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बिहारियों की अपने खानपान को लेकर अद्भुत निष्ठा

आर.के. सिन्हा
बिहार अपने बहुलतावादी समाज, समृद्ध संस्कृति, गौरवशाली इतिहास वगैरह के चलते अति विशिष्ट है। इस राज्य को एक अन्य वजह भी खास बनाती है। वह है बिहारियों की अपने खानपान को लेकर अद्भुत निष्ठा। बिहारी भोजन की मात्रा और गुणवत्ता के सवाल पर कभी समझौता करना पसंद नहीं करते। यह ऐसा बिन्दु है जिस पर बिहार में जाति, धर्म, वर्ग के बंधन टूट जाते हैं। बिहारी को उसका पसंदीदा सुस्वादु भोजन मिल जाए तो वह परम आनंद की स्थिति में होता है। अन्यथा वह सख्त नाराज भी हो जाता है। फिर बात सिरे से बिगड़ भी सकती है। इस बात की पुष्टि हाल ही में देखने-सुनने को मिली।
बिहार में विवाह और दूसरे समारोहों में अतिथियों को मछली या मिष्ठान पर्याप्त मात्रा में न मिलने के कारण महाभारत हो गया। जब सारे भारत में कोरोना वायरस से बचने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेनसिंग जैसे नियमों का पालन करने का हर स्तर पर आह्वान किया जा रहा है, तब बिहार एक अन्य अहम मसले से जूझ रहा है। अब देखें कि बिहार के गोपालगंज में एक शादी समारोह के दौरान खाने में मछली परोसने को लेकर तगड़ा विवाद हो गया। जिसमें दो पक्षों के बीच जमकर मारपीट हुई। मालूम चला है कि मछली के मुड़े यानी उसके सिर का हिस्सा खाने को लेकर दो पक्षों में खूनी झड़प हुई। इसमें दोनों ही ओर से 11 लोग घायल हुए हैं।
स्वादिष्ट भोजन का आकर्षण सारे भारतीयों में रहता है। वे लजीज भोजन पर टूट पड़ते हैं। मौका चाहे विवाह समारोह का हो या कोई अन्य। सबसे पहले और अधिक से अधिक भोजन अपनी प्लेट में भर लेने की कवायद में अच्छे-भले लोग भी कई बार बहुत टुच्ची हरकतें करने लगते हैं। ये सब देखना-सुनना कदापि सुखद नहीं लगता। बिहार के मिथलांचल क्षेत्र में दावत में मछली या मांस का न परोसा जाना मेहमानों को बहुत बुरा लग सकता है। इधर तो भोजन का मतलब ही होता है कि सामिष भोजन तो मिलेगा ही। मिथलांचल का तो ब्राहमण भी सामिष भोजन ही पसंद करता है। मिथलांचल में दरभंगा, मधुबनी, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी शामिल हैं।
बिहारी समाज के स्वादिष्ट व्यजनों के प्रेम पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। दिक्कत सिर्फ इतनी है कि बिहारी समाज का कम से कम एक हिस्सा लजीज भोजन न मिलने पर नाराज भी हो जाता है। फिर वह लड़ने-झगड़ने तक लग जाता है। बेशक बिहारी समाज को अपने में बदलाव तो लाना ही होगा। वहां की शादियों में धन की फिजूलखर्ची को रोका जाना चाहिए। वहां पर विस्तृत भोजन परोसने के क्रम में वधू पक्ष को लाखों रुपए की चपत लग जाती है। इसके बावजूद मेहमान नाखुश ही बने रहते हैं। सुनकर भी कितना कष्ट होता है कि गोपालगंज में आई बारात में खाने के लिए बैठे लोगों को पहले राउंड में दो-दो पीस मछली दी गई। जिसके बाद मछली के मुड़े की फरमाइश की गई, जिसे नहीं दिए जाने पर हंगामा बढ़ा। बस इसके बाद ही जमकर मारपीट शुरू हो गई।
कुछ मीडिया खबरों पर यकीन करें तो पिछले दिनों राज्य में आई एक बारात में सब्जी को लेकर विवाद में गोलीबारी तक हो गई थी। जिसमें गोली मारकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। पहले तो यह सवाल स्थानीय प्रशासन से पूछा जाना चाहिए कि जब कोरोना की दूसरी लहर से राज्य और देश हांफ रहा था तब उन्होंने इतने बड़े स्तर पर शादी के आयोजन की अनुमति कैसे दे दी या वहां इतने बड़े स्तर पर विवाह का आयोजन कैसे हो गया ?
