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स्‍टडी में खुलासा, एक बैक्टीरिया की वजह से इंसानों को मिली देखने की ताकत

नई दिल्‍ली (New Delhi) । मैं देख रहा हूं. आप देख रहे हैं. सभी जंतु देख रहे हैं. सबके पास आंखें हैं लेकिन कभी सोचा है कि इन आंखों (eyes) में दृष्टि कहां से आई. आंखें इतनी जटिल होती हैं, कि इसे चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) भी सही से डिफाइन नहीं कर पाए थे. लेकिन अब पता चला है कि वर्टिब्रेट जीवों की आंखों का विकास कैसे हुआ.

हमें हमारी दृष्टि एक बैक्टीरिया से मिली है. जिसकी वजह से हमारे शरीर में वह जीन आया, जिसने रेटिना को रोशनी प्रति एक्टिव बनाया. यह स्टडी हाल ही में प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुई है. जिसमें सिडनी यूनिवर्सिटी के रेटिनल बायोलॉजिस्ट लिंग झू ने अपनी रिपोर्ट दी है.

लिंग झू कहते हैं कि हड्डियों वाले जीव यानी वर्टिब्रेट्स की आंखों का विकास बहुत ही जटिल तरीके से हुआ है. इसमें कई तरह के जीन्स का मिश्रण है. असल में बैक्टीरिया बहुत जल्दी-जल्दी जीन्स को बदलते हैं. वो नए जीन्स को अपनी ओर खींचते हैं. वायरस से भी जीन्स खींच लेते हैं. डीएनए के इन छोटे टुकड़ों को ट्रांसपोसोन कहते हैं.


ट्रांसपोसोन को आप खुले में तैर रहे डीएनए भी कह सकते हैं. जब 2001 इंसानों का जीनोम सिक्वेंसिंग पहली बार किया गया. तब पता चला कि इंसान के शरीर में बैक्टीरिया से आए 200 जीन्स हैं. ये बैक्टीरिया अलग-अलग जगहों से उत्पन्न हुए थे. सैनडिएगो की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में बायोकेमिस्ट मैथ्यू डॉहर्टी और उनकी टीम ने कई और प्रजातियों के जीवों की जीनोम सिक्वेंसिंग की स्टडी की.

मैथ्यू ने बताया कि ये जीन्स पहले हड्डियों वाली जीवों में आए. फिर वो विकसित होते चले गए. अलग-अलग प्रजातियों में ट्रांसफर होते गए. इस जीन को IRBP कहते हैं. यानी इंटरफोटोरिसेप्टर रेटिनॉयड-बाइंडिंग प्रोटीन. यह जीन हमें देखने की ताकत देता है. इसकी वजह से हमारी आंखें रोशनी के साथ सामंजस्य बैठाती हैं.

इस जीन को ताकत मिलती है विटामिन A से. जीन इलेक्ट्रिकल पल्स पैदा करती है, जिसकी वजह से ऑप्टिक नर्व काम करती है. इस जीन को इंसानों में आने में 50 करोड़ साल लग गए. बात सिर्फ इंसानों की नहीं है, पूरी दुनिया में जो जीव देख सकते हैं, उनके अंदर इस जीन का कोई न कोई रूप मौजूद है.

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