आचंलिक

दो साल से नहीं मिली स्कूल ड्रेस, एक लाख बच्चें बिना गणवेश के पहुंच रहे स्कूल

  • दो साल पहले स्व सहायता समूह ने निम्र गुणवत्ता की दी थी ड्रेस

सीहोर। शासन स्तर पर सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों के बौद्धिक विकास और उनके उन्नयन के लिये कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसके इतर सरकारी स्कूलो में बच्चों के स्तर में सुधार के लिये यह प्रयास किए जाते हैं। यह प्रयास जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देते हैं। अभी आलम यह है कि सरकारी स्कूलो में करीब ढाई माह बीतने के बाद भी प्रायमरी और मिडिल स्कूलो के बच्चों को गणवेश वितरित नहीं की गई है। यह गणवेश पिछले साल भी नहीं दी गई थी। इससे बच्चें बिना गणवेश के स्कूल पहुंच रहे हैं।
जिले में कक्षा 1 से 8 तक के करीब एक लाख से अधिक बच्चें पढ़ाई करने स्कूल जाते हैं। बच्चों को बिना गणवेश के स्कूल जाने में उनके अंदर समानता और एकता की भावना धूमिल होती दिखाई दे रही है, जबकि प्रायवेट स्कूलो में बच्चें स्कूल की एक सी ड्रेस पहनकर जाते हैं। ऐसे में सरकारी स्कूल के बच्चों के अंदर बिना ड्रेस के स्कूल जाने में हीनता का भाव भी आ रहा है। ऐसे में स्कूल पहुंचने वाले बच्चें पढ़ाई में भी रूचि नहीं दिखा पाते हैं। इसका असर परिणामो पर भी दिखाई देता है। बता दें कि दो साल पहले मध्यप्रदेश शासन ने सरकारी स्कूलो के बच्चों की गणवेश बनाने की जि मेदारी स्वसहायता समूहो को दी थी। इन स्व सहायता समूहो के द्वारा गणवेश भी तैयार की गई थी। यह गणवेश बच्चों को फिट नहीं बैठ पाई थी। वहीं कुछ बच्चों को छोटी हो गई थी। इसके साथ ही स्व सहायता समूह द्वारा तैयार की गई ड्रेस का कपड़ा निम्र क्वालिटी का होने के कारण यह जल्द ही फट गया। ऐसे में पुरानी ड्रेस भी बच्चों के काम नहीं आ पा रही है। इसके अलावा जिन बच्चों के पास यह निम्र क्वालिटी वाली ड्रेस बची भी है तो यह छोटी हो गई है। ऐसे में बच्चें बिना गणवेश के ही स्कूल पहुंच रहे हैं, लेकिन अभी तक शासन स्तर और जिला स्तर पर बच्चों की स्कूल ड्रेस वितरण को लेकर कोई पहल या कार्यवाही शुरू नहीं की गई है।



सरकारी स्कूलो में हुआ बच्चों का रूझान कम
पिछले दो साल कोरोना संक्रमण काल के कारण सरकारी विद्यालयो में अधिकतर समय ताला ही लटका रहा। वहीं विद्यार्थियों की कक्षाएं भी नियमित नहीं लग पाई थी। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रो में सरकारी स्कूलो में पढऩे वाले बच्चों को सबसे ज्यादा इस संक्रमण काल से पढ़ाई में नुकसान हुआ है। अब हालत यह है कि मीडिल स्कूल के बच्चें स्कूलो में नियमित नहीं पहुंच पा रहे हैं। इतना ही नहीं स्कूलो में नियमित उपस्थित नहीं रहने के कारण उनकी पढ़ाई में भी रूचि कम रह गई है। इसका नतीजा स्कूलो में अब बच्चों की उपस्थिति सामान्य से कम होने लगी है। इस संबंध में ग्रामीण क्षेत्रो के अलग अलग स्कूलो के बच्चों से जब बात की तो उनका कहना है कि इस साल ड्रेस नहीं मिलने के कारण हमें स्कूल जाने में अच्छा नहीं लगता है। जबकि हमारे गांव के प्रायवेट स्कूल में जाने वाले बच्चें स्कूल में ड्रेस पहनकर जाते हैं। बिना ड्रेस के स्कूल जाने में अच्छा नहीं लगने के साथ ही पढ़ाई में भी मन नहीं लगता है।

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