इंदौर न्यूज़ (Indore News)

सहारा योजना : जिसका कोई नहीं उसका खैरख्वाह है इंदौर का एमवाय हास्पिटल

2 हजार बेसहारा-लावारिस मरीजों का इलाज

इलाज ही नहीं, बल्कि 600 लावारिस मरीजों का घर ढूंढकर किया परिवार के हवाले
अब तक 2000 से ज्यादा बेसहारा मरीजों का इलाज कर चुका है सहारा वार्ड

इंदौर, प्रदीप मिश्रा। लावारिस (Unclaimed), बेसहारा मरीजों (Patients) का इलाज (Treatment) करने और फिर इन अज्ञात मरीजों के घरों का पता तलाशकर उन्हें परिजनों तक पहुंचाने के लिए इंदौर के एमवाय हॉस्पिटल (MY Hospital) ने सहारा वार्ड (Sahara Ward) बनाकर शहर, प्रदेश सहित सारे देश में एक अलग ही पहचान बना ली है। यह सहारा वार्ड देश का एक ऐसा इकलौता वार्ड है, जो पिछले सात सालों में 2000 अज्ञात मरीजों का इलाज करने और इनमें से अब तक 600 बेसहारा मरीजों को स्वस्थ होने के बाद उनके परिजनों को तलाशकर उनके घर पहुंचा चुका है। जिन मरीजों को स्वस्थ होने के बाद वापस उनके परिजनों के हवाले किया गया, उनमें नेपाल, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, कोलकाता, तमिलनाडु , राजस्थान, उत्तरप्रदेश के अलावा मध्यप्रदेश के रतलाम, देवास, उज्जैन के मरीज शामिल थे।


गंभीर रूप से बीमार पडऩे, दुर्घटना में घायल या अपंग हो जाने पर जिन मरीजों की उनके घर-परिवार सहित खून के रिश्तों और संबंधियों ने खबर तक नहीं ली, ऐसे बेसहारा मरीजों को एमवाय हॉस्पिटल सहारा वार्ड में भर्ती करके न सिर्फ उनका सारा इलाज किया, बल्कि उनके सगे, परिजनों से ज्यादा उनके दूध, चाय-नाश्ते से लेकर दोनों समय भोजन करवाने जिम्मेदारी भी निभाने में कोई संकोच नहीं किया । इतना ही नहीं, उन बेसहारों को अपनों की कमी महसूस न हो, इसके लिए उनके साथ परिजनों की तरह हर त्योहार भी मनाते हैं।

23 बेसहारों का इलाज जारी
देश-दुनिया में सबसे अलग, सबसे जुदा एमवाय हॉस्पिटल का यह अनोखा और अनूठा सहारा वार्ड गंभीर रूप से बीमार, बेसहारा और दिव्यांग मरीजों के लिए एक परिवार की तरह ही नहीं, बल्कि परिवार-रिश्तेदारों और समाज से बढक़र है। सात सालों से मरीजों की देखभाल में रात-दिन जुटी नर्सिंग ऑफिसर सीमा सिंह ने बताया कि एमवाय हॉस्पिटल में सहारा वार्ड की स्थापना सात साल पहले तत्कालीन एमवायएच अधीक्षक वीएस पाल और नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट मार्गेट जोजेफ ने की थी। इसकी शुरुआत 6 बेड से हुई थी, आज यहां पर 30 से ज्यादा बेड हैं। तब से अब तक लगभग 2000 लावारिस अज्ञात मरीजों का इलाज किया जा चुका है। वर्तमान में यहां लगभग 23 बेसहारा मरीजों का इलाज जारी है। यहां अभी 17 पुरुष और 6 महिला मरीज भर्ती हैं। सभी मरीज 50 साल से ऊपर के हंै। हमारे लिए यह मरीज परिजन की तरह हैं और मरीजों के लिए हम, हमारी टीम ही परिवार हैं। सारी टीम इन मरीजों की मदर टेरेसा की तरह देखभाल करती है।


मरीजों के घर का पता ढूंढने के लिए टीम वर्क
जब मरीज बिलकुल स्वस्थ हो जाता है तो इसके बाद उसके परिजनों और घर का पता लगाने के लिए टीम वर्क शुरू होता है। इस टीम में एंबुलेंस चालक जो उन्हें लेकर आते हैं, पुलिस प्रशासन , इंदौर सहित बाहर की अन्य सामाजिक संस्थाएं,ऑटो रिक्शा चालक और मीडियाकर्मी शामिल हैं। यह पूरी टीम आपस में समन्वय बनाकर अज्ञात मरीज से मिली जानकारी एक-दूसरे से शेयर करते हुए कड़ी से कड़ी मिलाकर उसके फोटो के जरिए मरीज के परिजनों की जानकारी और घर का पता मालूम कर उन्हें वापस घर भेज देते हैं।
घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी निभा रहे
पिछले सात सालों में अब तक 2 हजार से ज्यादा घायल अथवा गंभीर रूप से बीमार, बेसहारा मरीज इस सहारा वार्ड में आ चुके हैं। इन्हीं में से 600 से ज्यादा मरीजों का इलाज करने बाद उनका पता ढूंढकर उन्हें वापस अपने घर भेजा जा चुका है । यानी इलाज करने के अलावा स्वस्थ होने पर सहारा वार्ड उन्हें वापस घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उठा रहा है। अभी तक जिन्हें वापस घर पहुंचाया गया वह मरीज नेपाल, पश्चिम बंगाल, कोलकाता, तमिलनाडु, राजस्थान, उत्तरप्रदेश के अलावा मध्यप्रदेश के रतलाम, देवास, उज्जैन के आसपास के निवासी निकले। इन मरीजों के इलाज के बाद सोचने-समझने की चेतना लौट आने पर आत्मीयता से उनसे बार-बार काउंसलिंग यानी पूछताछ की गई। इसके बाद मिली आधीअधूरी जानकारी की कडिय़ों को आपस में जोडक़र खोजबीन करते हुए इन्हें पुलिस और सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से इनके शहर, गांव अथवा घर का पता लगाकर परिजनों तक पहुंचाया गया।

 

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