ब्‍लॉगर

समावेशी लोकतंत्र को अस्वीकार करने का सामंती प्रलाप

– डॉ. अजय खेमरिया संवैधानिक संस्थाएं और लोकतंत्र 2014 से पहले खतरे में क्यों नहीं थे? अचानक ऐसा क्या हुआ है कि देशभर में एक वर्ग ऐसा वातावरण बनाने में जुटा है मानो भारत में तानाशाही आ गयी। दुहाई लोकतंत्र की दी जा रही है लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया या संवैधानिक प्रावधानों पर खुद इस तबके […]