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समग्र विचार और लोकमंगल का अमृतफल

– हृदयनारायण दीक्षित भारत विशिष्ट जीवनशैली वाला राष्ट्र है। इसका मूल आधार संस्कृति है। इस संस्कृति का विकास अनुभूत दर्शन के आधार पर हुआ है। यहां सांस्कृतिक निरंतरता है। दर्शन और विज्ञान की उपलब्धियां संस्कृति में जुड़ती जाती हैं। संस्कृति को समृद्ध करती हैं और कालवाह्य विषय छूटते जाते हैं। संस्कृति का मूल स्रोत वैदिक […]

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भारतीय दर्शन का उद्देश्य लोकमंगल

– ह्रदय नारायण दीक्षित भारतीय दर्शन का उद्देश्य लोकमंगल है। कुछ विद्वान भारतीय चिंतन पर भाववादी होने का आरोप लगाते हैं। वे ऋग्वेद में वर्णित कृषि व्यवस्था पर ध्यान नहीं देते। अन्न का सम्मानजनक उल्लेख ऋग्वेद में है, अथर्ववेद में है। उपनिषद् दर्शन ग्रन्थ हैं। उपनिषदों में अन्न की महिमा है। तैत्तिरीय उपनिषद् में कहते […]

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प्रेरक है नेताजी का इतिहास बोध

– हृदयनारायण दीक्षित भारतीय इतिहास दृष्टि में लोकमंगल का लक्ष्य है और समग्रता का दृष्टिकोण है। इतिहासबोध राष्ट्रभाव की आत्मा है। स्वाधीनता संग्राम के सभी शिखर पुरूष वास्तविक इतिहासबोध से लैस थे। गांधी जी का इतिहास बोध अप्रतिम था। इस इतिहास बोध में सच्चा राष्ट्रबोध है। स्वसंस्कृति और स्वराष्ट्र के प्रति सत्याग्रही आदरभाव है। सो […]

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हमारा अध्यात्म लोकमंगल का उपकरण व यथार्थवादी

– हृदयनारायण दीक्षित संसार प्रत्यक्ष है। इसी संसार में जीवन है। यह असार नहीं। संसार के कुछ अंश अल्पकालिक रूप में होते हैं। उनका उदय होता है, अस्त भी होता है। यह प्रकृति की स्वाभाविक कार्यवाही है। अल्पकालीन होने के कारण उन्हें असार नहीं कहा जा सकता। संसार का एक भाग शाश्वत है। हम उसे […]

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एजेंडा सेटिंग नहीं, लोकमंगल है मीडिया का धर्म

प्रो.संजय द्विवेदी शानदार जनधर्मी अतीत और उसके पारंपरिक मूल्यों ने मीडिया को समाज में जो आदर दिलाया है, वह विलक्षण है। हिंदी पत्रकारिता की नींव में ही संस्कारों का पाठ है और गहरा मूल्यबोध उसकी चेतना में रचा-बसा है। 30 मई,1826 को कोलकाता से जब पं. युगुल किशोर शुक्ल ने उदंत मार्तंण्ड का प्रकाशन प्रारंभ […]

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आदर्श राजनीति का विकास

– हृदयनारायण दीक्षित राजनीति लोकमंगल का अनुष्ठान रही है। प्राचीन भारत में समाज को आनंद-मगन बनाने के उपाय सभी स्तर पर किए जाते थे। मनुष्य इस विश्व का भाग है। विश्व का भाग होने के कारण मनुष्य और प्रकृति के मध्य आत्मीय संबन्ध हैं, लेकिन अंतर्विरोध भी है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज का […]