एफआईआर को लेकर संशय
मप्र के 3 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ काला धन के मामले में एफआईआर को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। हालांकि दिल्ली में मुख्य सचिव ने 2 सप्ताह में कार्रवाई का भरोसा दिलाया था। बताया जाता है कि ईओडब्ल्यू के जांच अधिकारी अभी तक मिले प्रमाणों को एफआईआर के लिए पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। इसके अलावा दिल्ली से केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की जो रिपोर्ट आई है उसमें मूल दस्तावेज नहीं है। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकार केन्द्रीय चुनाव आयोग से एफआईआर के लिए पर्याप्त प्रमाण और आयकर छापे से संबंधित मूल दस्तावेज मंगा सकती है। यदि ऐसा होता है तो फिलहाल एफआईआर होगी या नहीं इस पर संशय बना हुआ है। वैसे बता दें कि यदि एफआईआर हुई तो देश के इतिहास में पहली बार एक मामले में एक ही कैडर के 3 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों और एफआईआर का यह पहला मामला होगा।
सिंधिया होंगे मंत्री
मप्र की राजनीति में सिंधिया कैम्प को खुशी मनाने का मौका मिलने वाला है। चर्चा है कि इसी सप्ताह ज्योतिरादित्य सिंधिया केन्द्र में कैबिनेट मंत्री बनाए जा सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बजट सत्र से पहले उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल कर सकते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए लगभग एक साल पूरा होने को है। चर्चा है कि पार्टी बदल की शर्तों में सिंधिया को केन्द्र में मंत्री बनाना भी शामिल था। सिंधिया ने इसके लिए लंबी प्रतीक्षा की है। अब दिल्ली में भाजपा नेता भी उनके धैर्य और संयम की प्रशंसा करने लगे हैं।
मंत्री का बेटा बनेगा हीरो?
अभी तक की राजनीति को देखा जाए तो अधिकांश मंत्री अपने पुत्रों को राजनीति में सक्रिय देखना चाहते हैं। बुन्देलखंड के एक ताकतवर मंत्री के बेटे ने फिल्मी दुनिया का रूख किया है। कुछ सीरियलों में काम करने के बाद अब मंत्रीजी के बेटे की इच्छा है कि वह छत्तीसगढ़ी व भोजपुरी फिल्मों के तर्ज पर बुन्देलखंडी फिल्मों के निर्माण को प्रोत्साहित करें। बॉलीवुड की तरह बुन्देलखंड में बुन्देलीवुड भी आकार ले। मंत्रीजी के बेटे ने अपने सपने को पूरा करने पिछले दिनों बॉलीवुड के कुछ निर्देशकों को सागर बुलाया था। खास बात यह है कि मंत्रीजी के बेटे का व्यवहार बेहद सहज और सरल और उसके सपने बुन्देलखंड को नई पहचान दिला सकते हैं। यह तो तय है कि यदि सपना पूरा हुआ तो मंत्रीजी का बेटा बुन्देली फिल्मों का हीरो हो सकता है।
भाजपा का मिशन छिंदवाड़ा
भाजपा ने एक बार फिर मिशन छिंदवाड़ा पर काम शुरू कर दिया है। छिंदवाड़ा में लंबे समय से कांग्रेस के कमलनाथ का एक छात्र राज रहा है। कमलनाथ को कमजोर करने भाजपा तीन दशक से प्रयास कर रही है, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब भाजपा ने इस बार मिशन छिंदवाड़ा पर पूरी ताकत झोंकने का मन बना लिया है। पूर्व विधायक अजय चौरे को कमलनाथ से तोड़कर भाजपा में लाया गया है। बताते हैं कि भाजपा अब दीपक सक्सेना की कमलनाथ से नाराजगी को भुनाने की फिराक में है। कमलनाथ को भी भाजपा के मिशन छिंदवाड़ा की भनक लग गई है। यही कारण है कि उन्होंने दिल्ली भोपाल का मोह त्यागकर एक बार फिर छिंदवाड़ा पर फोकस कर दिया है।
राहुल की राह कठिन
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायक राहुल लोधी की आगे की राह आसान नजर नहीं आ रही। विधायक पद से त्यागपत्र देने के लगभग तीन माह बाद अपने विधानसभा क्षेत्र दमोह पहुंचे राहुल लोधी का जिस तरह तीखा विरोध हुआ। उनके चेहरे पर कालिख फेंकी गई, उन्हें चप्पल की माला पहनाने का प्रयास हुआ, उससे लग रहा है कि इस विरोध के पीछे कांग्रेस की कम, भाजपा नेताओं की अहम भूमिका रही है। दरअसल सारा झगड़ा उप चुनाव में भाजपा के टिकट का है। पूर्व मंत्री जयंत मलैया व उनके बेटे सिध्दार्थ मलैया भी यहां से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।कांग्रेस और भाजपा दोनों में राहुल के विरोध को देखते हुए उनकी आगे की राह कठिन नजर आने लगी है।
दिग्विजय जरूरी है
कमलनाथ को अब समझ में आने लगा है कि मप्र में खासकर ग्वालियर चंबल संभाग में राजनीति करना है तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को साथ लेना जरूरी है। यही कारण है कि विधानसभा उपचुनाव के बाद पहली बार मुरैना जा रहे कमलनाथ अपने साथ दिग्विजय सिंह को ले जा रहे हैं। उपचुनाव के समय कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को पूरी तरह दूर कर दिया था। तब कहा गया था कि दिग्विजय सिंह के बयानों से कांग्रेस के वोट कटते हैं।
मंत्री से दूरी बनाते अफसर
मप्र में एक मंत्री के अजीब व्यवहार का असर है कि कोई भी अधिकारी उनकी बैठक में जाना पसंद नहीं करता। पहले एक अधिकारी ने मंत्री से दो टूक बोल दिया कि जो काम हो लिखकर भेज दो। मंत्री ने इस अधिकारी का तबादला करा दिया। आजकल मंत्री के प्रमुख सचिव ने भी उनसे दूरी बना ली है। जिस दिन मंत्री की बैठक होती है, प्रमुख सचिव का सीएल का आवेदन दफ्तर पहुंच जाता है।
और अंत में…
मप्र की राजनीति पचास बनाम चौहत्तर हो गई है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की उम्र पचास है, जबकि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने चौहत्तर बसंत देख लिये हैं। चर्चा है कि संगठन महामंत्री सुहास भगत के प्रयास से भाजपा में बड़ी आसानी से पीढ़ी परिवर्तन हो गया, लेकिन कांग्रेस में बूढ़े नेता इस प्रक्रिया के लिये न तो तैयार हैं और न ही प्रयासरत। आप कह सकते हैं कि मप्र में भाजपा, कांग्रेस की अपेक्षा 24 साल आगे की सोच के साथ राजनीति कर रही है।