खरी-खरी

सच कहते हैं…पर सपने में रहते हैं

मोदीजी…जो आपका कहना है… वो लगता केवल सपना है… आप कहते हैं भारत 25 साल बाद विकसित राष्ट्र बन जाएगा और विकसित भारत से भ्रष्टाचार, जातिवाद और संप्रदायवाद मिट जाएगा… लेकिन हकीकत तो यह है कि यह देश विकास की इस शर्त को कभी पूरा नहीं कर पाएगा, क्योंकि इस देश की रग-रग में भ्रष्टाचार समाया हुआ है… जातिवाद का नशा हमें सोते-जागते पिलाया गया है और सांप्रदायिकता के साथ जीना-मरना सिखाया गया है…हमारे नेता, हमारा शासन-प्रशासन केवल भ्रष्टाचार की गाड़ी से आगे बढ़ता है…हमारा नेता पैसे लेकर बिक जाता है…सरकारें गिराता और बनाता है…हमारे देश का हर आदमी अब भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मानता है… हम सांप्रदायिकता पर दिन-रात बहस करते हैं…पहले अंग्रेजों को कोसते थे, अब मुगलों को घसीटते हैं…हमें उनके नाम तक सुनना पसंद नहीं है…कभी हम स्टेशनों के नाम बदलते हैं तो कभी शहरों के…मुगल इस देश से चले गए, लेकिन आज भी हम उनकी यातनाओं की याद में कैद हैं…हम खुद अपने जख्म कुरेदते हैं और घावों का आनंद लेते हैं…हम नफरत का बाजार लगाते हैं और नफरत खरीदकर लाते हैं…हम साथ-साथ रहते हैं, लेकिन पीठ पलटते हैं… एक-दूसरे को कोसने लगते हैं…आजाद होकर भी सांप्रदायिकता की गुलामी में कैद इस देश के विकसित राष्ट्र बनने में एकता की शर्त लगाएंगे तो हम कभी विकसित नहीं हो पाएंगे…और आप जातिवाद को यदि जहर मानते हैं तो सच कहें तो यह जहर आप लोग ही तो बांटते हैं…जनता के लिए नेता चुनने से पहले आप जातिगत समीकरण साधते हैं…जिस इलाके में जिस जाति के ज्यादा वोटर हों उन्हें टिकट देकर चुनाव लड़वाते हैं…इस देश के हर दल ने पूरे देश में इस कदर जातिवादी जहर घोला है कि नेता काबिलियत से नहीं, जाति के आधार पर चुना जाता है…और तो और यही समीकरण राज्यसभा से लेकर देश के प्रथम नागरिक तक के लिए देखा जाता है…नौकरी से लेकर शिक्षा तक में जातिगत आरक्षण लादा जाता है…फिर विकसित भारत की शर्त में जातिवाद को बाहर कैसे निकाला जा सकता है…मोदीजी आपकी सोच सही है… कोई भी राष्ट्र भ्रष्टाचार और जातिवाद के साथ विकसित नहीं हो सकता है…लेकिन हकीकत यह है कि हमारा देश इन बीमारियों से कभी नहीं उबर सकता है…इसीलिए इस देश में व्यक्तिगत विकास तो हो सकता है, लेकिन विकसित राष्ट्र का सपना अधर में लगता है…

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