मूलतः महाराष्ट्र से संबंध रखने वाले लेकिन कई बार बिहार से भी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए समाजवादी नेता और चिंतक मधु लिमये कहते थे कि उन्होंने बिहारियों से बढ़कर कोई भोजन भट्ट नहीं देखा। वहां पर अगर आप किसी को पूरी-हलवा की दावत के लिए आमंत्रित करें तो वह उफनती कोसी नदी को पार करके आ जाएगा। एकबार बिहारी जब भोजन करने लगता है तो फिर वह भोजन के साथ कायदे से न्याय करता है। बिहारी भोजन करने में पर्याप्त समय भी लेता है। वह चपाती, सब्जी, चावल, मांस, मछली, दही वगैरह की बार-बार मांग करेगा। वह आमतौर पर अल्पाहारी तो बिलकुल नहीं होता। भोजन को बर्बाद नहीं करेगा। यह उसे बचपन से ही घर में सिखाया जाता है कि भोजन को बर्बाद करने से ईश्वर भी नाराज होता है। बिहारी को भोजन के पश्चात मीठा खाना भी पसंद है। अगर उसे भोजन के बाद कोई मनपसंद मिठाई मिल जाए तो वह अपने मेजबान का बहुत कृतज्ञ हो जाता है। उसे लगता है कि मेजबान ने उसका दिल से सम्मान किया है। यहां तक तो सब ठीक है। आखिर स्वादिष्ट भोजन और उसके बाद मिष्ठान कौन नहीं पाना चाहता। सभी तो चाहते हैं कि उन्हें भोजन के बाद कुछ मिठाई मिल जाए। पर यह उचित नहीं माना जा सकता है कि शादी समारोह में मछली कम मिलने पर झगड़ा कर लिया जाए।
औसत बिहारी परिवारों की गृहणियों के दिन का बहुत सारा वक्त तो भोजन पकाने और उसकी योजना बनाने में ही गुजर जाता है। मतलब साफ है कि बिहारी अपने घर में भी स्वादिष्ट भोजन करना पसंद करता है। वह घर से बाहर ही स्वादिष्ट भोजन करने की फिराक में नहीं रहता। वह घर में लिट्टी-चोखा बार-बार खाता है। लिट्टी सत्तू और मसाले के मिश्रण से बनती है। जहां तक चोखा की बात है तो आलू और बैंगन (जिसका चोखा बनाना है) को आग में पका लिया जाता है। इसके बाद इसके छिलके को हटाकर उसे नमक, तेल, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन इत्यादि के साथ गूंथ लिया जाता है। लिट्टी-चोखा का स्वाद अतुलनीय होता है। इसे तो बिहारी रोज ही खाते या खाना पसंद करते हैं।
यह याद रखें कि बिहारी आम के भी रसिया होते हैं। चंपारण जिले (अब तो पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण दो जिले हो गये हैं) की जब भी बात होती है, तब महात्मा गांधी के वहां के नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में निलहा आन्दोलन का ख्याल तुरंत जेहन में आ जाता है। उस असाधारण आंदोलन के संबंध में आज भी सारा देश पढ़ता है। वहां के जर्दालु आम का स्वाद और खुशबू अद्वितीय होती है। इसे खाने के बाद इंसान एकबार तो कह देता है कि ‘इससे बेहतर आम कभी नहीं चखा।’ जहां दशहरी, लंगड़ा, मालदह, चौसा, मलिहाबादी, सहारनपुरी, बादामी, तोतापरी, केसर आदि आमों की प्रजातियों से सारा देश परिचित है, जर्दालु आम के बारे में बिहार से बाहर के लोगों को लगभग कोई जानकारी नहीं है। बिहारी इन्हें खूब खाते हैं और इसके कम मिलने पर किसी से लड़ते भी नहीं हैं। कम से कम इस तरह की कोई खबर तो नहीं सुनी। उम्मीद है कि बिहारी स्वादिष्ट भोजन, मिठाई और फलों का स्वाद बिना किसी विवाद के लेते रहेंगे। मेहमान नवाज पसंद बिहारी खाते भी रहेंगे और खिलाते भी रहेंगे I पर झगड़ने से जरूर बचेंगे I
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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