभावित कर रहा था, जिसे कांग्रेस ने अपनी एकजुटता दिखाकर हल्का कर दिया। संभवतः भाजपा इस फैक्टर को संतुलित नहीं कर सकी।

इसके बावजूद मतदाताओं के मतवितरण का प्रतिशत जो संकेत दे रहा है वह बिल्कुल ही अलग है। कुल मतदान में से कांग्रेस जब 37.51 प्रतिशत ही मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकी और 41.84 प्रतिशत मतदाताओं ने दोनों बड़े दलों से अलग क्षेत्रीय दलों को पसंद किया। ऐसे में यह माना जा सकता है कि लोगों ने बड़े-बड़े राष्ट्रीय मुद्दों से अलग स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तवज्जो दी। इन उपचुनावों में जीत-हार के समीकरण में मतों का यही बंटवारा महत्वपूर्ण रहा है।

ऐसे में मेवाड़ की इन दो सीटों पर हुए चुनाव में जो मतदान प्रतिशत राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, जनता सेना और बीटीपी जैसे क्षेत्रीय दलों के खाते में गया है, इसका साफ संकेत है कि लोग अब तीसरे विकल्प की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं, या तीसरा विकल्प मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। भले ही भाजपा को नहीं और भाजपा से आरएलपी में गए बागी को पसंद किया गया, उसी तरह बीटीपी को नहीं और बीटीपी के बागी की झोली में वोट गया, लेकिन लोगों ने स्थानीय स्तर पर उन प्रत्याशियों को पसंद किया। आरएलपी ने वल्लभनगर में उम्मीदवार उतारा और वह निकटतम प्रतिद्वंद्वी साबित हुआ, यदि आरएलपी आगामी विधानसभा में सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी उम्मीदवारी करती है, तो मतों का वितरण प्रभावित होने से इनकार नहीं किया जा सकता। राजस्थान में अब तक वृहद रूप में चल रही द्विदलीय व्यवस्था का स्वरूप परिवर्तित हो सकता है।

जो भी, इस उपचुनाव में मेवाड़ की इन दोनों सीटों से नई इबारत गढ़ी गई है। राष्ट्रीय दलों को सीधा संकेत है कि राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, आपनी खींचतान, नीचे तक हर उस नागरिक की परेशानी के बारे में सोचना होगा। वर्ना, मतदाता ने अभी सिर्फ संकेत ही दिया है, यदि आम आदमी की जरूरतों को नहीं समझा गया तो आने वाली विधानसभा के गठन में थर्ड फ्रंट की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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