नई दिल्ली। सरकारी बैंकों(public sector banks) के बड़े पैमाने पर निजीकरण पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक लेख में सवाल खड़े किए गए हैं। लेख में कहा है कि निजीकरण (privatization) की वजह से फायदे से अधिक नुकसान की आशंका है। इसके साथ सरकार (government) को इस मामले में ध्यान से आगे बढ़ने की भी सलाह दी गई है। हालांकि, रिजर्व बैंक ने कहा कि लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और ये आरबीआई के विचार नहीं हैं।
लेख में कहा गया, ‘‘निजीकरण कोई नई अवधारणा नहीं है और इसके फायदे और नुकसान सबको पता है। पारंपरिक दृष्टि से सभी दिक्कतों के लिए निजीकरण प्रमुख समाधान है जबकि आर्थिक सोच ने पाया है कि इसे आगे बढ़ाने के लिए सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है।’’
लेख में कहा गया है कि सरकार की तरफ से निजीकरण की ओर धीरे-धीरे बढ़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि शून्य की स्थिति नहीं बने। बता दें कि सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया था। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटकर 12 रह गई है, जो 2017 में 27 थी।
महंगाई पर क्या है लेख में:
आरबीआई के लेख में कहा गया है कि देश में महंगाई लगातार उच्चस्तर पर बनी हुई है और आने वाले समय में इसे काबू में लाने के लिये उपयुक्त नीतिगत कदम की जरूरत है। बता दें कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में नरम होकर 6.71 प्रतिशत रही है। मुख्य रूप से खाने का सामान सस्ता होने से महंगाई घटी है।
रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति (inflation) को नियंत्रित करने के लिये नीतिगत दर यानी रेपो में लगातार तीन मौद्रिक नीति समीक्षा में 1.40 प्रतिशत की वृद्धि की है। महंगाई दर लगातार सात महीने से केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है।
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