मंत्री के घर फायरिंग का सच
प्रदेश के नगरीय विकास राज्य मंत्री ओपीएस भदौरिया के घर फायरिंग होना कोई मामूली घटना नहीं है, लेकिन भिंड जिला प्रशासन ने इसे सामान्य ढंग से निपटा लिया है। मंत्री और उनके समर्थकों ने भी इस घटना को ज्यादा तूल नहीं दिया है। दरअसल फायरिंग करने वाला मंत्री जी का ही चमचा निकला। वह मंत्री से क्यों नाराज हुआ? इसकी पड़ताल की जा रही है। फायरिंग करने वाले भूरे यादव की छवि हिस्ट्रीशिटर की है। पिछले विधानसभा उपचुनाव में भिंड जिला प्रशासन इसका जिला बदर कर रहा था। लेकिन भूरे ने मंत्री के पैर पकड़ लिए तो मंत्री ने जिला बदर रुकवा दिया। भूरे पूरी ताकत से इस उम्मीद से चुनाव प्रचार में लग गया कि चुनाव जीतते ही रेत के अवैध काम में लग जाएगा। लेकिन चुनाव के बाद मंत्री ने उसे लिफ्ट नहीं दी। इसी टेंशन में दारू पीकर भूरे ने मंत्री के घर के बाहर ही ताबड़तोड़ फायरिंग कर डाली।
मुख्य सचिव से मांगी थी रिश्वत!
यदि यह खबर सही है तो यह मध्यप्रदेश में ही संभव है। एक आईपीएस अधिकारी के बारे में चर्चा है कि उन्होंने मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी से ही रिश्वत मांग ली थी। कमलनाथ सरकार में एक आईपीएस को एक जांच एजेंसी का मुखिया बनाने का प्रस्ताव तैयार हुआ। तब तत्कालीन मुख्य सचिव ने यह कहकर पोस्टिंग रुकवा दी कि आईपीएस ने उनसे ही रिश्वत मांग ली थी। अब सरकार बदल गई है। शिवराज सरकार ने इस आईपीएस को उसी स्थान पर पोस्ट कर दिया है। साथ में संकेत भी दे दिए हैं कि अब भूतपूर्व हो चुके मुख्य सचिव के खिलाफ कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हैं। अब अफसरशाही की नजर इस बात पर अड़ी है कि अभूतपूर्व आईपीएस इस भूतपूर्व आईएएस के खिलाफ क्या कार्रवाई करते हैं?
बदलाव का दौर बेटों की चिंता
मप्र में भाजपा जबर्दस्त बदलाव के दौर से गुजर रही है। पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन का दौर चल रहा है। ऐसे में 60 पार नेताओं को अपने बेटों के भविष्य की चिंता सताने लगी है। एक दर्जन से अधिक भाजपा नेता अपने बेटों की राजनीतिक लांचिंग की मुहिम में लगे हुए हैं। नेताओं के बंगलों पर नेताओं से बड़े फोटो उनके बेटों के दिखाई देने लगे हैं। अब राजनीतिक कार्यक्रमों में भी नेता अपने बेटों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। कुछ नेताओं के बेटे लाव-लश्कर के साथ दौरे भी कर रहे हैं। अधिकांश नेता जानते हैं कि बेटों की लांचिंग के लिए सिर्फ मैदान में नहीं संघ और भाजपा परिवार का भी भरोसा जीतना जरूरी है। दमोह में जयंत मलैया इस बार बेटे को टिकट दिलाने पूरी ताकत लगाए हुए हैं।
ईओडब्ल्यू या सीएम का थाना
प्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने मप्र की जांच एजेंसी आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को मुख्यमंत्री के थाने के रूप में भी पहचान दिला दी थी। इस संस्था में अब अपराध देखकर नहीं शकल देखकर कार्रवाई होती है। कमलनाथ सरकार के समय इस संस्था का उपयोग भाजपा के दो-चार नेताओं को फंसाने और ई-टेडरिंग में फंसी कम्पनियों से कथित वसूली के लिए किया था। सरकार बदलने के बाद भी इस संस्था की छवि नहीं बदली है। पिछले ढाई साल में इस संस्था के पांच मुखिया बदल चुके हैं। लेकिन संस्था के खाते में कोई बड़ी उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है। जिस आधार पर कहा जा सके कि इस संस्था ने प्रदेश में भ्रष्टाचार रोकने में बड़ी भूमिका निभाई हो।
राज्यपाल की दौड़ में उमा-प्रभात
देश के कई राजभवन कामचलाऊ राज्यपालों के भरोसे हैं। केन्द्र सरकार जल्द ही राज्यपालों की नियुक्ति करने जा रही है। खबर है कि मप्र से भाजपा के दो बड़े नेता राज्यपाल की दौड़ में शामिल हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का नाम इस दौड़ में शामिल बताया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि फिलहाल दोनों के पास सत्ता या संगठन की कोई जिम्मेदारी नहीं है। दोनों समय समय पर पार्टी के लिए फायदेमंद रहे हैं। फिलहाल दोनों नेता आजकल ट्वीटर पर जबर्दस्त सक्रिय हो गए हैं। प्रभात झा ट्वीटर पर आध्यात्मिक ज्ञान दे रहे हैं तो उमा भारती प्रदेश में शराबबंदी को लेकर सक्रिय नजर आ रही है। दोनों राजनीति बियाबान में हैं। देखना है इनमें से कौन राजभवन पहुंचेगा और कौन कोपभवन?
चर्चा में चावला की चीठी
मप्र में पिछले 40 साल से संघ और भाजपा में बुद्धिजीवी के रूप में पहचान बनाने वाले अनिल चावला की एक चीठी आजकल सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है। चावला ने यह चीठी संघ प्रमुख मोहन भागवत को लिखी है। चीठी में नोटबंदी से लेकर देशबंदी तक और जीएसटी से लेकर किसान आंदोलन तक की घटनाओं का विस्तार से ब्यौरा देते हुए कहा गया है कि इन सभी घटनाओं में नुकसान आखिर उन हिंदुओं का हो रहा है जिनके हित के लिए संघ और भाजपा का जन्म हुआ है। चावला की चीठी पर बेशक सार्वजनिक बहस नहीं हो रही लेकिन संघ और भाजपा के बीच यह चीठी चर्चा का विषय जरूर बन गई है। भाजपा के तमाम नेता चीठी को पढ़कर कह रहे हैं कि असल में असली मन की बात तो यही है। दूसरी ओर भाजपा की तेजतर्रार वार्ताकार तपन तोमर ने चावला को जवाबी पत्र लिख डाला है।
और अंत में….
कहावत है कि इंदौरियों की दोस्ती और दुश्मनी के बीच कभी नहीं आना चाहिए। इनकी दोस्ती कब दुश्मनी में बदलती है और कब दुश्मनी, कट्टर दोस्ती में बदल जाती है कह नहीं सकते। ताजा उदाहरण है प्रवीण कक्कड़ और केके मिश्रा की दोस्ती का। कांग्रेस में एक समय प्रवीण कक्कड़ ने केके मिश्रा को पार्टी से बाहर निकलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब दोनों के बीच इतनी पक्की दोस्ती है कि दोनों एक दूसरे के लिए जान देने को तैयार हैं। प्रवीण कक्कड़ ने कमलनाथ के संबंधों का फायदा उठाकर आखिर केके मिश्रा की प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में शानदार और जानदार वापिसी करा दी है।