निगम के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है पार्क… 7 एकड़ पर एम्युजमेंट पार्क भी ठेकेदार फर्म करेगी विकसित
इंदौर। नगर निगम ने जिस तरह मेघदूत गार्डन का कबाड़ा किया, उसी तरह पिपल्यापाला स्थित रीजनल पार्क को भी चौपट कर डाला है। इतने वर्षों से निगम रीजनल पार्क को ना तो खुद ठीक तरीके से चला पाया और ना ही ठेके पर दिया जा सका। कोरोना के चलते रीजनल पार्क और भी उजाड़ हो गया। वहीं अब निगम पिछले दिनों आए तीनों टेंडरों पर विचार करेगा। लगभग 27 साल के ठेके पर रीजनल पार्क को लेेने का प्रस्ताव निजी फर्मों ने सौंपा है। वहीं 7 एकड़ जमीन को एम्युजमेंट पार्क के लिए खाली पड़ी है उसे भी विकसित किया जाएगा, जिस पर 30 करोड़ का खर्चा होना बताया गया।
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी मॉडल पर रीजनल पार्क का नवीनीकरण और एम्युजमेंट पार्क को विकसित किए जाने के लिए निगम ने जो टेंडर बुलवाए थे उनका परीक्षण करने के लिए निगमायुक्त प्रतिभा पाल ने एक कमेटी का गठन किया है, जिसमें अपर आयुक्त वित्त वीरभद्र शर्मा, अभय राजनगांवकर, अधीक्षण यंत्री जनकार्य अशोक राठौर, लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री और प्राधिकरण के अनिल जोशी को इस कमेटी में शामिल किया है। यह कमेटी प्राप्त टेंडरों का परीक्षण कर आवश्यक कार्रवाई पूर्ण करवाने के पश्चात प्रस्तावित अनुबंध सहित जानकारी प्रस्तुत करेगी। दरअसल कुछ महीने पूर्व निगम ने रीजनल पार्क को ठेके पर देने की प्रक्रिया शुरू की थी और तीन फर्मों ने इसमें रुचि दिखाई। मगर कोरोना और लॉकडाउन के चलते इन टेंडरों पर निर्णय नहीं हो पाया। उल्लेखनीय है कि 50 करोड़ रुपए की राशि इंदौर विकास प्राधिकरण ने रीजनल पार्क पर खर्च की और इसे इंदौर ही नहीं, बल्कि प्रदेश का सबसे खूबसूरत पार्क बनाया और यहां का फूड कोड भी कबाड़ हो गया। रीजनल पार्क के प्रभारी अधिकारी देवानंद पाटील के मुताबिक अभी सालाना खर्चा लगभग ढाई से तीन करोड़ रुपए होता है और आय सवा डेढ़ करोड़ तक ही है।
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