रफ़्ता रफ़्ता सब तस्वीरें धुँदली होने लगती हैं, कितने चेहरे एक पुराने एल्बम में मर जाते हैं। फोटो जर्नलिस्ट संजीव गुप्ता किसी तार्रुफ़ (परिचय) के मोहताज नहीं। इंन्ने प्रेस फोटोग्राफी में वक्त नहीं पूरा का पूरा दौर जिया है। चालीस बरस…जी चालीस बरस जितना तवील वक्फा (लंबा समय) संजीव ने प्रेस फोटोग्राफी में बिता दिया। […]