अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। एक सौ तीन दशमलव पांच मेगाहट्जऱ् पर विविध भारती के भोपाल केंद्र से मैं आपका ‘ध्वनि मित्रÓ अनिल मुंशी बोल रहा हूं… ये आवाज़ अब आपको भोपाल आकाशवाणी पे कभी सुनाई नहीं देगी। पिछली रात अनिल मुंशी […]